नीतीश का सियासी जाल: ललन सिंह पहले नहीं हैं, जॉर्ज-शरद-आरसीपी को भी पार्टी से इसी तरह बेदखल कर चुके हैं नीतीश कुमार, मौका देखकर पलटी मारने में हैं माहिर!

ललन सिंह पहले नहीं हैं, जॉर्ज-शरद-आरसीपी को भी पार्टी से इसी तरह बेदखल कर चुके हैं नीतीश कुमार, मौका देखकर पलटी मारने में हैं माहिर!
  • जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से ललन सिंह ने दिया इस्तीफा
  • नीतीश संभालेंगे बड़ी जिम्मेदारी

डिजिटल डेस्क, पटना। आम चुनाव से पहले जनता दल (यूनाइटेड) में बड़ा फेरबदल हुआ है। जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने आज (29 दिसंबर) इस्तीफा दे दिया। अब इसकी जिम्मेदारी नीतीश कुमार संभालेंगे। यह पहली बार नहीं हुआ है जब जेडीयू में बिना किसी वजह से किसी बड़े नेता ने इस्तीफा दिया हो। ललन सिंह से पहले अध्यक्ष पद से रामचंद्र सिंह (आरसीपी सिंह) की भी विदाई बड़ा ही नाटकीय रहा था। इनसे पहले पार्टी के दो संस्थापकों जार्ज फर्नांडीस और शरद यादव की भी पार्टी से विदाई बड़ा ही अपमानजनक रहा था।

JDU का गठन

30 अक्टूबर साल 2023 को जेडीयू का गठन हुआ था। जेडीयू का निर्माण लोक शक्ति, जनता दल और समता पार्टी से मिलकर हुआ। उस समय जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली समता पार्टी का जनता दल में विलय हुआ था। विलय की गई ईकाई को जनता दल (यूनाइटेड) कहा गया, जिसमें जनता दल का तीर चिन्ह और समता पार्टी का हरा और सफेद झंडा मिलकर जनता दल (यूनाइटेड) का चुनाव चिन्ह बना था।

जॉर्ज फर्नांडिस को नीतीश ने कैसे किया किनारे?

इस राजनीतिक घटना से पहले साल 1994 में जॉर्ज फर्नांडिस ने 14 सांसदों के साथ लालू एवं शरद यादव से अलग होते हुए जनता दल (जॉर्ज) का गठन किया था। इस दल में नीतीश कुमार भी मौजूद थे। इसके कुछ ही महीनों के बाद दोनों दिग्गजों ने मिलकर समता दल का निर्माण किया जो 1998 और 1999 की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शामिल हुई थी। साल 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले शरद यादव की जनता दल और नीतीश-जार्ज फर्नांडिस की समता दल ने मिलकर जेडीयू का गठन किया था। उस समय तय हुआ था कि जॉर्ज और शरद केंद्र की राजनीतिक करेंगे जबकि नीतीश बिहार की कमान संभालेंगे।

साल 2004 में हुए आम चुनाव में एनडीए की हार हुई। लेकिन इस चुनाव में जॉर्ज- शरद जीतकर सदन पहुंचे। साथ ही जॉर्ज के साथ एनडीए गठबंधन का संयोजक पद भी था। आम चुनाव के अगले साल यानी 2005 में जब बिहार विधानसभा का चुनाव हो रहा था तब भागलपुर में एक रैली को संबोधित करने अटल बिहारी वाजपेयी पहुंचे थे। जहां पर उन्होंने नीतीश कुमार की जमकर तारीफ की थी। हालांकि इस दौरान नीतीश को बीजेपी की ओर से सीएम पद के लिए कैंडिडेट घोषित नहीं किया गया। इस बात पर नीतीश खफा भी हुए लेकिन अरूण जेटली की मदद से कुछ समय में यह साफ हो गया कि अगर एनडीए की सरकार आती है तो नीतीश ही प्रदेश की कमान संभालेंगे। हालांकि, एनडीए की इस बड़ी घोषणा से जॉर्ज ने खुद को अलग कर लिया और इस फैसले को सिरे से नकार दिया।

कहा जाता है कि जॉर्ज के इसी फैसले से नीतीश नाराज हो गए जिसकी वजह से दोनों नेताओं में टेंशन शुरू हो गया। हालांकि, जॉर्ज के इस बयान पर नीतीश ने स्थिति संभालने की कोशिश की, कुमार की ओर से कहा गया था कि एनडीए के फैसले को लेकर उन्हें पता नहीं था। लेकिन तमाम सियासी उठापटक के बीच चुनाव में एनडीए की जीत हुई और गठबंधन की ओर से नीतीश कुमार को प्रदेश की कमान संभालने का मौका मिला। सीएम बनते ही जेडीयू की कमान नीतीश के हाथों में चली गई। समय के साथ नीतीश और जॉर्ज में खाई बढ़ती गई और एक दूसरे पर दोनों ही नेता निशाना साधने लगे। इससे पहले साल 2003 में जॉर्ज की ओर से दो बड़ी रैलियों का आयोजन किया गया था जिसमें नीतीश को नहीं बुलाया गया था। ये देखकर नीतीश ने भी रैली बुलाई और जॉर्ज को आमंत्रित नहीं किया।

