सिद्धारमैया के 'अहिंदा फॉर्मूले' से 2024 में बीजेपी को घेरने की कोशिश, कांग्रेस के लिए

सिद्धारमैया के अहिंदा फॉर्मूले से 2024 में बीजेपी को घेरने की कोशिश, कांग्रेस के लिए
  • बीजेपी का घेराव
  • डी.के. एवं सिद्धारमैया की जोड़ी करेगी कमाल?

डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। कर्नाटक चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आने के बाद से ही पार्टी के तमाम नेता गदगद नजर आ रहे हैं। सिद्धारमैया सीएम पद की शपथ ले चुकै हैं। जिद पर अड़े डीके शिवकुमार भी डिप्टी सीएम बनकर फिलहाल शांत हैं। उनके साथ आठ और मंत्रियों ने शपथ ली है।

बता दें कि, यह पहली बार नहीं है कि सिद्धारमैया ने किसी एक राजनेता को राजनीति में पटखनी दी हो। इससे पहले भी वो अपने राजनीतिक सूझबूझ से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और बीएस येदियुरप्पा को चित कर चुके हैं। जेडी(एस) से कांग्रेस में आए सिद्धारमैया ने करीब 2 दशक के बीच में पार्टी में अपना कद इतना बढ़ा लिया है जिसमें बड़े-बड़े नेता पीछे छूट गए और शीर्ष नेतृत्व चाह कर भी सिद्धारमैया को नजरअंदाज नहीं सका है। दरअसल, कांग्रेस में जब से सिद्धारमैया आए हैं तब से उनकी सबसे मजबूत कड़ी "अहिन्दा" फॉर्मूला रहा है। इस फॉर्मूले के तहत सिद्धारमैया हमेशा से कांग्रेस को राजनीतिक तौर पर लाभ पहुंचाते रहे हैं। वहीं इस बार भी कांग्रेस को इसी फॉर्मूले के तहत बीजेपी पर बड़ी जीत मिली है। तो आइए बताते हैं कि आखिर कांग्रेस ने सिद्धारमैया को ही सीएम पद को लेकर क्यों चुना है।

अहिंदा समुदाय कर्नाटक चुनाव में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। इस फॉर्मूले में दलित, अल्पसंख्यक वर्ग और पिछड़े वर्ग के लोग आते हैं। सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे के मुताबिक, इस चुनाव में कांग्रेस को मुस्लिम, दलित, आदिवासी और ओबीसी समुदाय के वोट सबसे ज्यादा मिले हैं। बीजेपी की लिंगायत-ब्राह्मण और जेडीएस के वोक्कालिंगा वोट बैंक के मुकाबले अहिन्दा की आबादी अधिक है। जिसकी वजह से कांग्रेस को प्रचंड जीत हासिल हुई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कर्नाटक में दलित, आदिवासी और मुस्लिमों की आबादी 39 फीसदी है, जबकि सिद्धारमैया खुद कुरबा जाति से आते हैं जिनकी राज्य में आबादी 7 प्रतिशत के आसपास है।

सिद्धारमैया ने तोड़ा येदियुरप्पा का सपना

सिद्धारमैया दूसरी बार प्रदेश की कमान संभालने जा रहे हैं। डी.के. शिवकुमार से पहले वो बीजेपी के वरिष्ठ नेता बी.एस. येदियुरप्पा को सीएम बनने से रोक पाने में सफल रहे थे। दरअसल, साल 2004 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में वापसी करने से चूक गई थी। एसएम कृष्णा के नेतृत्व में कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी बन कर उभरी थी। वहीं 5 साल पुरानी पार्टी जेडी(एस) 58 सीट जीतकर किंगमेकर की भूमिका में आ गई थी।

कहा जाता है कि, साल 2004 में बीजेपी की सत्ता केंद्र से जाने के बाद वो कर्नाटक की सत्ता में आने के लिए पूरी जोड़ तोड़ करने में लगी हुई थी ताकि कैसे भी वो प्रदेश की सत्ता में आ जाए। लेकिन सिद्धारमैया की वजह से जेडी(इस) ने बीजेपी से गठबंधन नहीं किया था। उस समय जेडी(एस) ने बयान दिया था कि वो किसी धर्मनिरपेक्ष पार्टी से ही एलायंस करेगी। इस बयान के बाद बीजेपी का सत्ता में आने का सपना टूट गया था। बता दें कि, भाजपा की ओर से बी.एस. येदियुरप्पा को सीएम बनाने के लिए नाम आगे रखा गया था।

सिद्धारमैया कांग्रेस की 'रीढ़ की हड्डी'

