लोकसभा चुनाव 2024: कभी था कांग्रेस का गढ़, अब है बीजेपी का राज, जानिए शहडोल सीट का सियासी इतिहास
- शहडोल सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस रहा कब्जा
- अब बीजेपी के गढ़ के रूप में जाना जाता है शहडोल सीट
- इस बार मौजूदा सांसद और विधायक के बीच होगी जंग
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश की 29 सीटों में शहडोल सीट भी शामिल है। इस सीट को विंध्य क्षेत्र की हॉट सीट माना जाता है। आदिवासी समाज का बाहुल्य इलाका होने के कारण यह सीट शुरुआत से ही आरक्षित रही है। यह सीट उमरिया और अनूपपुर जिले को मिलाकर बनाई गई है। शहडोल कई मायनों में बहुत खास है। इस क्षेत्र में मध्य प्रदेश की जीवनदायनी मां नर्मदा का उद्गम स्थान भी है। सोन नदी में बना बाणसागर बांध पर्यटकों को खूब लुभाता है। साथ ही, मशहूर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व भी पर्यटन की दृश्टि से बेहद अहम है। राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो 1957 में यहां पहले आम चुनाव हुए थे। शुरुआती दौर में यहां कांग्रेस का दबदबा था। सोशलिस्ट पार्टी और लोकदल ने भी इस सीट से चुनाव जीता है। 1996 के बाद से यहां बीजेपी लगातार मजबूत होती गई। आज हम आपको शहडोल सीट के चुनावी इतिहास के बारे में बताएंगे।
शहडोल का चुनावी इतिहास
आजादी के बाद साल 1957 में शहडोल में पहले आम चुनाव हुए। जिसमें कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी कमल नारायण सिंह सांसद चुने गए थे। 1962 में कांग्रेस को यहां पहली हार मिली और सोशलिस्ट पार्टी ने कब्जा जमाया। इस बार बुद्ध सिंह सांसद निर्वाचित हुए। हालांकि, 1967 कांग्रेस ने वापसी कर ली और गिरजा कुमारी सांसद बनीं। 1971 में धन शाह नाम के निर्दलीय उम्मीदवार ने चुनाव जीता और सांसद निर्वाचित हुए।
इमरजेंसी के बाद लोकदल ने बाजी मारी
इमरजेंसी हटने के बाद साल 1977 में लोकसभा चुनाव हुए। शहडोल सीट पर कांग्रेस पिछला आम चुनाव हारने के कारण पहले ही बैकफुट पर थी। लेकिन इमरजेंसी के कारण कांग्रेस की स्थित और कमजोर हो गई। इसी कारण 1977 में कांग्रेस को लगातार दूसरी बार शहडोल सीट से हार का मुंह देखना पड़ा। इस बार भारतीय लोकदल को जीत मिली और दलपत सिंह परस्ते सांसद बने।
कांग्रेस की वापसी
तीन साल बाद 1980 में कांग्रेस ने वापसी कर ली और इस बार दलबीर सिंह सांसद निर्वाचित हुए। कांग्रेस ने अपनी जीत बरकरार रखते हुए 1984 का आम चुनाव भी जीता और दलबीर सिंह सांसद बने। हालांकि, 1989 में शहडोल सीट पर बड़ा सियासी उलटफेर हुआ और यह सीट कांग्रेस के हाथों से छिनकर जनता दल के पास चली गई। इस बार लोकदल के टिकट पर जीत चुके शहडोल के पूर्व सांसद दलपत सिंह परस्ते सांसद निर्वाचित हुए। हालांकि, 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस ने वापसी कर ली और दलबीर सिंह दोबारा सांसद बने।
1996 में बीजेपी की एंट्री
साल 1996 में शहडोल लोकसभा सीट पर पहली बार बीजेपी ने भगवा ध्वज लहराया। इस बार ज्ञान सिंह सांसद चुने गए। ज्ञान सिंह के नेतृत्व में बीजेपी ने 1998 का आम चुनाव भी लड़ा और जीत हासिल की। 1999 में बीजेपी लगातार तीसरा आम चुनाव जीतने में सफल रही और इस बार दलपत सिंह सांसद बने। 2004 में बीजपी ने लगातार चौथी जीत दर्ज की और इस बार दलपत सिंह परस्ते सांसद निर्वाचित हुए। साल 2009 में शहडोल सीट पर लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस ने चुनाव जीता। इस बार राजेश नंदिनी सिंह सांसद निर्वाचित हुईं। हालांकि, 2014 में बीजेपी ने वापसी कर कांग्रेस को इस सीट से फिर से बेदखल कर दिया और दलपत सिंह परस्ते सांसद निर्वाचित हुए। 2016 में उपचुनाव हुए, जिसमें बीजेपी जीतने में सफल रही और ज्ञान सिंह निर्वाचित हुए।
क्या रहा पिछले चुनाव का रिजल्ट?
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हिमाद्री सिंह को शहडोल सीट से चुनावी मैदान में उतारा। कांग्रेस ने उनके खिलाफ प्रमिला सिंह को चुनावी मैदान में उतारा। चुनावी नतीजों में बीजेपी प्रत्याशी हिमाद्री सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रमिला सिंह को 4 लाख 33 हजार 33 वोट से हरा दिया था। इस दौरान हिमाद्री सिंह को कुल 7 लाख 47 हजार 977 वोट मिले। वहीं, प्रमिला सिंह को मात्र 3 लाख 44 हजार 644 वोट ही मिल सके।
इस बार सांसद और विधायक का आमना-सामना
आगामी लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद शहडोल सीट से बीजेपी ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। बीजपी ने मौजूदा सांसद हिमाद्री सिंह पर भरोसा जताते हुए, उन्हें शहडोल सीट से दोबारा चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने उनके खिलाफ विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को को सांसद प्रत्याशी चुना है। सांसद और विधायक के बीच भिड़ंत होने से शहडोल का चुनाव काफी रोचक होगा।
Created On :   13 April 2024 6:38 PM IST