2003 से 2005 के बीच दोनों नेताओं में खाई बढ़ती गई। जबकि साल 2009 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने जॉर्ज का पत्ता ही साफ कर दिया। इनकी जगह जयप्रकाश निषाद को मुजफ्फरपुर से टिकट दे दिया। जिसको देख जॉर्ज निर्दलीय ही चुनाव में खड़ा हुए। हालांकि, इन तमाम सियासी उठापटक के बीच नीतीश ने अंतिम फैसला लेते हुए जॉर्ज को पार्टी से ही निकाल दिया।

जेडीयू से बेआबरू होकर निकले शरद यादव

जॉर्ज के बाद जेडीयू में सबसे पुराने नेताओं में से एक शरद यादव ही बच गए थे। 2003 में अपनी पार्टी का विलय जेडीयू में करने के बाद यादव पार्टी के लगातार राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बने हुए थे। शरद यादव 2016 तक जेडीयू की कमान संभाले रहे लेकिन अप्रैल के महीने में उन्होंने ये पद छोड़ दिया। कहा जाता है कि शरद पवार और नीतीश में खटास तब पैदा हुई जब एनडीए ने 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार को लेकर चुना। इससे खफा कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ लिया। उस समय शरद यादव एनडीए के संयोजक थे। नीतीश से नाता तोड़ने की वजह से शरद यादव को भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

साल 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश-शरद ने लालू यादव से हाथ मिला लिया। चुनाव के नतीजे इनके पक्ष में ही आए थे। दो साल साथ में सरकार चलाने के बाद साल 2017 में नीतीश ने एक बार फिर पलटी मारते हुए एनडीए का दामन थाम लिया। जिसको देख शरद यादव ने कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। विरोध बढ़ता देख शरद यादव और पार्टी नेता अली अनवर को नीतीश ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। जिसकी वजह से दोनों नेताओं की राज्यसभा सांसदी भी चली गई।

जॉर्ज और शरद की तरह ही आरसीपी सिंह को भी नीतीश ने किया किनारा

जॉर्ज और शरद की तरह बड़े बेआबरू होकर आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार ने पार्टी से निकाला। रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी नीतीश के गृह जिला नालंदा के ही रहने वाले हैं। वो एक आईएएस अधिकारी रह चुके हैं। सिंह नीतीश की जाति कुर्मी से ही आते हैं। दोनों नेताओं में नजदीकियां अटल बिहारी सरकार में रहते हुए बढ़ी थी। जब नीतीश केंद्र में मंत्री थे। केंद्र में जब नीतीश मंत्री थे तब वो उनके प्राइवेट सेक्रेटरी हुआ करते थे। वही नीतीश बिहार में आए तो उन्हें प्रदेश का चीफ सेक्रेटरी बना दिया गया।

दोनों में इतनी नजदीकियां बढ़ी की आरसीपी ने साल 2010 में वीआरएस लेकर जेडीयू का दामन थाम लिया। धीरे-धीरे आरसीपी सिंह नीतीश के बाद पार्टी के नंबर दो के नेता हो गए। सदस्यता ग्रहण करने के साल ही कुमार ने पार्टी की ओर से उन्हें राज्यसभा भेज दिया। इसके एक दशक में तमाम बड़ी जिम्मेदारियां संभालने के बाद साल 2020 में नीतीश ने उन्हें पार्टी की कमान सौंप दी। लेकिन दोनों के बीच तब दूरियां बढ़ने लगी जब केंद्र में वो मंत्री बने।

साल 2020 में जब मोदी कैबिनेट का विस्तार हो रहा था तब नीतीश ने मंत्रिमंडल में अधिक सीट मांगने की डील आरसीपी को सौंपा था। लेकिन सिंह ने मंत्रिमंडल में खुद को फीट कर लिया और मोदी कैबिनेट का हिस्सा बन गए। पहले से ही आरसीपी सिंह के पास राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद था ये सब देख नीतीश उनसे नाराज चलने लगे और धीरे-धीरे दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगी। एक साल के अंदर ही नीतीश ने आरसीपी को हटा कर ललन सिंह को जेडीयू की कमान सौंप दी।

नीतीश इतने खफा हुए कि उन्होंने आरसीपी सिंह के राज्यसभा का कार्यकाल तक नहीं बढ़ाया। जिसकी वजह से सिंह को अपनी सांसदी से हाथ धोना पड़ा। ये यही तक नहीं थमा सदस्यता जाने की वजह से उन्हें मोदी मंत्रिमंडल से भी इस्तीफा देना पड़ा। नीतीश की नाराजगी की वजह से आरसीपी सिंह को अध्यक्षता, मंत्रिमंडल से इस्तीफा और राज्यसभा से विदाई, तीन मोर्चों पर नुकसान उठाना पड़ा। इतना नुकसान होने के बाद आरसीपी सिंह नीतीश पर खुलकर बयान देने लगे और थोड़े ही समय के बाद भाजपा का दामन थाम लिया। जॉर्ज, शरद एवं सिंह के अलावा जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा समेत कई नेता जेडीयू से बेआबरू होकर निकले।

Created On :   29 Dec 2023 5:59 PM IST

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