भास्कर हिंदी एक्सक्लूसिव: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले की तीन सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस में होती है कड़ी टक्कर

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले की तीन सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस में होती है कड़ी टक्कर
  • छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023
  • डौंडीलोहरा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित
  • संजारी बालोद, गुण्डरदेही सामान्य

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बालोद जिला 1 जनवरी 2012 को अस्तित्व में आया। बालोद वन जल औऱ खनिज संपदा से सम्पन्न है। बालोद का दिल्ली राजहरा नगर हेमेटाइट लोह अयस्क से ऊरा पड़ा है। भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए यहीं से लौह अयस्क का उत्खनन किया जा रहा है।

बालोद जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र संजारी बालोद,डौण्डीलोहरा और गुण्डरदेही सीट आती है। इनमें से संजारी बालोद और गुण्डरदेही सामान्य और डौंडीलोहरा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। पिछले दो विधानसभा चुनावों 2013 और 2018 में तीनों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। जबकि 2008 ,2003 में तीनों सीटों पर बीजेपी का कब्जा था।

डौण्डीलोहरा विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से अनिला भेंदिया

2013 में कांग्रेस से अनिला भेंदिया

2008 में बीजेपी की नीलिमा सिंह

2003 में बीजेपी से लाल महेंद्र सिंह

बालोद जिले की तीन सीट में से केवल एक डौण्डीलोहरा विधानसभा सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है। पहले इस सीट पर राजपरिवार का दबदबा रहता था, लेकिन राजपरिवार का वर्चस्व खत्म होने के बाद सीट पर भेंदिया परिवार का कब्जा हो गया।

यहां कि विरासत और सियासत 6 दशक से दो परिवार भेंदिया और टेकाम के बीच ही झूलती रही है, राजनैतिक दल भी इन्हीं दोनों परिवारों पर चुनावी दांव लगाता रहा है।

क्षेत्र में मजदूरों के हितों की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का यहां प्रभाव देखने को मिलता है, जो बीजेपी और कांग्रेस के लिए मुसीबत बनती है। दल्ली राजहरा क्षेत्र इसी विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है, जहां से भिलाई के लिए लौह अयस्क उत्खनन होता था। लाल पानी से छुटकारा और वन अधिकार पट्टा की मांग चुनाव में सुनाई पड़ती है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से लोग पलायन कर जाते है। बीजेपी यहां धर्मांतरण के मामले को तूल देती है।

संजारी बालोद विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से संगीता सिन्हा

2013 में कांग्रेस से भैया राम सिन्हा

2008 में बीजेपी से मदनलाल साहू

संजारी बालोद विधानसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। यहां 60 फीसदी के करीब पिछड़ा वर्ग,22 फीसदी अनुसूचित जनजाति ,7 से 8 परसेंट एससी और 10 फीसदी सामान्य वोटर्स है। पिछड़े वर्ग में भी साहू और सिन्हा जाति के वोट यहां निर्णायक मोड़ में होते है। यहां साहू समाज का बोलबाला है, लेकिन सिन्हा समाज की एकजुटता ने यहां पिछले दो चुनाव में सिन्हा परिवार से ही विधायक बनाया है। समस्याओं की बात की जाए तो यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। पेयजल, उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए कॉलेज व टीचर की कमी। बीजेपी, कांग्रेस और जोगी कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है।

गुण्डरदेही विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से कुंवर सिंह निषाद

2013 में कांग्रेस से राजेंद्र कुमार राय

2008 में बीजेपी से वीरेंद्र कुमार साहू

2003 में बीजेपी से रामशिला साहू

गुण्डरदेही विधानसभा क्षेत्र सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित है,यहां ओबीसी वर्ग का दबदबा है। ओबीसी में भी साहू समाज की आबादी अन्य की तुलना में सर्वाधिक है। 55 फीसदी की आबादी में 35 परसेंट साहू मतदाता है। मिली जानकारी के मुताबिक यहां अवैध शराब का धंधा खूब फलता फूलता है। पेयजल समस्या यहां बनी रहती है। साथ ही विकास यहां सुनाई तो देता है, लेकिन दिखाई नहीं देता। सड़कें यहां जर्जर स्थिति में है। गुंडरदेही में बीजेपी और कांग्रेस के बीच के मुकाबले को जोगी कांग्रेस कड़ा बना देती है।

छत्तीसगढ़ का सियासी सफर

1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ ने सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।

प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गद्दी संभाली थी। पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। 2018 में कांग्रेस की बंपर जीत से बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।

Created On :   7 Oct 2023 3:52 PM IST

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