जातिगत भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षण संस्थाओं में जातिगत भेदभाव को बताया संवेदनशील मुद्दा, यूजीसी को लगी फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षण संस्थाओं में जातिगत भेदभाव को बताया संवेदनशील मुद्दा, यूजीसी को लगी फटकार
  • कितने संस्थानों में बनाए गए समान अवसर प्रकोष्ठ-सुको
  • 50 से ज्यादा छात्रों ने की आत्महत्या: वकील इंदिरा
  • आयोग की वेबसाइट पर अपलोड करें नियमों का मसौदा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने आज शुक्रवार को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव मुद्दों को सुनवाई करते हुए संवेदनशील मुद्दा बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा शिक्षण संस्थाओं में जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए एक इफेक्टिव सिस्टम बनना चाहिए।

न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को इस संबंध में शीघ्र अतिशीघ्र नियम बनाने के निर्देश दिए है। सुको ने कहा केंद्रीय, राज्य, निजी और डीम्ड विश्वविद्यालयों में छात्रों के साथ जातिगत भेदभाव को रोका जा जाना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने यूजीसी को फटकार लगाते हुए कहा कितने शैक्षणिक संस्थाओं में 2012 के नियम के नियमों के तहत समान अवसर प्रकोष्ठ बनाए गए है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा प्रभावी समाधान होने तक हम इस याचिका को नियमित रूप से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने को कहा। 2019 से अब तक कुछ विशेष नहीं हुआ।

आपको बता दें समान अवसर प्रकोष्ठ के नियम उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाए गए थे। इन्हें यूजीसी समानता नियम कहा जाता है। टॉप कोर्ट ने कहा यह एक संवेदनशील मुद्दा है। इसे लेकर कोर्ट पूरी तरह सचेत हैं। उच्चतम न्यायालय ने यूजीसी से छह हफ्ते के भीतर आंकड़े पेश करने को कहा है।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि 2004 से अब तक आईआईटी और अन्य संस्थानों में 50 से अधिक छात्रों ने जातिगत भेदभाव के कारण आत्महत्या की है। कई स्टूडेंट पर झूठे केस लगा दिए जाते है। इनमें से अधिकांश छात्र अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय से थे। वकील इंदिरा छात्र रोहित वेमुला और पायल तड़वी की मांओं की ओर से पेश हुई।

Created On :   3 Jan 2025 7:47 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story