लोकसभा चुनाव 2024: बिहार और झारखंड में पारिवारिक लड़ाई से किसे होगा फायदा, 'चाचा-भतीजे' और 'देवर-भाभी' की लड़ाई में क्या है बीजेपी का प्लान-B?

बिहार और झारखंड में पारिवारिक लड़ाई से किसे होगा फायदा, चाचा-भतीजे और देवर-भाभी की लड़ाई में क्या है बीजेपी का प्लान-B?
  • बिहार में पशुपति पारस एनडीए से अलग हुए
  • चिराग पासवान को बीजेपी ने दी 5 सीटें
  • सीता सोरेन ने हेमंत सोरेन की पार्टी से किया किनारा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले देश की राजनीति में मंगलवार को बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। जहां दो बड़े राजनीतिक दल के नेताओं ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। एक तरफ झारखंड में सत्ताधारी पार्टी 'झारखंड मुक्ति मोर्चा' की विधायक सीता सोरेन ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। वहीं, दूसरी ओर राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) प्रमुख पशुपति पारस ने एनडीए की ओर से बिहार में लोकसभा सीट नहीं मिलने के चलते अपने पद से रिजाइन कर दिया। केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ ही उन्होंने एनडीए से भी अपने पुराने रिश्ते समाप्त कर लिए। इधर, सीता सोरेन शिबू सोरेन की बड़ी बहू और झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की भाभी हैं। वहीं, पशुपति पारस चिराग पासवान के चाचा हैं। पशुपति पारस एनडीए में एक भी सीट नहीं मिलने और लोजपा(रामविलास) चिराग पासवान को अधिक महत्व मिलने से नराज थे। दोनों नेताओं के राजनीति में अपनी पैठ बढ़ाने के चलते परिवार में कलह भी हो गया है। यह कलह ठीक उसी प्रकार है जैसे - उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव का विवाद था। इसे आप महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे परिवार और शरद पवार के परिवार के अंदर मचे विवाद के तौर पर भी समझ सकते हैं। इस दोनों विवाद से भाजपा को चुनाव में बहुत फायदा मिला था। ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि झारखंड और बिहार की सियासत में मचे परिवारिक राजनीतिक कलह से भाजपा को कोई फायदा मिलेगा? क्या आगामी लोकसभा चुनाव परिवारिक लड़ाई का फायदा सीधे तौर पर पहुंचेगा?

एक तीर, दो निशाने

झारखंड मुक्ति मोर्चा अभी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। झामुमो छोड़ने के बाद सीता सोरेन के लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हो गई है। माना जा रहा है कि वह आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं। साथ ही, राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सीता सोरेन बीजेपी में शामिल हो सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ इंडिया गठबंधन को भी नुकसान होना तय है। जिसका फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को होगा।

बता दें कि सीता सोरेन लंबे समय से पार्टी से नराज थीं। उनकी नाराजगी तब से है जब परिवार का उत्तराधिकारी उन्हें न बना कर हेमंत सोरेन को बना दिया गया था। सीता सोरेन ने हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने का भी विरोध किया था।

बंगाल की पारिवारिक लड़ाई

हाल ही में बंगल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके भाई बबून बनर्जी के बीच भी नाराजगी की बात सामने आई थी। ममता ने अपने एक बयान में अपने भाई बबून से रिश्ता तोड़ने का ऐलान भी कर दिया था। उसके बाद बबून का भी एक बयान सामने आया। जिसमें उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। ऐसे में इस परिवारिक लड़ाई का भी फायदा बीजेपी को हो सकता है। क्योंकि, चुनाव से पहले बीजेपी बबून को अपने पार्टी में शामिल कर सकती है।

Created On :   19 March 2024 7:12 PM IST

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