ईद 2024: रमजान के बाद आखिर क्यों मनाई जाती है ईद-उल-फित्र, पैगम्बर हजरत मुहम्मद के युद्ध से क्या है संबंध?

रमजान के बाद आखिर क्यों मनाई जाती है ईद-उल-फित्र, पैगम्बर हजरत मुहम्मद के युद्ध से क्या है संबंध?
  • 1300 वर्ष पहले मनाई गई थी पहली बार ईद
  • मक्का मदीना से है खास संबंध
  • रमजान के बाद क्यों मनाई जाती है ईद?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रमजान के पवित्र महीने के बाद दुनिया भर के मुसलमानों को ईद-उल-फित्र का इंतजार रहता है। रमजान को मीठी ईदी भी कहा जाता है। बता दें कि, भारत में इस बार ईद-उल-फित्र का त्योहार गुरुवार यानी 11 अप्रैल को मनाया जाएगा। हालांकि, देश के कई शहरों में आज ही ईद मनाई गई। ईद-उल-फित्र रमजान के बाद आने वाले दसवें महीने और शव्वाल के पहले दिन में मनाया जाता है।

इस्लामी कैलेंडर हिजरी के मुताबिक ईद-उल फित्र रमजान का महीना खत्म होने के बाद आने वाले 10वें महीने यानी शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। ऐसे में आज हम आपको ईद-उल-फित्र के पीछे के इतिहास के बारे में बताएंगे।

क्यों मनाया जाता है ईद-उल-फित्र?

मुसलमानों के इस खास त्योहार को पहली बार 2 हिजरी (624 ईस्वी) में मनाया गया था। इस त्योहार का इतिहास मक्का मदीना से जुड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि इस ईद-उल-फित्र के उत्सव की शुरुआत मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद धार्मिक शहर मदीना में हई थी।

तब पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में विजय प्राप्त की थी। इस्लामिक इतिहास के मुताबिक, इसी माह में मुसलमानों ने अपना पहला युद्ध लड़ा था। यह युद्ध सऊदी अरब के मदीना प्रांत के बद्र शहर में हुआ था। इस वजह से इसे जंग-ए-बद्र भी कहा जाता है।

ऐसी मान्यता है कि, जंग-ए-बद्र में मोहम्मद पैगम्बर की जीत की खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया था, और तभी से इस दिन को ईद-उल-फित्र या मीठी ईद के तौर पर मनाया जाने लगा।

रोजे का ईद से क्या है संबंध?

ईद मनाने का एक और कारण रमजान के पूरे महीने रखे जाने वाले रोजे से भी जुड़ा है। दरअसल, पूरा एक महीना रोजा रखने और अल्लाह की इबादत पूरी होने की खुशी में भी ईद मनाई जाती है।

कुरआन के मुताबिक, ईद-उल-फित्र को अल्लाह की तरफ से मिलने वाला इनाम का दिन माना जाता है। साथ ही, इस दिन मुसलमान रमजान के पूरे एक महीने रोजे रखने के बाद दिन के उजाले में पकवान खाते हैं और खुशियां मनाते हैं।

साथ मिलकर खुशियां मनाने का पैगाम

ईद का त्योहार सभी के साथ मिलकर खुशियां मनाने का पैगाम देता है। अमीर हो या गरीब इस दिन सारे मुसलमान एक साथ नमाज अदा करते हैं। साथ ही, एक दूसरे की खुशियों में भी शामिल होते हैं।

ईद-उल-फित्र में 'फित्र' का मतलब धर्मार्थ उपहार कहलाता है। धर्मार्थ उपहार मतलब चैरिटेबल गिफ्ट और इस्लाम में फित्र मतलब चैरिटी देना ईद का सबसे मुख्य पहलु है। ईद के दिन नमाज से पहले सभी धनी मुसलमान गरीबों को फित्र देते हैं, जिससे वह भी अपनी ईद खुश होकर मना सकें और सबकी खुशियों में शामिल हो सकें।

क्या है ईद मनाने की परंपरा?

ईद के दिन की सबसे पहले सुबह प्रार्थना की जाती है, जिसे सलात अल फज्र कहा जाता है। प्रार्थना करने के बाद नए कपड़ों में तैयार होकर लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मुंह मीठा करते हैं। जहां पूरा समुदाय साथ मिलकर नमाज अदा करता है। नमाज अदा करने बाद सभी लोग एक दूसरे को ईद की बधाइयां देते हैं।

ईद-उल-फित्र के खास अवसर पर दावत भी तैयार की जाती है। दावत में मुख्य तौर पर मीठे पकवान शामिल होते हैं।

क्यों रखते हैं रोजा?

इस्लामी कैलेंडर के 9वें महीने को रमजान का महीना कहा जाता है। रमजान के महीने में मुसलमान पूरे महीने भर रोजा रखकर अल्लाह की इबादत करते हैं।

इस्लाम के पांच मूलभूत नियमों में से रोजा रखने का नियम भी होता है। मुसलमानों को इन पांचों नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है। इस्लाम के ये पांच नियम हैं - नमाज, दान, आस्था, हज और रोजा।

ईद और बकरीद में क्या अंतर है?

पूरी दुनिया में मुसलमान मुख्य तौर से दो त्योहार मनाते हैं। इसमें सबसे पहला त्योहार ईद-उल-फित्र और दूसरा ईद-उल-अजहा है। दोनों ही त्योहारों में फर्क सिर्फ इतना है कि ईद-उल-फित्र या मीठी ईद रमजान के बाद आने वाला त्योहार है। वहीं, ईद-उल-अजहा कुर्बानी से संबंधित त्योहार है। इस त्योहार को बकरीद भी कहा जाता है।

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, बकरीद को आखिरी महीने जुल-हिज्जा की 10 तारीख को मनाया जाता है। बकरीद में लोग पैगंबर इब्राहिम की परंपरा का पालन करते हुए दुम्बे की कुर्बानी देते हैं। बकरीद का त्योहार मीठी ईद के 2 महीने 10 दिन बाद आता है और इसमें दुनिया भर के मुसलमान मक्का शहर में जाकर हज करते हैं।

Created On :   10 April 2024 11:47 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story