लोकसभा चुनाव 2024: इन आठ दलों ने बीजेपी-कांग्रेस के खिलाफ खोला मोर्चा, बिगाड़ सकती हैं सियासी गणित, 230 सीटों पर है प्रभाव
- ये क्षेत्रीय दल कांग्रेस-बीजेपी के लिए साबित हो सकते हैं बड़ा खतरा
- कई सीटों पर है प्रभाव
- बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ उतार रहे मजबूत उम्मीदवार
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान हो चुका है। 19 अप्रैल से शुरू होने वाला यह चुनावी महासमर 1 जून को समाप्त होगा। इस महामुकाबले को जीतने के लिए सत्ता और विपक्षी दलों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। बीजेपी नीत सत्ताधारी एनडीए गठबंधन की ओर से जहां इस चुनाव में 400 से ज्यादा सीटें लाने का दावा किया जा रहा है तो वहीं विपक्षी गठबंधन इंडिया की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस सत्ता परिवर्तन की बात कह रही है। एनडीए गठबंधन में बीजेपी समेत जहां 40 दल शामिल हैं तो वहीं इंडिया गठबंधन में कांग्रेस और 26 दल शामिल हैं। दोनों ही गठबंधन चुनावी मैदान में एक दूसरे को हराने की जुगत में जुटे हुए हैं।
लेकिन देश में आठ दल ऐसे भी हैं जो इन दोनों ही गठबंधन में शामिल न होकर अकेले ही चुनाव लड़ रहे हैं। देश के दक्षिणी भाग से लेकर उत्तरी भाग में मौजूद ये दल इस चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के खेल को बिगाड़ सकते हैं। यह दल भले ही कांग्रेस और बीजेपी के मुकाबले छोटे हों लेकिन चुनाव में यह इंडिया और एनडीए गठबंधन के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं।
इन दलों से होने वाले सियासी नुकसान का अंदेशा इंडिया-एनडीए गठबंधन को भी है। शायद यही वजह है कि वे इन पार्टियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में अलग से रणनीति तैयार कर रहे हैं। जैसे कि यहां प्रत्याशियों का चुनाव स्थानीय वोटबैंक को ध्यान में रखकर किया जा रहा है ताकि कम से कम नुकसान हो। वहीं दोनों गठबंधन के नेता भी अपने चुनावी अभियान में इन दलों पर सीधा हमला करने से बच रहे हैं।
ऐसे में आइए जानते हैं इन दलों और उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों के बारे में
एआईएडीएमके
तमिलनाडू की अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) वर्तमान में विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल है। एआईएडीएमके की गिनती देश के बड़ी क्षेत्रीय पार्टी में की जाती है। इसके साथ ही राज्य की 39 लोकसभा सीटों पर इसका अच्छा खासा प्रभाव है। ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस को यहां जीत हासिल करने में कड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अटकलें लगाई जा रही थीं कि एआईएडीएमके बीजेपी नीत एनडीए गठबंधन में शामिल हो सकती है जो कि वो पिछले लोकसभा चुनाव में थी। लेकिन एआईएडीएमके ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया।
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी राज्य में पीएमके जैसे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस सत्ताधारी डीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। यहां बीजेपी और कांग्रेस में से किसे ज्यादा सीटें मिलेंगी ये एआईएडीएमके के प्रदर्शन पर निर्भर रहेगा।
वाईएसआर कांग्रेस
आंध्रप्रदेश की सत्ताधारी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस भी चुनावों में बीजेपी-कांग्रेस नीत इंडिया-एनडीए गठबंधन का खेल बिगाड़ सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो वाईएसआर कांग्रेस ने राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से 22 पर एकतरफा जीत हासिल की थी और अपना नाम देश के मजबूत क्षेत्रीय दलों में शामिल कराया था। इस पार्टी का राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर सीधा प्रभाव है जो बीजेपी और कांग्रेस का समीकरण बिगड़ सकता है। इस बार बीजेपी जहां तेलगू देशम पार्टी और जनसेना के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है तो वहीं कांग्रेस भी पूरी तैयारी के साथ सियासी रण में उतर रही है। राज्य में लोकसभा सीटों का परिणाम क्या होगा ये बहुत कुछ वाईएसआर कांग्रेस के प्रदर्शन पर टिका हुआ है।
वंचित बहुजन अघाड़ी
लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के दूसरे बड़े राज्य महाराष्ट्र के बड़े इलाके में वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी का असर है। पिछले लोकसभा और विधानसभा के परिणामों पर नजर डालें तो राज्य की 12 सीटों पर इस दल का सीधा असर है। संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर इस पार्टी के प्रमुख हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में वंचित बहुजन अघाड़ी का वोट प्रतिशत 6.92 फीसदी था। वहीं आकोला सीट से चुनाव लड़ने वाले पार्टी सुप्रीमो प्रकाश अंबेडकर सबसे ज्यादा वोट पाने वाले दूसरे उम्मीदवार थे। बता दें कि कुछ दिनों पहले बहुजन अघाड़ी पार्टी कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी के महाविकास अघाड़ी में शामिल थी। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने गठबंधन छोड़ दिया और अकेले लड़ने का फैसला किया।
