बिहार विधानसभा चुनाव 2025: क्या Waqf संशोधन विधेयक बिल से पड़ेगा वोटबैंक पर असर? जानें 18% मुस्लिम वोटर्स का NDA, RJD, जनसुराज में से किसकी तरफ रुझान

- बिहार में इस साल होने है विधानसभा चुनाव
- सूबे में वक्फ संशोधन बिल पर गरमाई सियासत
- जानें 18% मुस्लिम वोटर्स का किसकी तरफ रुझान
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बीते कुछ दिनों से देश की सियासत वक्फ संशोधन विधायक के मुद्दे पर गरमा रही है। इसका असर बिहार के सियासी हल्कों में भी नजर आ रहा है। इस बीच पटना के गर्दनीबाग में कई बड़े मुस्लिम संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध प्रदर्शन में आरजेडी चीफ लालू यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी शामिल हुए। इस दौरान जन सुराज पार्टी के चीफ प्रशांत किशोर भी मौजूद रहे। वहीं, यह मुद्दा बिहार विधानसभा में भी गूंजा। सदन में वक्फ संशोधन विधायक को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं ने जमकर हंगामा किया। अब ऐसे में बिहार में सवाल उठता है कि क्या इस मुद्दे का असर बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव में पड़ेगा?
मुस्लिम वोटर्स पर सियासी दलों की नजर
इस साल के अंत से पहले बिहार में विधानसभा चुनाव होने है। लिहाजा, राज्य के 18 फीसद मुस्लिम वोटर्स पर सियासी दलों की नजर टिकी हुई है। यदि देखा जाए तो राज्य में आरजेडी की पकड़ शुरू से ही मुस्लिम-यादव वोटर्स पर बनी रही है। इस बीच प्रशांत किशोर की पार्टी भी मुस्लिम वोट बैंक को साधने की जद्दोजहद में जुटी हुई हैं। ऐसे में इस बार वह आरजेडी के वोट बैंक पर सेंध लगा सकती है। इस बार जुन सुराज ने बिहार विधानसभा चुनाव में 40 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारने की घोषणा कर दी है। इससे पहले उपचुनाव के दौरान भी इसी रणनीति का फायदा जन सुराज पार्टी को मिली थी।
बिहार में वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन पर राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय ने प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा, "वक्फ संशोधन विधेयक अभी लोकसभा में लाया नहीं गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही कहा है कि अभी तो बिल आने दीजिए, लेकिन उसके पहले ही यह हंगामा हो रहा है क्योंकि इसी वर्ष बिहार विधानसभा का चुनाव है।"
बिहार में मुस्लिम वोट की कितनी अहमियत?
इसके अलावा अरुण कुमार पांडेय का कहना है कि विपक्ष मुस्लिम वोटर्स को साधने के लिए पुरजोर ताकत झोंक रहा है। क्योंकि 18% एक बड़ी आबादी मुस्लिम की है। आरजेडी शुरू दौर से ही मुस्लिम वोटरों पर कब्जा जमाते आई है। हालांकि नीतीश कुमार को भी मुस्लिम वर्गों का वोट मिलता रहा है। इस बार मुस्लिम एकजुट हो चुके हैं और नीतीश कुमार के खिलाफ है। हाल ही में सीएम आवास में आयोजित इफ्तार पार्टी में कई मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया था, तो इसका असर चुनाव में भी दिखेगा।
दरअसल, 2020 में भी मुस्लिम समुदाय ने नीतीश कुमार का साथ नहीं दिया था। जेडीयू से 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे गए थे, लेकिन एक भी जीते नहीं थे। जबकि, बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीते जमा खान जेडीयू में शामिल हुए तो उन्हें अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बनाया गया।
बता दें, बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं। इसमें 19 विधायक मुस्लिम समुदाय से हैं। इस पर प्रशांत किशोर का कहना है कि जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी के हिसाब से उनकी पार्टी से 40 उम्मीदवार मुस्लिम वर्ग से होंगे। वहीं, अरुण पांडेय कहते हैं कि चार सीटों पर हुए उपचुनाव में तो प्रशांत किशोर एक भी सीट नहीं जीते थे, लेकिन मुस्लिम वोटरों को साधने में सफल हुए थे। हालांकि उपचुनाव और मुख्य चुनाव में अंतर होता है। मुस्लिम वोटर जीतने वाले को ही अपना वोट देना उचित मानते हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर को कितना फायदा होगा यह समय की बात होगी।
चुनाव में किसे मिलेगा फायदा?
इसके अलावा जब अरुण पांडेय से पूछा गया कि आगामी चुनाव में आरजेडी या प्रशांत किशोर में से किसको फायदा होगा? इस पर उन्होंने कहा कि इसमें सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को दिख रहा है। बीजेपी की जो मुहिम है कि हिंदू को एकजुट करो, उसमें यह कामयाब होगी। क्योंकि अब खुलेआम मुस्लिम वर्ग एकजुट होकर नीतीश सरकार का विरोध करने लगा है। ऐसे में हिंदू को एकजुट करने के लिए बीजेपी खुलेआम इसका आग्रह करेगी और इसका फायदा निश्चित तौर पर मिल सकता है। मुस्लिम वोट लेने में विपक्ष भले कामयाब होगा, लेकिन इससे हिंदू वोटरों का नुकसान भी उन्हें उठाना पड़ सकता है। इसकी तैयारी पहले से वह कर रही है।
Created On : 27 March 2025 2:53 PM