विधानसभा चुनाव 2023: राजस्थान के अलवर में होता है बहुकोणीय मुकाबला

राजस्थान के अलवर में होता है बहुकोणीय मुकाबला
  • अलवर जिले में कुल 11 विधानसभा सीट
  • 8 सीटें सामान्य वर्ग , 2 सीट एससी और 1 सीट एसटी
  • जिले में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अलवर जिला राजस्थान में प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है। अलवर जिले में कुल 11 विधानसभा सीट हैं। इनमें से 8 सीटें सामान्य वर्ग , 2 सीट अनुसूचित जाति और 1 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। सामान्य सीटों में तिजारा, किशनगढ़बास, मुंडावर, बहरोड़, बानसूर, थानागाजी, अलवर शहर, रामगढ़ है, जबकि अलवर ग्रामीण और कठुमार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। राजगढ़ सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। जिले में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी है। यहां करीब 15 फीसदी मुस्लिम आबादी है। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता है। बीएसपी कुछ सीटों पर खेल बिगाड़ देती है। राजस्थान की राजनीति में अलवर जिला बेहद खास स्थान रखता है, जिस राजनैतिक दल ने अलवर में जीत हासिल की, वहीं राजस्थान की सियासी गद्दी पर बैठा। अलवर को लेकर कहा जाता है कि राजस्थान की सत्ता का गलियारा अलवर से ही गुजरता है। अलवर जिले को पूर्वी राजस्थान का सिंहद्वार माना जाता है। राजस्थान विधानसभा में कुल 200 सीटें हैं। इनमें 142 सीट सामान्य, 33 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं।

पूरे जिले की समस्याओं की बात की जाए तो धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दें मुख्य होते है। अलवर जिला बेहतर कनेक्टिलिटी और अधिक औद्योगिक विकास की राह देख रहा है। वैसे आपको बता दें लंबे समय तक अलवर जिले की पहिचान औद्योगिक जिले के रूप में रही है। अलवर में पर्यावरण और पर्यटन की ओर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। यहां पेयजल, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्थाओं की हालात खराब है।

अलवर ग्रामीण विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस के टीकाराम जूली

2013 में बीजेपी के जयराम जाटव

2008 में कांग्रेस के टीकाराम जूली

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित अलवर ग्रामीण विधानसभा सीट 2008 के परिसीमन में अस्तित्व में आई। तब से यहां दो बार 2008 और 2018 में कांग्रेस और 2013 में बीजेपी ने जीत दर्ज की है। एससी वोटर्स अधिक होने की वजह से यहां बीजेपी कांग्रेस के बाद बीएसपी भी मजबूत स्थिति में नजर आती है। यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। अलवर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दलों की नजर एससी वोटरों पर है। इस विधानसभा क्षेत्र में एससी के अलावा मेव, माली, गुर्जर, जाट, ब्राह्मण व मीणा वोटरों की संख्या अधिक है।

बानसूर विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से शकुंतला रावत

2013 में कांग्रेस से शकुंतला रावत

2008 में बीजेपी से रोहिताश कुमार

2003 में कांग्रेस से महिपाल सिंह

1998 में बीएसपी से जगत सिंह

बानसूर विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ी आबादी गुर्जर समुदाय की है, जबकि इसके बाद यादव और राजपूत मतदाताओं की संख्या अत्यधिक है। इस सीट पर जीत और हार प्रमुख तौर पर यही तीन जातियां तय करती हैं। 2008 के परिसीमन के बाद यहां की चुनावी स्थितियां बदल गई। बानसूर विधानसभा क्षेत्र से सबसे अधिक बार जीतने का रिकॉर्ड बानसूर के पहले विधायक बद्री प्रसाद शर्मा के नाम है, बद्री प्रसाद शर्मा ने पहला चुनाव 1951 में लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद वे 1957, 1965, 1967, 1972 और 1980 के उपचुनावों में भी निर्वाचित हुए। उनके बाद तीन बार जीतने का रिकॉर्ड जगत सिंह दायमा और रोहिताश शर्मा के नाम है। वहीं मौजूदा विधायक शकुंतला रावत मोदी लहर में भी यह सीट जीतने में सफल रहीं। शकुंतला दो बार से विधायक है।

