भास्कर एक्सक्लूसिव: जब एक ही सीट पर चुने जाते थे दो सांसद, जानिए किस चुनाव में हुआ था ऐसा और किस कानून के तहत बदली ये प्रक्रिया

जब एक ही सीट पर चुने जाते थे दो सांसद, जानिए किस चुनाव में हुआ था ऐसा और किस कानून के तहत बदली ये प्रक्रिया
  • पहले चुनाव में चुने गए 86 सीटों पर दो सांसद
  • 1961 में आए कानून के बाद हटाई गई दो सदस्यीय सीट प्रणाली
  • जानिए क्या कहता है संवैधानिक पहलू?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार किसी नेता को संसद सदस्यता पानी है तो उसे चुनाव में जीत हासिल करनी होती है। किसी एक संसदीय क्षेत्र पर अलग अलग पार्टियां अपने प्रत्याशी उतारती हैं। लेकिन जो नेता चुनाव में जनता का सबसे अधिक वोट हासिल करता है वही विजेता कहलाता है और अपने संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित होकर सदन पहुंचता है। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब एक ही संसदीय सीट से दो सांसद प्रत्याशी निर्वाचित हुआ करते थे। पहले आम चुनाव में एक ही सीट पर दो प्रत्याशी चुनने का चलन भी था। 1951-52 के चुनाव के दौरान 25 राज्यों के 401 निर्वाचन क्षेत्रों में लोकसभा की 489 सीटें थीं। जिसमें से 86 निर्वाचन क्षेत्र यानी कि लोकसभा सीटें ऐसी थीं, जहां एक ही बार में दो सदस्यों को चुना गया था। आज हम आपको बताएंगे दो सांसद चुने जाने के पीछे क्या कारण था और दो-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र उन्मूलन कानून क्या था? जिसके बाद एक सीट पर दो सांसद चुने जाने की व्यवस्था बंद कर दी गई।

क्यों चुने जाते थे दो सांसद?

दरअसल, जिन सीटों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी ज्यादा होती थी। उन सीटों को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया जाता था। ऐसी सीटों पर पार्टियां एक ही सीट से अपने दो प्रत्याशियों को मैदान में उतार देती थीं। एक प्रत्याशी सामान्य श्रेणी का होता था तो वहीं एक प्रत्याशी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का होता था। ऐसा खास तौर पर बड़े संसदीय क्षेत्रों या आरक्षित सीटों पर होता था।

क्या कहता है संवैधानिक पहलू?

भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के मुताबिक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं। अब संविधान के आधार पर ऐसी व्यवस्था थी कि दो सदस्यी निर्वाचन क्षेत्रों में दो में से एक प्रत्याशी हर हाल में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का कैंडीडेट होना चाहिए। हालांकि, कुछ मामलों में सिर्फ एक सांसद चुनने वाली सीटों पर भी आरक्षण कर दिया गया था।

इन सीटों पर जीते थे दो सांसद

साल 1951-52 में देश का पहला आम चुनाव हुआ था। इस चुनाव में कुल 25 राज्यों के 401 निर्वाचन क्षेत्रों में लोकसभा की 489 सीटें आवंटित की गई थीं। जिसमें से 86 सीटों पर कुल दो सांसद चुने गए थे। जिन सीटों पर दो सांसद चुने गए। उनमें से महाराष्ट्र की पुणे सीट काफी अहम थी। बता दें कि, पहले आम चुनाव में पुणे लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी ने दो प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे थे। पहले नरहर विष्णु गाडगिल और दूसरी इंदिरा अनंत मयदेव। चुनावी नतीजों में दोनों नेताओं को भारी बहुमत से जीत हासिल हुई। इसके अलावा महाराष्ट्र की मुंबई उत्तर सीट पर विट्ठल गांधी और नारायण काजरोलकर, भंडारा-गोंडिया सीट पर तुलराम सकारे और चतुर्भुज विट्टलदास, हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट पर राजकुमारी अमृत कौर और गोपी राम एक सीट ही सीट पर दो सांसद के तौर पर निर्वाचित हुए।

1961 में खत्म हुई दो सांसद चुने जाने की प्रणाली

दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में सीटों के आरक्षण की व्यवस्था के खिलाफ भारी विरोध हुआ। इसे लेकर अक्सर यह सुझाव दिया जाता रहा कि एससी और एसटी के लिए आरक्षित सभी सीटें एकल सदस्यीय (एक संसद सदस्य) निर्वाचन क्षेत्रों में शामिल की जानी चाहिए। जिसके बाद साल 1961 में दो-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र (उन्मूलन) अधिनियम लाया गया। इस कानून में दो-सदस्यीय संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों को समाप्त कर दिया गया और एकल सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों के निर्माण का प्रावधान किया गया। यह कानून लागु होने के बाद एक सीट पर दो सांसद निर्वाचित होने की व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म कर दी गई।

Created On :   8 April 2024 7:33 PM IST

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