नेहरू ने राजशाही के खिलाफ लोगों को किया एकजुट
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नेहरू ने राजशाही व उसके उत्पीड़न के खिलाफ लोगों को एकजुट किया। इसके लिए उन्होंने ऑल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कान्फ्रेंस का गठन किया। नेहरू ने व्यक्तिगत रूप से रियासतों की आलोचना की और संदेश दिया कि वह दासता का विरोध करते हैं, जब उसी देश का एक और हिस्सा गुलामी की जंजीरों से आजादी की तलाश में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष कर रहा था। वह लगातार उग्र भाषणों के जरिए अपने मिशन के प्रति प्रतिबद्ध थे।
स्वतंत्रता की ओर इस लड़ाई में नेहरू और सरदार पटेल ने राजकुमारों के अहंकार को परास्त किया और उन्हें विभिन्न तरीके से देश की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए मनाने का प्रयास किया।
दासता का यह विरोध उन्हें इतिहास में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है। उनकी दृष्टि दूरगामी थी, उन्होंने कल को देखा व एकीकृत भारत की योजना बनाई। स्वतंत्रता के विरोधी त्रावणकोर के शक्तिशाली दीवान सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के सामने रो पड़े। उन्होंने कहा कि अब नेहरू व पटेल के कारण उनका भारत में विलय ही एकमात्र विकल्प बचा है।
नेहरू ने देशी राजाओं को पूरी तरह कमजोर कर दिया। हर अवसर पर उनकी आलोचना की। उनके विचारों का विरोध किया। उन्हें भारत के एकीकरण के प्रति प्रेरित व मजबूर किया।
उन्होंने दो स्तरीय दृस्टिकोण अपनाया। सर्वप्रथम देशी राजाओं के शासन में रहने वाले लोगों को स्वतंत्रता के प्रति जागरूक किया। दूसरे रियासतों के प्रति सख्त रवैया भी अपनाया। उन्होंने नाभा, फरीदकोट और कश्मीर में अत्याचारी शासन का डटकर विरोध किया।
उन्होंने हर अवसर पर राजकुमारों पर सार्वजनिक रूप से हमला किया, ताकि उन्हें यह बताया जा सके कि वे कहां खड़े हैं। हर कदम पर उनका यह स्पष्ट कहना था कि उनका अपना अलग कोई भविष्य नहीं है। स्वतंत्र भारत में विलय ही एकमात्र रास्ता है।
नेहरू ने देशाी राजाओं के खिलाफ अपने अभियान को पूरी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ाया। वह अपने मिशन के प्रति कभी कमजोर नहीं पड़े। उन्होंने हर विपरीत स्थिति का सामना कर राजाओं को अपने राज्य का भारत में विलय करने को मजबूर किया। लेकिन इतिहास में नेहरू को कभी भी उनका अधिकार नहीं दिया गया। मामले में उनके योगदान को कम महत्व दिया गया।
भारत के निर्माण में एक अंतरराष्ट्रीय नेता की पहचान रखने वाले नेहरू ने एक स्वतंत्र और एकीकृत भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने प्रांतों और रियासतों को एकसूत्र में बांधा। माउंटबेटन के साथ उनकी दोस्ती से उनका मिशन कुछ आसान हुआ। इसके कारण देशी राजाओं को ब्रिटिश सरकार का अपेक्षित समर्थन व सहयोग नहीं मिला।
अपने मिशन के प्रति मजबूत इरादा रखने वाले नेहरू ने यह तय किया कि आधुनिक भारत में दासता की कोई जगह नहीं होगी। हर ओर स्वतंत्रता का परचम लहराएगा। हर आदमी पूरी गरिमा के साथ आजाद भारत में सांस लेगा। नेहरू की व्यापक दृष्टि का ही परिणाम है कि देश ने एकीकरण देखा। देशी रियासतों व प्रांतों को एकसूत्र में पिरोते देखा। कानून के समक्ष सभी समान माने गए। किसी को कोई विशेषाधिकार नहीं था।
एक बार जब सरदार पटेल और वीपी मेनन को अधिकार सौंप दिया गया तो उन्होंने इस अधिकार का भरपूर प्रयोग किया। देशी राजाओं की आशाओं पर पानी फेर दिया। उनकी आक्रामकता देख राजे-रजवाड़े सहम गए। सबको महसूस हो गया कि अब उनका स्वतंत्र अस्तित्व संभव नहीं है। उनका भविष्य भारत के साथ ही है। इस कार्य में भारत के नेताओं को गवर्नर जनरल माउंटबेटन का समर्थन मिला।
नेहरू, पटेल व मेनन की तिकड़ी ने अखंड भारत का निर्माण किया, जो समय की कसौटी पर खरा उतरा। बार-बार आने वाली बाधाओं के बावजूद देश एक इकाई के रूप में खड़ा रहा।
आईएएनएस।
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Created On :   13 Nov 2022 3:00 PM IST