लोकसभा चुनाव 2024: शहडोल में राजेन्द्रग्राम के 2 परिवारों के इर्द-गिर्द सिमटी रही संसदीय राजनीति, समझिए सियासी समीकरण

शहडोल में राजेन्द्रग्राम के 2 परिवारों के इर्द-गिर्द सिमटी रही संसदीय राजनीति, समझिए सियासी समीकरण
  • 19 अप्रैल से लोकसभा चुनाव की शुरुआत
  • शहडोल में दो परिवारों के इर्द-गिर्द सिमटी रही संसदीय राजनीति
  • शहडोल में मौजूदा समय बीजेपी के सांसद

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में राजनीति में परिवारवाद की बड़ी मिसाल है, शहडोल संसदीय सीट। अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित इस संसदीय क्षेत्र की राजनीति पांच दशक से अनूपपुर जिले के राजेन्द्रग्राम के 2 परिवारों (दलपत और दलबीर) के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। 1977 से लेकर अब तक हुए एक उपचुनाव (2016) व 12 आम चुनावों में हार-जीत किसी भी दल या व्यक्ति के हिस्से में गई हो, इन परिवारों की भागीदारी बराबर रही। इनमें से एक परिवार है कांग्रेस के बड़े आदिवासी चेहरा रहे स्वर्गीय दलबीर सिंह का तो दूसरा भाजपा के बड़े आदिवासी चेहरा रहे स्व. दलपत सिंह परस्ते का। इमरजेंसी के बाद से ही कांग्रेस और भाजपा के इन 2 राजनीतिक परिवारों का ही वर्चस्व रहा। यही वजह रही कि 1977 से अब तक हुए 13 चुनावों में से 5-5 बार सांसदी दलबीर सिंह और दलपत सिंह के परिवार के पास रही।

अभी सांसदी दलबीर सिंह के परिवार के पास

मौजूदा सांसद हिमाद्री सिंह ने सांसदी भले ही भाजपा में शामिल होने के बाद पाई लेकिन मूलत: वे कांग्रेसी परिवार से ही हैं। इनके पिता स्व. दलबीर सिंह इस सीट से 3 बार और मां राजेश नंदिनी सिंह एक बार 2009 में सांसद रहीं। मई 2016 में मां के निधन के बाद परिवार की राजनीतिक विरासत हिमाद्री ने संभाला। भाजपा सांसद दलपत सिंह परस्ते के जून 2016 में निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने हिमाद्री को अवसर दिया लेकिन वे भाजपा के ज्ञान सिंह से हार गईं। सितंबर 2017 में भाजपा नेता नरेंद्र मरावी से विवाह के बाद इनका राजनीतिक घराना भी बदल गया। 2019 का संसदीय चुनाव इन्होंने भाजपा के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की। भाजपा ने एक बार फिर इन पर भरोसा जताते हुए इस बार मैदान में उतारा है।

दलपत सिंह परस्ते सबसे ज्यादा 5 बार जीते

इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए आम चुनावों में पहली बार भारतीय लोकदल के टिकट पर दलपत सिंह सांसद बने। दो बार कांग्रेस के दलबीर सिंह से हारने के बाद 1989 में दूसरी जीत जनता दल टिकट पर हासिल की।1991 के आमचुनाव में दलबीर सिंह से हारने के बाद ये 8 साल बाद 1999 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते। 2004 का चुनाव जीतने के बाद 2009 में भाजपा ने टिकट नरेंद्र मराबी को दिया तो वे कांग्रेस की राजेश नंदिनी (दलबीर सिंह की पत्नी) से चुनाव हार गए। इसकी पूर्ति 2014 में दलपत सिंह परस्ते ने राजेश नंदिनी सिंह को हरा कर की। यह दलपत सिंह का अंतिम चुनाव था। जून 2016 में इनका निधन हो गया। इनकी बेटी रूपमती ने राजनीतिक विरासत संभालने का प्रयास तो किया लेकिन वे जिला पंचयात अध्यक्ष से आगे नहीं बढ़ सकीं।

ज्ञान सिंह ने खोला था भाजपा का खाता

शुरूआत से ही समाजवादियों का गढ़ रहे इस संसदीय क्षेत्र में भाजपा को पहली जीत 1996 में तब मिली जबकि अनूपपुर व शहडोल जिले से बाहर निकल कर उमरिया जिले के नौरोजाबाद के ज्ञान सिंह को टिकट दिया। ज्ञान सिंह ने 1996 में जीत दर्ज की और भाजपा का खाता खुला। इसके बाद वे 1998 में लगातार दूसरी बात जीते। इस बीच भाजपा समाजवादियों के बीच सेंध लगाने में कामयाब हो गई और समाजवादी दलपत सिंह को 1999 में पहली बार भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा। दलपत सिंह ने न सिर्फ ये चुनाव बल्कि 2004 का चुनाव भी भाजपा के लिए जीता। इस तरह इस संसदीय सीट की सांसदी फिर राजेन्द्रग्राम के परस्ते परिवार के पास चली गई। इसके बाद ज्ञान सिंह को करीब 18 साल बाद 2016 के उपचुनाव में तब अवसर मिला जब दलपत सिंह परस्ते का निधन हो गया। एक बार भी पंचवर्षीय कार्यकाल पूरा नहीं करने वाले ज्ञान सिंह को इसके बाद इसलिए अवसर नहीं मिला क्योंकि उनसे चुनाव हारने वाली कांग्रेस की हिमाद्री सिंह सितंबर 2017 में विवाह उपरांत भाजपा की हो चुकी थीं। 2019 में हिमाद्री के सांसद बनते ही फिर इस संसदीय सीट की राजनीति राजेन्द्र ग्राम पहुंच गई।

ये भी कम दिलचस्प नहीं-

- अनूपपुर जिला स्थापना के 15 वर्षो के बाद भी जिले की सबसे बड़ी जनपद पंचायत पुष्पराजगढ़ का मुख्यालय राजेन्द्रग्राम आज भी ग्राम पंचायत किरगी में शामिल है। तत्कॉलीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद एक बार यहां आए थे उनके नाम पर स्थान का नाम राजेंद्रग्राम हो गया।

- रीवा राजघराने का हिस्सा रहने के दौरान गुलाब सिंह क्षेत्र में आए तो अंचल का नामकरण अपने पोते पुष्पराज सिंह के नाम पर करते हुए पुष्पराजगढ़ कर दिया।

- दिलचस्प वाकया यह भी कि 1962 में संसदीय क्षेत्र का नाम शहडोल किए जाने के बावजूद इसमें शामिल तीन जिलों में से केवल शहडोल ही ऐसा रहा, जहां से एक बार भी कोई सांसद नहीं बना।

शहडोल संसदीय क्षेत्र : परिवारवाद की मिसाल

कुल मतदाता : 17,74,484 (पुरूष : 8,99,911 - महिला : 8,74,553 - थर्ड जेंडर : 20)

Created On :   26 March 2024 11:00 PM IST

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