लोकसभा चुनाव 2024: मायावती ने फिर उठाया यूपी विभाजन का मुद्दा, पहले भी किया था प्रयास, जानें क्या है पूरा मामला
- मायावती ने 2011 में उठाया था यूपी विभाजन का मामला
- तब बीजेपी, सपा और कांग्रेस ने किया था विरोध
- एक बार फिर मायावती ने उठाया यूपी विभाजन का मुद्दा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को समाप्त हो गया। अब शेष 6 चरणों का मतदान होना बाकी है। लेकिन उससे पहले उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का एक बड़ा बयान सामने आया है। मायावती ने कहा कि अगर बसपा सत्ता में आती है तो पश्चिमी यूपी को एक अलग राज्य बनाया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि पश्चिमी यूपी के लोग लंबे समय से अलग राज्य की मांग करते आ रहे हैं। केंद्र में हमारी सरकार आती है तो पश्चिमी यूपी को एक अलग राज्य बनाने के लिए ठोस कदम उठाएंगे। बता दें कि, यह पहली बार नहीं है जब मायावती ने यूपी के बंटवारे की बात कही है। इसके पहले भी मायावती यूपी को बंटाने का प्रयास कर चुकी हैं। आज के इस आर्टिकल में हम आपको उत्तर प्रदेश के इस इतिहास के बारे में बताएंगे।
जब किया था प्रस्ताव पारित
साल 2011, जब मायावती सत्ता में थी उस समय उन्होंने यूपी को चार हिस्सों में बाटने के लिए प्रस्ताव पारित किया था। जिसमें पूर्वांचल, पश्चिम प्रदेश, अवध प्रदेश और बुंदेलखंड को एक अलग राज्य बनाने का प्लान तैयार किया गया था। इसके साथ ही पूर्वांचल में 32, पश्चिम प्रदेश में 22, अवध प्रदेश में 14 और बुंदेलखण्ड में 7 जिलों को शामिल करने प्लान बनाया गया था। लेकिन मायावती का यह प्रयास संभव नहीं हो सका।
केंद्र सरकार ने वापस भेज दिया था प्रस्ताव
इस मुद्दे को लेकर मायावती ने मंत्रिपरिषद की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। उसके बाद प्रस्ताव को यूपी विधानसभा में पेश किया गया। 21 नवंबर 2011 को प्रस्ताव विधानसभा में पारित होने के बाद केंद्र सरकार को भेजा गया। उस समय देश में यूपीए-2 की सरकार थी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। जब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास गया तो उन्होंने यूपी सरकार से कई स्पष्टीकरण मांगते हुए प्रस्ताव को वापस भेज दिया।
स्पष्टीकरण में क्या जवाब मांगा था केंद्र
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश सरकार से कुछ सवाल पूछे कि सीमाएं कैसी होंगीं, चारों नए राज्यों की राजधानियां कहां बनेंगीं, काम करने वाले सरकारी अधिकारियों का बंटवारा उन चार राज्यों में कैसे होगा, इसके साथ ही सबसे अहम सवाल ये था कि देश की राज्य पर जो कर्जा है उसका बंटवारा किस तरह होगा? क्योंकि, साल 2011-12 में राज्य पर लगभग 2 लाख चार हजार करोड़ का कर्ज था।
यूपीए ने गंभीरता से नहीं लिया मामला
जब इस मामले ने जोर पकड़ना शुरू किया तब इसका काफी विरोध होना भी शुरू हो गया। क्योंकि, उत्तर प्रदेश सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाला राज्य है। देश की संसद में सबसे ज्यादा सांसद यहीं से चुने जाते हैं। ऐसे में अगर इस फैसले पर मुहर लग जाती है तब दूसरे राजनीतिक दलों को इसका भारी नुकसान होता। कांग्रेस समेत सपा,बीजेपी तमाम दल इसका विधानसभा में विरोध करने लगे थे। यूपीए की सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। इस मामले को लगभग 1 साल से ज्यादा का वक्त हो चुका था। 2012 में विधानसभा चुनाव हुए और बसपा सत्ता से बाहर हो गई।
Created On :   23 April 2024 8:56 PM IST