प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा: एक नई साझेदारी की शुरुआत

- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा ने दोनों देशों के बीच एक नई साझेदारी की नींव रखी। यह यात्रा न केवल आर्थिक और रणनीतिक सहयोग को बढ़ाने में सफल रही, बल्कि यह भी संदेश दिया कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर एक सुरक्षित, समृद्ध और सतत भविष्य की ओर बढ़ रहा है। 6 अप्रैल 2025 को अपनी यात्रा समाप्त करने से पहले, मोदी ने कहा, "श्रीलंका भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति और विजन महासागर में विशेष स्थान रखता है। हमने जो कदम उठाए हैं, वे दोनों देशों के लोगों के लिए समृद्धि और शांति लाएंगे।" यह यात्रा निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में भारत-श्रीलंका संबंधों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी।
4 अप्रैल 2025 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका की तीन दिवसीय राजकीय यात्रा शुरू की। यह यात्रा न केवल भारत-श्रीलंका संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी, बल्कि क्षेत्रीय सहयोग और आपसी विकास के लिए भी एक नया अध्याय शुरू करने का संकेत देती है। यह यात्रा श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के निमंत्रण पर हुई, जो पिछले साल सितंबर में सत्ता में आए थे। यह पहली बार था जब दिसानायके ने किसी विदेशी नेता की मेजबानी की, और यह भी उल्लेखनीय है कि यह मोदी की तीसरी बार श्रीलंका यात्रा थी, इससे पहले वह 2015, 2017 और 2019 में वहां जा चुके थे। इस लेख में हम इस यात्रा के उद्देश्यों, प्रमुख घटनाओं, और इसके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
यात्रा का उद्देश्य और पृष्ठभूमि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा भारत की "नेबरहुड फर्स्ट" नीति और "विजन महासागर" (SAGAR - Security and Growth for All in the Region) के तहत एक महत्वपूर्ण कदम थी। श्रीलंका, जो हिंद महासागर में रणनीतिक रूप से स्थित है, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है। हाल के वर्षों में चीन की बढ़ती उपस्थिति ने भारत को इस क्षेत्र में अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रेरित किया है। श्रीलंका की आर्थिक संकट से उबरने की प्रक्रिया में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, खासकर 2022 में, जब उसने 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की थी। इस संदर्भ में, मोदी की यह यात्रा दोनों देशों के बीच आर्थिक, रक्षा, ऊर्जा और डिजिटल सहयोग को बढ़ाने का प्रयास थी।
मोदी की यह यात्रा थाईलैंड में छठे बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद शुरू हुई। थाईलैंड से कोलंबो पहुंचते ही उन्हें पारंपरिक नृत्य और सम्मान के साथ स्वागत किया गया। यह यात्रा 4 से 6 अप्रैल तक चली और इसके दौरान कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।
पहला दिन: कोलंबो में भव्य स्वागत और द्विपक्षीय वार्ता
4 अप्रैल की शाम को जब मोदी कोलंबो के बंडारानायके अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे, तो उनका स्वागत श्रीलंका के मंत्रियों और अधिकारियों ने किया। अगले दिन, 5 अप्रैल को, उन्हें कोलंबो के स्वतंत्रता स्क्वायर में एक भव्य औपचारिक स्वागत दिया गया, जिसमें 19 तोपों की सलामी शामिल थी। यह पहली बार था जब किसी विदेशी नेता को इस तरह का सम्मान दिया गया, जो भारत-श्रीलंका संबंधों की गहराई को दर्शाता है। राष्ट्रपति दिसानायके ने स्वयं उनकी अगवानी की और दोनों नेताओं ने प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार everybody's बातचीत शुरू की।
इस वार्ता में कई मुद्दों पर चर्चा हुई, जिसमें मछुआरों का मुद्दा, तमिल समुदाय की आकांक्षाएं, और रक्षा सहयोग शामिल थे। भारत और श्रीलंका के बीच मछुआरों का विवाद लंबे समय से चला आ रहा है, खासकर तमिलनाडु के मछुआरों के संबंध में। मोदी ने इस मुद्दे को मानवीय दृष्टिकोण से हल करने की आवश्यकता पर जोर दिया और घोषणा की कि श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों और उनकी नौकाओं को तत्काल रिहा करने पर सहमति जताई है। यह तमिलनाडु के लोगों के लिए एक बड़ी राहत की खबर थी।
इसके अलावा, सात समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किए गए, जो रक्षा, ऊर्जा, डिजिटल बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और व्यापार जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देंगे। इनमें सबसे महत्वपूर्ण था रक्षा सहयोग समझौता, जो दोनों देशों के बीच सैन्य संबंधों में एक नई शुरुआत का प्रतीक है। यह समझौता 35 साल पहले भारतीय शांति सेना (IPKF) के श्रीलंका से हटने के बाद के कड़वे अनुभव को पीछे छोड़ते हुए एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।
