मायावती से बड़े मुस्लिम नेताओं का हो रहा मोहभंग! पश्चिमी यूपी में हाथी की सवारी से उतरे कई नेता
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। यूपी विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में बंपर वेकैंसी निकल रही है। पर, ये वेकैंसी किसी जॉब के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों में शामिल होने के लिए है। दरअसल चुनाव से पहले प्रदेश में पार्टी बदलने का सिलसिला तेजी से जारी है। हर पार्टी दूसरे दलों के उन नेताओं को पार्टी में शामिल कराने की कोशिश में जुटी हैं, जिनका अपने क्षेत्र में विशेष प्रभाव है और आगामी विधानसभा चुनाव में उनके आने से पार्टी के हिस्से में अच्छा वोट आ सकता है। और जिस पार्टी का नेता दल बदलता है वो दल अपने लिए एक नए मुफीद चेहरे की तलाश में जुट जाता है। इसी कड़ी में सपा विपक्षी पार्टियों के कद्दावर नेताओं को अपने पाले में मिलाने के लिए जुटी है। बता दें कि पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के कद्दावर मुस्लिम नेता और पूर्व सांसद कादिर राणा ने बसपा छोड़ अखिलेश यादव की मौजूदगी में सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। ये बसपा को बहुत बड़ा झटका लगा है। सूबे में बढ़ती चुनावी गरमी के बीच सभी नेता अपने सुरक्षित ठिकानों को ढूढ़ने में लगे हैं। यूपी के मौजूदा सियासी माहौल में मायावती से मुस्लिम नेताओं का मोहभंग होता नजर आ रहा है, तो वे बसपा छोड़कर सपा या फिर दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं। आपको बता दें कि पश्चिमी यूपी से तमाम मुस्लिम नेता हाथी से उतरकर सपा की साइकिल पर सवार हो रहे हैं।
कादिर राणा का बसपा से मोहभंग
गौरतलब है कि कादिर राणा मुजफ्फरनगर जिले के कद्दावर मुस्लिम नेताओं में शुमार हैं। बीते रविवार को उन्होंने अखिलेश यादव की मौजूदगी में सपा की सदस्यता ग्रहण कर बसपा को बड़ा झटका दिया है। माना जा रहा है कि पश्चिमी यूपी के सबसे बडे़ मुस्लिम चेहरों में कादिर राणा का भी नाम आता है। बसपा से कादिर राणा जैसा मुस्लिम चेहरा हटने के बाद पश्चिमी यूपी में बसपा की पकड़ कमजोर हो गई है। अब जिले में कद्दावर नेताओं की कमी हो गई है। बसपा की ऐसे ही हालत बिजनौर और हापुड़ और पश्चिमी यूपी के दूसरे जिलों का है, जहां मुस्लिम नेताओं का बसपा से मोहभंग हुआ है और उन्होंने दूसरी पार्टी का दामन थामा। सपा से अपने राजनीतिक करियर शुरू करने वाले कादिर राणा ने 1993 में चुनाव हारने के बाद भी कुछ महीने बाद ही पार्टी टिकट पर एमएलसी चुने गए थे। आरएलडी के टिकट पर विधायक और बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता। बाद में 2013 के मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगों के बाद हालात में उनके लिए जगह बनाना मुश्किल हो गया था। अब राणा की सपा में फिर से घर वापसी हुई है।
बिजनौर से हापुड़ तक हाथी हुआ कमजोर
आपको बता दें बसपा इस वक्त बुरे दौर से गुजर रही है। हाल ही में बिजनौर में पूर्व विधायक शेख सुलेमान बसपा से सपा में शामिल हो चुके है। बसपा से दो बार के विधायक रहे शेख मोहम्मद गाजी भी हाथी से उतरकर चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी में शामिल हो चुके हैं। शहनवाज राणा पहले ही बसपा छोड़कर आरएलडी में शामिल हो गए हैं। इसी तरह हापुड़ से विधायक असलम चौधरी भी बसपा छोड़कर सपा के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। अब हाथी पश्चिमी यूपी से एकदम कमजोर पड़ गया है।
2012 से 2017 तक हाथी की स्तिथि
गौरतलब है कि 2012 विधानसभा चुनाव के बाद से बसपा का सियासी ग्राफ नीचे ही गिरता रहा। लोकसभा चुनाव में तो खाता तक नहीं खुला था। बता दें कि बसपा 2017 विधानसभा चुनाव में भी अपनी स्थिति नहीं सुधार सकी और महज 19 सीटों पर ही सिमट गई। ताजा आंकड़ों के मुताबिक बसपा के पास अब केवल 7 ही विधायक बचे हैं और बाकी विधायक बागी हो गए। हालांकि बसपा अबकी बार पूरी तैयारी के साथ आगामी विधान सभा चुनाव प्रचार में जुटी है।
Created On :   18 Oct 2021 5:59 PM IST