दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: 'अरविंद केजरीवाल और प्रवेश वर्मा से मागूंगा दस साल का हिसाब', कांग्रेस प्रत्याशी संदीप दीक्षित ने साधा निशाना

अरविंद केजरीवाल और प्रवेश वर्मा से मागूंगा दस साल का हिसाब, कांग्रेस प्रत्याशी संदीप दीक्षित ने साधा निशाना
  • नई दिल्ली सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हैं संदीप दीक्षित
  • आप प्रत्याशी अरविंद केजरीवाल और बीजेपी के संभावित प्रत्याशी प्रवेश वर्मा पर साधा निशाना
  • कार्यकाल के दौरान किए कामों का हिसाब लेने की कही बात

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीनों का समय बचा है। सभी दल इसकी तैयारियों में जुट गए हैं। आम आदमी पार्टी ने रविवार को अपने उम्मीदवारों की चौथी एवं आखिरी लिस्ट जारी कर दी। आम आदमी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल फिर से नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेगे। इस पर कांग्रेस पार्टी नेता और नई दिल्ली सीट से उम्मीदवार संदीप दीक्षित ने कहा कि वह केजरीवाल से उनके पिछले 10 सालों का हिसाब मागेंगे। साथ ही नई दिल्ली सीट से ही भाजपा से प्रवेश वर्मा के चुनाव लड़ने की खबरों पर उन्होंने कहा कि वह उनके 10 साल सांसद रहते हुए कराए गए कामों का हिसाब मांगेंगे।

संदीप दीक्षित ने कहा, "नई दिल्ली से चुनाव लड़ रहे प्रवेश वर्मा और अरविंद केजरीवाल दोनों अपनी-अपनी पार्टी के बड़े नेता हैं। आम आदमी पार्टी में तो अरविंद केजरीवाल ही एकमात्र प्रमुख नेता हैं। अब यह दोनों चुनावी मैदान में होंगे, जिससे हमें एक अच्छा अवसर मिलेगा। अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री रह चुके हैं और दस साल विधायक भी रहे हैं। प्रवेश वर्मा भी दस साल सांसद रहे हैं और मैं भी दस साल सांसद रहा हूं और कांग्रेस का हिस्सा भी रहा हूं। इस चुनाव में हम अरविंद केजरीवाल से सवाल करेंगे कि बतौर मुख्यमंत्री आपने क्या किया और आपकी दस साल की विधायकी कैसी रही? प्रवेश वर्मा यह सवाल करेंगे कि आपने दस साल सांसद के रूप में काम किया, तो ऐसी क्या उपलब्धि थी, जिसके कारण लोग आपको वोट दें? मैं अपना रिकॉर्ड भी सामने रखूंगा और मुझे विश्वास है कि जब तीनों का रिकॉर्ड सामने आएगा, तो मुझे अच्छे वोट मिलेंगे।"

आप उम्मीदवारों के टिकट कटने पर कही ये बात

इसके बाद आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की टिकट काटने पर उन्होंने कहा, "असल में और भी ज्यादा टिकट काटने की योजना थी। मैं आपको बता रहा हूं कि 32 टिकट बदलने वाले थे, क्योंकि यह माहौल फैल गया था कि ये बदलाव इसलिए हो रहे हैं क्योंकि पार्टी हार रही है। इस कारण से उन्होंने सिर्फ 20 ही टिकट काटे। 32 सीटें तो पार्टी खुद मान रही है कि वे हार रही हैं और यह बात मानिए कि जब कोई पार्टी हारने की स्थिति में होती है, तो ऐसे कदम उठाए जाते हैं। मुझे लगता है कि उन्हें यह बताया गया होगा कि वे 40-45 सीटों पर हारने जा रहे हैं। जहां तक बात है केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की, तो यहां पर विधायक का कोई महत्व नहीं है। दिल्ली में 'आप' ने हमेशा केजरीवाल को वोट दिया, विधायक कौन था इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। इसलिए जब एंटी-इंकम्बेंसी की बात आई, तो यह केजरीवाल के खिलाफ है, न कि उनके विधायकों के खिलाफ। अगर आप टिकट बदल भी लें, तो यह सीटें तो हार ही रहे हैं। 35-40 सीटों पर शुरुआत में ही आम आदमी पार्टी हार रही है, तो अब यह कहां तक पहुंचेंगे, यह कहना मुश्किल है। जहां तक बीजेपी का सवाल है, तो हमारे बीच दो-चार सीटों पर मुकाबला होगा।"

नकरात्मक प्रचार करती है बीजेपी

गृहमंत्री अमित शाह द्वारा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के प्रेरणास्रोत विदेश में हैं वाले बयान पर उन्होंने कहा,"वह लोग अब बहुत हताश हो गए हैं। जब से वह लोकसभा में 400 सीटों की जगह 240 सीटों पर आ गए हैं, उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि जिस राहुल गांधी को वह हल्का नेता साबित करने की कोशिश कर रहे थे, उसकी मेहनत, उसकी यात्रा और उसके संघर्ष के कारण हम लोग इतनी अच्छी स्थिति में आ गए। अगर अगले पांच-छह महीने बाद चुनाव होते और राहुल गांधी कुछ और कदम उठाते, तो शायद उनके गठबंधन के पास भी बहुमत नहीं होता। तब से वे सिर्फ नकारात्मक प्रचार कर रहे हैं, क्योंकि बीजेपी जानती है कि जब कोई सकारात्मक काम नहीं होता, तो लोग नकारात्मकता का सहारा लेते हैं। वैसे, जब हम दिल्ली में केजरीवाल के खिलाफ नकारात्मक प्रचार करते हैं, तो हम अपना सकारात्मक पक्ष भी सामने रखते हैं, क्योंकि हमने अपने कार्यकाल के पंद्रह सालों में बहुत अच्छे काम किए थे। हम पूरे आत्मविश्वास के साथ यह बताते हैं कि हमने काम किया है। लेकिन कल लोकसभा में संविधान पर हुई बहस को, 75 साल में संविधान का उत्सव मनाना चाहिए था। नेहरू जी ने यह नहीं किया, इंदिरा जी ने वह नहीं किया और आपने भी यह नहीं किया। यह दिखाता है कि जो व्यक्ति आत्मविश्वास से खाली होता है, वह दूसरों पर उंगली उठाता है।"

इनके पूर्वज तिरंगे को भी नहीं मानते थे

कांग्रेस प्रत्याशी ने आगे कहा, "इनकी पूर्वज पार्टियों ने तो संविधान को नकार दिया था। उन्होंने कहा था कि यह देश का संविधान है ही नहीं, हम इसे मानेंगे नहीं। तिरंगा तक नहीं मानते थे। अब प्रधानमंत्री उस पुरानी विरासत को नकार नहीं सकते। पिछले पंद्रह-बीस सालों में भी इन लोगों ने संविधान को स्वीकार नहीं किया था। आज भी यह लोग कहते हैं कि मनुस्मृति हमारा संविधान होना चाहिए। द्रोणाचार्य और एकलव्य की कथा को हम लोग सामान्य तौर पर चर्चा करते हैं, उसमें कोई विशेष बात नहीं है कि अंगूठा लिया गया या कटवाया गया। महाभारत की कई कथाओं का हम लोग आमतौर पर इस्तेमाल करते हैं, जैसे रामायण और महाभारत की कथाओं का उपयोग हम किसी भी सामान्य मुद्दे को समझाने के लिए करते हैं।"

Created On :   16 Dec 2024 1:49 AM IST

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