दूसरा दिन: ऊर्जा और सांस्कृतिक पहल
6 अप्रैल को, मोदी और दिसानायके ने त्रिंकोमाली में 120 मेगावाट के संपूर सौर ऊर्जा संयंत्र की आधारशिला रखी। यह परियोजना भारत की नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) और श्रीलंका के सेलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के बीच एक संयुक्त उद्यम है। यह संयंत्र श्रीलंका की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगा और जीवाश्म ईंधन पर उसकी निर्भरता को कम करेगा। यह परियोजना पहले कोयला आधारित थी, लेकिन पर्यावरणीय चिंताओं को देखते हुए इसे सौर ऊर्जा में परिवर्तित किया गया। इसके अलावा, भारत और श्रीलंका ने बिजली ग्रिड कनेक्टिविटी और एक बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन स्थापित करने का भी फैसला किया, जो दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देगा।
इसके बाद, दोनों नेता अनुराधापुरा गए, जहां उन्होंने महाबोधि मंदिर में पूजा की और दो भारत-सहायता प्राप्त परियोजनाओं का उद्घाटन किया। अनुराधापुरा श्रीलंका का एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, और यह यात्रा दोनों देशों के साझा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को रेखांकित करती है। मोदी ने भारतीय मूल के तमिल समुदाय के नेताओं से भी मुलाकात की और घोषणा की कि भारत 10,000 घरों, स्वास्थ्य सुविधाओं, और सीता एलिया मंदिर के विकास के लिए सहायता प्रदान करेगा।
सम्मान और संदेश
यात्रा के दौरान, श्रीलंका सरकार ने मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान "मित्र विभूषण" से सम्मानित किया। यह सम्मान उनके भारत-श्रीलंका संबंधों को मजबूत करने और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के असाधारण प्रयासों के लिए दिया गया। मोदी ने इसे 140 करोड़ भारतीयों का सम्मान बताते हुए कहा, "यह सम्मान मेरा नहीं, बल्कि भारत के 140 करोड़ लोगों का है।" यह उनका 22वां अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार था, जो उनकी वैश्विक कद को दर्शाता है।
कोलंबो में भारतीय शांति सेना (IPKF) स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए, मोदी ने उन सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जो श्रीलंका में शांति स्थापना के दौरान शहीद हुए थे। यह एक भावनात्मक क्षण था, जो दोनों देशों के साझा इतिहास को याद करता था।
प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
मोदी की यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक थी। सबसे पहले, यह श्रीलंका के आर्थिक संकट से उबरने में भारत की निरंतर सहायता को दर्शाती है। पिछले छह महीनों में भारत ने 100 मिलियन डॉलर से अधिक के ऋण को अनुदान में बदला और ब्याज दरों को कम करने का फैसला किया। इसके अलावा, पूर्वी राज्यों के विकास के लिए लगभग 2.4 बिलियन श्रीलंकाई रुपये प्रदान किए गए। यह दर्शाता है कि भारत श्रीलंका के लोगों के साथ हर कदम पर खड़ा है।
दूसरे, यह यात्रा क्षेत्रीय सुरक्षा के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण थी। चीन की बढ़ती मौजूदगी के बीच, श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके ने आश्वासन दिया कि उनका देश भारत की सुरक्षा के खिलाफ किसी भी तरह से इस्तेमाल नहीं होगा। यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी।
तीसरे, इस यात्रा ने भारत और श्रीलंका के बीच सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के संपर्क को मजबूत किया। तमिल समुदाय के लिए की गई घोषणाएं और धार्मिक स्थलों का दौरा दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक बंधन को और गहरा करता है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा ने दोनों देशों के बीच एक नई साझेदारी की नींव रखी। यह यात्रा न केवल आर्थिक और रणनीतिक सहयोग को बढ़ाने में सफल रही, बल्कि यह भी संदेश दिया कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर एक सुरक्षित, समृद्ध और सतत भविष्य की ओर बढ़ रहा है। 6 अप्रैल 2025 को अपनी यात्रा समाप्त करने से पहले, मोदी ने कहा, "श्रीलंका भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति और विजन महासागर में विशेष स्थान रखता है। हमने जो कदम उठाए हैं, वे दोनों देशों के लोगों के लिए समृद्धि और शांति लाएंगे।" यह यात्रा निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में भारत-श्रीलंका संबंधों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी।
Created On :   7 April 2025 3:57 PM IST