रामगढ़ विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस के साफिया जुबेर

2013 में बीजेपी के ज्ञान देव आहूजा

2008 में बीजेपी के ज्ञान देव आहूजा

रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में इस बार मुकाबला कांटे का होता नजर आ रहा है। इस विधानसभा क्षेत्र में मेव, जाट, पुरुषार्थी, माली, ओड राजपूत, गुर्जर, वैश्य व ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या अधिक है। बीजेपी यहां हिंदुत्व को मुद्दा बनाती है। बीजेपी हिंदुत्व चेहरे को और कांग्रेस मुस्लिम प्रत्याशी को यहां चुनावी मैदान में मौका देती आई है। यहां सबसे अधिक संख्या मुसलमानों की है, उनमें से भी मेव मुस्लिम सबसे अधिक है, उसके बाद एससी वोटर्स का नंबर आता है। विधानसभा क्षेत्र में राजपूत, जाट, ब्राह्मण, वैश्य, प्रजापत और गुर्जर मतदाता भी अहम भूमिका निभाते है।

तिजारा विधानसभा सीट

2018 में बीएसपी से संदीप कुमार

2013 में बीजेपी से ममन सिंह

2008 में कांग्रेस से ऐमानुद्दीन खान

सामान्य सीट तिजारा में जातियों का मिला जुला रूप देखने को मिलता है। 2018 की विधानसभा चुनाव में तिजारा विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। दूसरे नंबर पर कांग्रेस और तीसरे नंबर पर बीजेपी रही है। जबकि 2013 में बीजेपी और 2008 में कांग्रेस ने चुनाव जीता था। बीएसपी यहां मजबूत स्थिति में नजर आती है। कभी यहां अहीर और यादवों का प्रभुत्व रहा करता है लेकिन वर्तमान समय में मुस्लिम मतदाताओं का दबदबा है। वहीं विधानसभा क्षेत्र में 13 फीसदी दलित वोटर्स है जो चुनाव में अहम भूमिका अदा करते है।

मुंडावर विधानसभा सीट

2018 में बीजेपी से मनजीत चौधरी

2013 में बीजेपी से धर्मपाल चौधरी

2008 में कांग्रेस से मेजर ओपी यादव

मुंडावर विधानसभा सीट पर 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और बीएसपी के बीच हुआ था। बसपा यहां मजबूत स्थिति में नजर आती है। यहां जाट और यादव समाज का दबदबा है। यहां बीजेपी और कांग्रेस इन्हीं दोनों समुदायों से प्रत्याशी को मौका देती है।

अलवर शहर विधानसभा सीट

2018 में बीजेपी से संजय शर्मा

2013 में बीजेपी के बनवारी लाल सिंघल

2008 में बीजेपी के बनवारी लाल सिंघल

2003 में कांग्रेस के भंवर जितेंद्र सिंह

1998 में कांग्रेस के भंवर जितेंद्र सिंह

अलवर शहर विधानसभा सीट सामान्य सीट है 1998 से लेकर 2018 तक यहां से अधिक बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है। यहां 18 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाता, वहीं एसटी वोटर्स 5 फीसदी,मुस्लिम आबादी करीब 3 फीसदी। यहां बीजेपी, कांग्रेस और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है।

बहरोड़ विधानसभा सीट

2018 में निर्दलीय बलजीत यादव

2013 में बीजेपी से डॉ जशवंत सिंह यादव

2008 में बीजेपी से जशवंत सिंह यादव

2003 में कांग्रेस से डॉ करन सिंह यादव

1998 में कांग्रेस से डॉ करन सिंह यादव

राजस्थान और हरियाणा के बॉर्डर पर बसा बहरोड़ राठ क्षेत्र के नाम से फेमस है। जो राजस्थान का सिंहद्वार भी है। जातीय समीकरण की बात की जाए तो बहरोड में 70 हजार यादव मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। यादवों के बाद अनुसूचित जाति और जनजाति मतदाताओं की भी अच्छी खासी तादाद है। इनकी आबादी 50 हजार के करीब है। इनके अलावा गुर्जर, सैनी, राजपूत समुदाय के वोटर्स भी है। यहां एससी और एसटी वोटर्स प्रत्याशी की हार जीत में अहम भूमिका में होते है। 2018 से पहले यहां करीब 25 साल तक बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, 2018 में यहां निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज कर बीजेपी और कांग्रेस के लिए चिंता खड़ी कर दी।

