कभी प्रगतिशील आंदोलनों की नर्सरी रहा शिवमोग्गा अब सांप्रदायिक गतिविधियों का बन रहा गढ़
- शहर में फिर से कर्फ्यू
डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। शिवमोग्गा का नाम समाजवादी, किसान, दलित और महिला केंद्रित आंदोलनों का पर्याय रहा है। कहा जाता है कि यहां से 1951 कागोडु सत्याग्रह ने किसानों द्वारा जोत की गई भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर देश में भूमि सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया था।
हालांकि, यह क्षेत्र अब एक लंबा सफर तय कर चुका है और अब कर्नाटक के सांप्रदायिक आकर्षण के केंद्र में बदल रहा है। शिवमोग्गा में गणेशोत्सव में व्यापक हिंसा देखी जाती है, 1980 के दशक के बाद गंभीर मामलों में देखते ही गोली मारने के आदेश भी जारी किए जा चुके हैं। कभी प्रगतिशील आंदोलनों की नर्सरी रहा यह क्षेत्र अब बदला लेने और छुरा घोंपने की घटनाओं का गवाह बन रहा है।
हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा, शिवमोग्गा से आने वाले गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र जैसे राजनीतिक दिग्गज राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन वे हिंसा के उस दुष्चक्र का समाधान नहीं ढूंढ पा रहे हैं, जिसमें शहर फंस गया है। 1950 से 1980 के बीच, शिवमोग्गा ने जन-समर्थक आंदोलनों का एक समूह देखा। यहां के लोगों ने हाथ से मैला ढोने की व्यवस्था पर सवाल उठाया और सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़े हुए। राम मनोहर लोहिया, समाजवादी राजनीतिक नेता, शिवमोग्गा का दौरा करने के लिए किसानों द्वारा जमीन पर अपने अधिकार की मांग को लेकर कागोडु आंदोलन देखने गए।
पुलिस के मुताबिक, शिवमोग्गा में आठ महीने में तीन सांप्रदायिक झड़पें हो चुकी हैं। बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्षा की निर्मम हत्या ने राष्ट्रीय समाचार बना दिया। इसके बाद वीर सावरकर की प्रतिमा की स्थापना को लेकर छुरा घोंपने की घटनाएं हुईं। हर्षा की हत्या के बाद आठ दिनों से अधिक समय तक निषेधाज्ञा लागू की गई थी। 75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान छुरा घोंपने की घटनाओं के बाद शहर में फिर से कर्फ्यू लग गया।
कांग्रेस विधायक और प्रदेश मीडिया प्रभारी प्रियांक खड़गे ने कहा कि बीजेपी ने शिवमोग्गा को सांप्रदायिक प्रयोगशाला बना दिया है। जिस क्षेत्र से गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र रहते हैं, यदि 8 महीने में तीन सांप्रदायिक दंगे होते हैं, तो क्या यह उनकी लापरवाही है या मौन स्वीकृति है? उन्होंने कहा कि झड़पों में 300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। वरिष्ठ पत्रकार एन. एम. रविकुमार ने कहा कि इस क्षेत्र में बिना किसी हिंसा के सबसे बड़ी सामाजिक क्रांतियां लाई गई हैं। धार्मिक मठों और जमींदारों से भूमि छीन ली गई और गरीब किसानों को वितरित कर दी गई। यह भूमि अल्लामा और अक्का महादेवी की जन्मस्थली है।
अल्लामा ने जाति व्यवस्था को चुनौती देते हुए अनुभव मंडप के रूप में दुनिया की पहली संसद का निर्माण किया। अक्का महादेवी सदियों पहले लैंगिक समानता के लिए अपनी लड़ाई के लिए जानी जाती हैं।उन्होंने कहा कि शिवमोग्गा के लोगों ने 90 के दशक में नक्सली आंदोलन द्वारा प्रतिपादित हिंसा को खारिज कर दिया था। इसी तरह, लोग वर्तमान सांप्रदायिक हिंसा से तंग आ चुके हैं। भाजपा सांप्रदायिक झड़पों की लाभार्थी रही है। शिवमोग्गा शहर में चुनाव में दलित और मुस्लिम निर्णायक कारक रहे हैं। संघर्ष दलित वोटों का भाजपा की ओर ध्रुवीकरण कर रहे हैं, जिससे उसकी जीत सुनिश्चित हो रही है।
दिवंगत एस. बंगारप्पा जैसे समाजवादी नेता, जो शिवमोग्गा के थे, भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी के साथ पहचाने जाने वाले समाजवादी नेता अगली पीढ़ी को समाजवादी विचारधारा को स्थानांतरितकरने में विफल रहे, जिससे हिंदुत्व और भाजपा का उदय हुआ। सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के राज्य महासचिव अफसार कोडलीपेट ने कहा कि पूर्व मंत्री के एस. ईश्वरप्पा वर्तमान समय में राजनीतिक शरणार्थी बन गए हैं। बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्षा का परिवार ईश्वरप्पा के प्रतिनिधित्व वाले निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के टिकट के लिए प्रयास कर रहा है। एसडीपीआई पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाए जाने के बारे में पूछे जाने पर अफसार ने कहा कि बीजेपी ने एक साल पहले एसडीपीआई पर एक हिंदू युवक की हत्या का आरोप लगाने की कोशिश की थी। जांच में पता चला कि संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवाद में उसकी हत्या की गई थी।
उन्होंने कहा, दिल्ली में इंडिया गेट में मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों के 60,000 नाम हैं। शिवमोग्गा मॉल में, एक भी मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी की तस्वीर नहीं लगाई गई थी। इसलिए, वीर सावरकर के फ्लेक्स को लगाने पर सवाल उठाया गया था। हिंदू कार्यकर्ताओं ने मॉल में नौ साल के लड़के के साथ मारपीट की है और एक मुस्लिम युवक को चाकू मार दिया, जिस पर कभी ध्यान नहीं गया। अफसार ने कहा कि मुस्लिम मौलाना, व्यापारी और जनता हर साल बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। इस बार स्वतंत्रता दिवस मनाते हुए हिंदू कार्यकर्ताओं ने वीर सावरकर का बैनर लगाने के बहाने कार्यक्रम को निशाना बनाया है।
कर्नाटक के इतिहास में शिवमोग्गा को हमेशा संघर्ष की भूमि के रूप में पहचाना गया है। इस क्षेत्र ने राष्ट्र कवि कुवेम्पु को जन्म दिया है, जिन्होंने विश्व मानव (सार्वभौमिक भाईचारे) की अवधारणा का प्रचार किया, जो अब सांप्रदायिक विभाजन के बाद दांव पर लगा है। आज शिवमोग्गा को पुलिस का गढ़ बना दिया गया है। विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही शहर में और अधिक हिंसा की आशंका जताई जा रही है।
आईएएनएस
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Created On :   27 Aug 2022 9:30 PM IST