गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों से था आचार्य धर्मेंद्र का संबंध- मुख्यमंत्री
- गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों से था आचार्य धर्मेंद्र का संबंध- मुख्यमंत्री
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आचार्य धर्मेंद्र का गोरक्षपीठ से तीन पीढ़ियों से गहरा संबंध था। जब भी गोरक्षपीठ से निमंत्रण मिलता था, वे वहां पहुंचते थे। उनके मन में सदैव अपनत्व का भाव झलकता था। आचार्य धर्मेंद्र जी महाराज के श्रीचरणों में नमन करते हुए गोरक्षपीठ व सनातन हिंदू धर्म के अनुयायियों की तरफ से नमन व श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
सीएम गुरुवार को राजस्थान में जयपुर के विराटनगर स्थित पावनधाम श्री पंचखंड पीठ में आचार्य धर्मेंद्र जी महाराज के त्रयोदश कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान स्वामी सोमेंद्र शर्मा का चादरपोशी कार्यक्रम किया गया। कहा कि 1966 के गोरक्षा आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग लेने वाली यही परंपरा है। गोशाला के नाम पर एक कृति भी स्वामी धर्मेंद्र जी महाराज ने दी थी। गोशाला आज भी साहित्यिक व भारत की सनातन धर्म, गोरक्षा की परंपरा से जोड़ती है।
उन्होंने कहा श्रीपंचखंड पीठ ने सदैव सभी सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभायी। भारत विभाजन के समय विरोध करने के लिए देश के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो आंदोलन चल रहा था, उसमें भी इस पीठ की भूमिका थी। महात्मा रामचंद्र वीर जी महाराज व स्वामी आचार्य धर्मेंद्र जी महाराज आंदोलन में कूद पड़े थे। आजादी के उपरांत जब भी युद्ध थोपे गए तो देश के हित में नागरिक के रूप में हमारा दायित्व क्या होना चाहिए। उसके भी निर्वहन के लिए जनजागरूकता अभियान संतों के नेतृत्व में चल रहे थे, उसमें भी पीठ बढ़चढ़ कर भाग ले रही थी।
सीएम ने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन 1949 से प्रारंभ होकर 1983 में रामजन्मभूमि समिति के गठन होने के साथ बढ़ता है। देश में इस आंदोलन को विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में संतों ने धार दी थी। तब लोग बोलते थे, कोई परिणाम नहीं आने वाला है पर हम तो भगवान श्रीकृष्ण के कर्मण्येवाधिकारस्ते, मां फलेषु कदाचन के भाव पर विश्वास करते हैं। हम फल की इच्छा नहीं, कर्म पर विश्वास करते हैं। संतों ने अपने आंदोलन से इसे साबित किया, इसलिए परिणाम आना ही था। आज अयोध्या में भव्य श्रीराममंदिर कार्य भी प्रारंभ हो चुका है। पीएम ने अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर कार्यक्रम को बढ़ाया। अब तक 50 फीसदी से अधिक कार्य बढ़ चुका है। इस दौरान भी आचार्य जी अयोध्या धाम पधारे। उनके मन में खुशी थी। उस आंदोलन के साथ उन्होंने खुद को समर्पित करके इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में योगदान दिया, यही है भारत के संतों की परंपरा। संत अपनी परंपरा एवं संस्कृति से जुड़कर अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करता है। यही एक संत धर्म भी है। सम-विषम परिस्थितियों में अपने पद से विचलित न होकर सनातन हिंदू धर्म के लिए और विराट हिंदू समाज की रक्षा के लिए उन्होंने बढ़चढ़कर भाग लिया।
(आईएएनएस)।
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Created On :   6 Oct 2022 11:00 PM IST