कठूमर विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से बाबू लाल बैरवा

2013 में बीजेपी से मंगल राम

2008 में बीजेपी से बाबूलाल बैरवा

2003 में कांग्रेस से माहिर आजाद

1998 में बीएसपी से माहिर आजाद

कठूमर विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति सुरक्षित सीट है। यहां बीजेपी कांग्रेस के साथ साथ बीएसपी का दबदबा देखने को मिलता है। बीएसपी के कारण यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है।

थानागाजी विधानसभा सीट

2018 में निर्दलीय कांति प्रसाद

2013 में बीजेपी से हेम सिंह भड़ाना

2008 में बीजेपी से हेम सिंह भड़ाना

2003 में निर्दलीय कांति प्रसाद

1998 में कांग्रेस से कृष्ण मुरारी

शुरुआत में थानागाजी विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, लेकिन पिछले तीन दशकों में यहां की राजनीतिक तस्वीर लगातार बदलती नजर आ रही है। यहां हुए पिछले सात विधानसभा चुनावों में बीजेपी चार बार जीत हासिल करने में कामयाब रही है, जबकि दो बार निर्दलीय और एक बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है।

थानागाजी विधानसभा क्षेत्र में ज्यादातर मतदाता मीना समुदाय से आते हैं, जबकि इसके बाद सबसे ज्यादा प्रभाव गुर्जरों का है। बागरा ब्राह्मण का भी यहां विशेष प्रभाव माना जाता है। इस सीट पर लंबे समय से त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। पिछले तीन दशकों में कांग्रेस के खाते में यहां सिर्फ एक बार जीत मिली है। जबकि बीजेपी के बागी ही निर्दलीय रूप में उनके लिए न केवल मुसीबत बनते है बल्कि मात भी देते है। मौजूदा वक्त में यहां निर्दलीय विधायक है।

राजगढ़ -लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से जोहरी लाल मीना

2013 में एनपीईपी से गोलमा

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। मीणा बहुल क्षेत्र होने के कारण इसे मीणा वाटी के नाम से भी जाना जाता है। इस विधानसभा क्षेत्र में मीणाें के अलावा मेव, एससी, ब्राह्मण, माली, जाट, गुर्जर आदि जातियों का बड़ा वोट बैंक है। मीणा और मेव वोटर चुनावी परिणाम की दिशा तय करते है।

किशनगढ़बास विधानसभा सीट

2018 में बीएसपी से दीपचंद खेरिया

2013 में बीजेपी से रामहेत सिंह

2008 में बीजेपी से रामहेत सिंह

2008 के परिसीमन से पहले मेवात का किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र खैरथल विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लेकिन, 2008 से इसे किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र के नाम से जानने लगे। आपको बता दें खैरथल विधानसभा क्षेत्र 1967 से 2003 तक अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित था। हालांकि, 2008 में परिसीमन के बाद किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र आरक्षित से सामान्य हो गया।

किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र को जिला बनाने की मांग को पूरा कर बीएसपी के वर्तमान विधायक दीपचंद खेरिया अबकी बार के चुनाव में भी मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं। 2008 के परिसीमन के बाद किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो इस सीट पर दो बार जीतने का रिकॉर्ड बीजेपी के रामहेत यादव के नाम है, जबकि एक बार दीपचंद खेरिया ने जीत दर्ज की है। खैरथल विधानसभा क्षेत्र से चार बार जीतने का रिकॉर्ड संपत राम के नाम था। संपतराम ने 1972, 1977, 1980 और 1990 में कुल चार बार जीत हासिल की।

खैरथल विधानसभा क्षेत्र में अधिकतर मतदाता यादव समाज से आते हैं। इसके बाद जाट, अनुसूचित जाति और जनजाति का दबदबा है। सबसे खास बात ये है कि इस इलाके में पाकिस्तान के सिंध से आए सिंधियों की भी तादाद भी अच्छी खासी है। जो चुनाव में अहम भूमिका निभाते है। इसके अलावा इस क्षेत्र में बनिया और ब्राह्मणों का भी काफी प्रभाव है।

Created On :   19 Oct 2023 7:28 PM IST

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