बसपा
मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी का यूपी और एमपी की 84 लोकसभा सीटों पर अच्छा-खासा असर है। पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार वह अकेले ही चुनावी मैदान में उतरी है। कहा जा रहा है कि इस बार के चुनाव में वह कई सीटों पर बीजेपी और इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस और सपा का दोनों राज्यों की 84 सीटों पर खेल खराब कर सकती है। दसअसल, इस बार बसपा पश्चिमी यूपी और एमपी के बुंदेलखंड व ग्वालियर-चंबल इलाके की सीटों पर अपने मजबूत उम्मीदवार उतारे हैं। ऐसे में बीजेपी-कांग्रेस समेत सपा को डर है कि बीएसपी चुनाव में उनका बड़ा नुकसान कर सकती है। 2014 के लेकसभा चुनावों में भी बीएसपी ने अकेले लगभग 70 सीटों पर सपा का खेल खराब किया था। बीजेपी अगर इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करती है तो वह बीजेपी समेत इंडिया गठबंधन की कांग्रेस व सपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है।
बीआरएस
तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी बीआरएस भी चुनाव में कांग्रेस-बीजेपी को अच्छा खासा नुकसान पहुंचा सकती है। पार्टी इस बार अकेले ही चुनाव लड़ रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीआरएस ने राज्य की कुल 17 सीटों में से 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि पिछले चुनाव के बाद से कांग्रेस और बीजेपी राज्य में मजबूत हुई हैं लेकिन अभी भी कुछ सीटों पर (खासकर अर्बन इलाकों में) बीआरएस काफी मजबूत है और वह यहां बीजेपी व कांग्रेस का खेल खराब कर सकती है। हाल ही के विधानसभा चुनाव में भले ही पार्टी हार गई हो लेकिन इसके बाद भी उसे 37 फीसदी वोट मिले थे जो कि चुनाव जीतने वाले कांग्रेस से केवल 2 फीसदी ही कम थे। ऐसे में कहा जा सकता है कि यदि बीआरएस अपने प्रभाव वाले इलाकों में अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रही तो इसका खामियाजा कांग्रेस-बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है।
टीएमसी
पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) भी राज्य की 42 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ रही है। पार्टी सुप्रीमों ममता बनर्जी का बंगाल में काफी प्रभाव देखने को मिलता है। इससे पहले टीएमसी के कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के साथ चुनाव लड़ने की अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन सीट बंटवारे पर समझौता न होने के चलते ममता ने एकला चलो की नीति पर चलते हुए अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला किया। पिछले विधानसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की थी। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 42 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं बीजेपी को 18 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी। इस बार के चुनाव में भी ममता ने कई सीटों पर ऐसे कैंडिडेट उतारे हैं जो कांग्रेस और बीजेपी को मजबूत टक्कर दे सकते हैं। मसलन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन के खिलाफ जहां पार्टी ने प्रसिद्ध क्रिकेटर यूसुफ खान को उतारा है तो वहीं बीजेपी के मजबूत गढ़ कहे जाने वाले तमलुक से टीएमसी ने देबांग्शु भट्टाचार्य को अपना प्रत्याशी बनाया है। ऐसे में यदि बीजेपी और कांग्रेस की रणनीति ठीक तरह से काम नहीं कर पाई तो इस बार भी टीएमसी उन्हें बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है।
हरियाणा की इनेलो और जजपा
हरियाणा 10 लोकसभा सीटों पर वैसे तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। लेकिन राज्य के कई इलाकों में अच्छा खासा असर रखनी वाली क्षेत्रीय पार्टियां चाहे वो इनोलो (इंडियन नेशनल लोकदल) हो या जजपा (जननायक जनता दल) पर भी इस चुनाव में बड़ा असर है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भले ही बीजेपी को सभी दस सीटों पर जीत मिली थी लेकिन जाटलैंड में इनेलो और जजपा की मजबूत पकड़ होन के चलते पार्टी को इस बार बड़ा डैमेज होने का डर सता रहा है। दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव से पहले उसका जजपा से गठबंधन भी टूट गया है। ऐसे में यदि कांग्रेस और बीजेपी यहां बड़ी जीत हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें इन क्षेत्रीय दलों के खिलाफ भी खास रणनीति बनानी होगी।
Created On :   6 April 2024 8:29 PM IST