ज्ञानवापी केस में योगी के पावर ऑफ अटॉर्नी मामले को लेकर गहराया विवाद

Controversy deepens over Yogis power of attorney case in Gyanvapi case
ज्ञानवापी केस में योगी के पावर ऑफ अटॉर्नी मामले को लेकर गहराया विवाद
यूपी ज्ञानवापी केस में योगी के पावर ऑफ अटॉर्नी मामले को लेकर गहराया विवाद

डिजिटल डेस्क, वाराणसी। विश्व वैदिक सनातन संघ (वीवीएसएस) के प्रमुख जितेंद्र सिंह बिसेन, जिन्होंने श्रंगार गौरी-ज्ञानवापी मामले में कानूनी मुकदमा दायर किया है, ने कहा है कि ज्ञानवापी मुद्दे से संबंधित मामलों के पावर ऑफ अटॉर्नी (पीओए) का संकलन पूरा हो चुका है और 11 नवंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपे जाने की संभावना है। बिसेन ने कहा, हम ज्ञानवापी मस्जिद और उसके परिसर से जुड़े सभी मामलों के पावर ऑफ अटॉर्नी के साथ तैयार हैं। हम इसे 11 नवंबर को मुख्यमंत्री को सौंप सकते हैं।

इस बीच, वाराणसी के संभागीय आयुक्त कौशल राज शर्मा ने इसे पब्लिसिटी स्टंट करार दिया और कहा कि इस पर मुख्यमंत्री की कोई सहमति नहीं है और यदि इस संबंध में कोई रजिस्ट्री की गई थी, तो दोषी व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाएगी।

31 अक्टूबर को, वीवीएसएस प्रमुख जितेंद्र सिंह बिसेन ने मुख्यमंत्री को पावर ऑफ अटॉर्नी सौंपने के फैसले के पीछे उनके और उनके परिवार के सदस्यों के जीवन के लिए खतरे का हवाला देते हुए कहा था कि, वह नहीं चाहते थे कि चल रहे मामलों को अचानक छोड़ दिया जाए और उसके या उसके परिवार के साथ अनहोनी हो जाए।

सरकार के एक प्रवक्ता ने इससे पहले एक बयान में कहा था कि, मुख्यमंत्री कार्यालय का विश्व वैदिक सनातन संघ की उस घोषणा से कोई लेना-देना नहीं है, जिसमें उन्होंने श्रृंगार गौरी मुद्दे के संबंध में संगठन द्वारा दायर मामलों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मुख्तारनामा सौंपने की घोषणा की थी।

बिसेन का यह कदम तब आया जब पुलिस आयुक्तालय, वाराणसी ने उनके बयानों को निराधार और अप्रासंगिक बताते हुए उन्हें कानूनी नोटिस दिया और उन्हें तीन दिनों के भीतर अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। वाराणसी के पुलिस आयुक्त सतीश गणेश ने कहा, यह बेतुका है। वीवीएसएस प्रमुख का कदम अप्रासंगिक है क्योंकि आप संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को नहीं खींच सकते। वीवीएसएस या तो वादी है या ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित लगभग पांच मामलों में वादी का प्रतिनिधित्व करता है। इनमें से तीन केस सिविल कोर्ट में, एक फास्ट ट्रैक कोर्ट में और दूसरा जिला कोर्ट में है।

इन मामलों में चल रहा श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मामला और आदि विशेश्वर विराजमान मामला शामिल है। ज्ञानवापी मस्जिद के संरक्षक अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी (एआईएमसी) ने भी इसे एक अव्यवहारिक कदम और एक प्रचार स्टंट बताया।

एआईएमसी का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वरिष्ठ वकील मिराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा, एक बार पावर ऑफ अटॉर्नी सौंप दिए जाने के बाद योगी आदित्यनाथ के लिए कानूनी औपचारिकताएं पूरी करना संभव नहीं है। यह सिर्फ एक पब्लिसिटी स्टंट है।

 

 (आईएएनएस)

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Created On :   9 Nov 2022 11:00 AM IST

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