बीजेपी से गठबंधन न करते हुए जेडी(एस) ने कांग्रेस से एलायंस करने का एलान किया। जिसमें कांग्रेस की ओर से धरम सिंह मुख्यमंत्री बने और जेडी(एस) की ओर से सिद्धारमैया को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। साल 2004 तक सिद्धारमैया जेडी(एस) में ही थे। हालांकि, कांग्रेस और जेडी(एस) का गठबंधन करीब 2 सालों तक चला और एक बार फिर दोनों की राहें अलग-अलग हो गई थी। साल 2006 में कांग्रेस और जेडी(एस) के अलग होने के बाद सिद्धारमैया ने भी देवगौड़ा की पार्टी छोड़ "हाथ" का हाथ थाम लिया था तब से वो कांग्रेस से ही जुडे हैं। कहा जाता है कि साल 2004 से 2006 के बीच की अवधि में ही सिद्धारमैया ने उपमुख्यमंत्री रहते हुए अहिंदा फॉर्मूले पर काम करना शुरू कर दिया था। कांग्रेस में शामिल होते ही उनका जनाधार इन समुदायों में अच्छा खासा हो गया जिसकी वजह से कांग्रेस उनको कभी भी नजर अंदाज नहीं कर पाई है।

देवगौड़ा को दे चुके हैं पटखनी

सिद्धारमैया ने पूर्व सीएम एचडी देवगौड़ा को भी पटखनी दी है। साल 2006 में बीजेपी और जेडी(एस) के गठबंधन को लेकर सिद्धारमैया ने कई सवाल खड़े किए थे। जिसकी वजह से देवगौड़ा ने उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर दिया था। इसी को देखते हुए सिद्धारमैया ने अपने विधानसभा सीट चामुंडेश्वरी से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद से इस सीट पर उपचुनाव हुआ था। इसी सीट से एक बार फिर कांग्रेस की टिकट से सिद्धारमैया चुनावी मैदान में खड़े हुए जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई थी। बता दें कि, इस सीट पर उस समय जेडी(एस) ने एम शिवाबासप्पा को उतारा था। इस सीट को जीतने के लिए तीन महारथी देवगौड़ा, एचडी कुमारस्वामी और येदियुरप्पा ने खूब प्रचार किया लेकिन वो सफल नहीं हो पाए थे। इस सीट पर देवगौड़ा का पूरा दबदबा रहा है। हालांकि, उस एक जीत के बाद सिद्धारमैया चांमुडेश्वरी विधानसभा सीट से कभी नहीं जीत पाए।

मल्लिकार्जुन खड़गे को भी दे चुके हैं मात

साल 2013 विधासभा चुनाव में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत हासिल करते हुए एक बार फिर सत्ता में आई। लेकिन इस बार सिद्धारमैया ने मल्लिकार्जुन खड़गे को मात दी थी जो अभी कांग्रेस के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। साल 2013 में इस बार (साल 2023) की तरह ही तीन नेता सीएम पद के लिए प्रबल दावेदार थे। जिनमें पहला नाम सिद्धारमैया दूसरा मल्लिकार्जुन खड़गे और तीसरा जी परमेश्वर का शामिल था। साल 2013 के चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस में सीएम पद को लेकर पेंच फंसा। जिसके बाद शीर्ष नेतृत्व ने दिल्ली से ऑब्जर्वर राजधानी बेंगलुरु भेजा था और इनके देख रेख में ही निर्वाचित विधायकों से तीन नामों पर वोटिंग कराई गई थी जिसमें सिद्धारमैया ने बाजी मारी थी। जिसको देखते हुए आलाकमान ने सिद्धारमैया को सीएम पद की कुर्सी संभालने का मौका दिया था। इस दौरान सिद्धारमैया ने अपने व्यक्तित्व को और निखारने और दलित एवं मुस्लिम वर्ग में पैठ बनाने के लिए निरतंर काम करते रहे जिसकी वजह से कांग्रेस में उनका कद दिन ब दिन बढ़ता गया।

कांग्रेस की रणनीति

सिद्धारमैया को सीएम बनाकर कांग्रेस, भाजपा की घेराबंदी करने का प्लान बना रही है। कांग्रेस को पता है कि 36 फीसदी अहिंदा फॉर्मूला सिद्धारैमया के पास है। जबकि डी.के. के पास वोक्कालिगा समुदाय के 11 फीसदी वोट का बड़ा हिस्सा साथ में हैं। इन दो नेताओं में समन्वय बनाकर बीजेपी को लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त देने की कोशिश है। कांग्रेस हमेशा से बीजेपी को पटखनी देने के लिए तुरुप का इक्का ढूंढती रही है लेकिन अब सही मायने में उसे डी. के. और सिद्धारमैया के रूप में मिलता हुआ दिखाई दे रहा है। हालांकि, अब देखना होगा कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इन दोनों नेताओं की जोड़ी कर्नाटक में कितना रंग लाती है।

Created On :   17 May 2023 3:45 PM IST

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