श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन: मंदिर आंदोलन में थी स्वामी विश्वेश तीर्थ महाराज की अहम भूमिका, उमा भारती को दिलाई थी सन्यास की दीक्षा

मंदिर आंदोलन में थी स्वामी विश्वेश तीर्थ महाराज की अहम भूमिका, उमा भारती को दिलाई थी सन्यास की दीक्षा
  • वीएचपी से जुड़े रहे आजीवन
  • संकल्प बुकलेट में है नाम शामिल
  • राष्ट्रीय स्वामीजी के नाम से थे प्रसिद्ध

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में देश के संत समाज का बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा। भारत के प्रत्येक हिस्से से अलग-अलग पंथ के साधु-संतो ने राम मंदिर के लिए संघर्ष किया। संतो ने राम मंदिर को अपना अंतिम ध्येय मानकर संपूर्ण जीवन आंदोलन में लगा दिया। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट ने संकल्प बुकलेट में राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले संतो के नाम भी शामिल किए हैं। आंदोलन से जुड़े 21 प्रमुख चेहरों में एक नाम उडुपी के पेजावर मठ के गुरु रहे स्वामी विश्वेश तीर्थ जी महाराज का नाम भी शामिल है। श्री विश्वेश तीर्थ जी महाराज पेजावर मठ के गुरु परंपरा के 33वें गुरु थे। पेजावर मठ उडुपी के आठ प्रमुख मठों में से एक है।

वीएचपी से हमेशा रहा जुड़ाव

श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में स्वामी विश्वेश तीर्थ जी महाराज की सक्रिय भागीदारी रही। राम मंदिर निर्माण के लिए संघर्ष करने के साथ उन्होंने गौरक्षा और सामाजिक समरसता के लिए भी आजीवन काम किया। समाज के लिए किए गए व्यापक कार्यों के चलते वह 'राष्ट्रीय स्वामीजी' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए। 27 अप्रैल 1931 को पुट्टुर के रामाकुंज में जन्मे विश्वेश स्वामी जी अजीवन विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े रहे। साथ ही कई वर्षों तक इस संगठन के उपाध्यक्ष भी रहे। उनके प्रयासों से ही साल 2017 में उडुपी में लगभग 30 साल बाद धर्मसंसद का आयोजन संभव हुआ। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर उन्होंने एक भव्य राम मंदिर की इच्छा प्रकट की थी। स्वास्थ कारणों के चलते दिसंबर 2019 में उनकी मृत्यु हो गई और भव्य राम मंदिर में रामलला को विराजमान होते हुए देखने का सपना अधूरा रह गया। उनके निधन पर पीएम मोदी ने भी दुख जताया था।

उमा भारती के थे गुरु

स्वामी विश्वेश तीर्थ महाराज राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली भाजपा की वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के गुरु भी थे। 1992 में बाबरी विध्वंस से कुछ ही दिन पहले ही उमा भारती ने उनसे संन्यास की दीक्षा ली थी।

विश्वेश तीर्थ स्वामीजी ने केवल 7 वर्ष की आयु में ही संन्यास ले लिया था। उनके समाज और देश के प्रति योगदान को देखते हुए कर्नाटक के मंगुलुरु की श्रीनिवास यूनिवर्सिटी ने स्वामीजी को डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा था।

Created On :   18 Jan 2024 11:42 PM IST

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