मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023: आरक्षित सीटों पर ब्यूरोक्रेट्स को तरजीह क्यों?
- सरकारी कर्मचारियों की दावेदारी
- आरक्षित सीटों पर कांग्रेस बीजेपी का विशेष फोकस
- निशा बांगरे का संघर्ष
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी के तौर पर आरक्षित सीटों पर सरकारी कर्मचारियों का ग्राफ बढ़ रहा है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर सरकारी नौकरशाह नेता बनने के लिए नौकरी छोड़कर चुनावी प्रत्याशी बनने के लिए अपनी दावेदारी कर रहे है। दावेदारों की ये सूची बीजेपी और कांग्रेस में बहुत लंबी है। और चुनाव दर चुनाव बढ़ती ही जा रही है। एससी और एसटी रिजर्व सीटों पर सरकारी नौकरी छोड़ नेता बने दावेदारों का दबदबा लगातार बढ़ता जा रहा है। चुनावी मैदान में अपना भाग्य आजमाने के लिए एक दर्जन से ज्यादा अधिकारी उम्मीदवारी के लिए दावेदारी कर रहे है। कई दावेदारों को तो पार्टी से हरी झंडी भी मिल चुकी है। कुछ चुनावी टिकट पाने के लिए संघर्ष कर रहे है, तो कुछ वेट एंड वॉच में है। न केवल आरक्षित सीटों बल्कि सामान्य सीटों पर भी सरकारी अफसरों को तवज्जों दिया जा रहा है।
आपको बता दें 230 विधानसभा सीटों वाले मध्यप्रदेश में 82 सीटें आरक्षित है। इनमें 35 सीटें अनुसूचित जाति और 42 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मुकाबला कांग्रेस को आरक्षित सीटों पर अधिक जीत मिली थी। 82 में से 47 पर कांग्रेस और 34 पर बीजेपी को जीत मिली थी। इस बार भी दोनों पार्टियां इन सीटों पर खास फोकस कर रही है।
अब सवाल ये है कि राजनीति में ब्यूरोक्रेट्स की डिमांड किस आधार पर बढ़ रही है। दोनों प्रमुख पार्टियां ब्यूरोक्रेट्स को हाथों हाथ लपक रही है। बीजेपी एसटी की 2 सीटों पर सरकारी नौकरी छोड़ राजनीति में आए ब्यूरोक्रेट्स को मैदान में उतार चुकी है, वहीं 5 दावेदारों के नाम अभी भी प्रतीक्षा सूची में है। कांग्रेस की ओर निशा बांगरे न केवल दावेदारी कर रही है, बल्कि शासन स्तर पर संघर्ष कर रही है। एसडीएम बांगरे बैतूल के अमला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में है। जिला आबकारी अधिकारी से रिटायर हो चुके केदार सिंह मैकाले कांग्रेस पार्टी से सबलगढ़ और अंबाह विधानसभा सीट से प्रयत्नरत है। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने का भरोसा भी दिया है।
Created On :   13 Oct 2023 11:19 AM IST