जब गांधीजी की आवाज रिकॉर्ड करने के लिए पीछे पड़ गई थीं ग्रामोफोम कंपनियां, इस कंपनी की खुल गई थी किस्मत, बिकीं थी रिकॉर्ड कापियां

When gramofoam companies fell behind to record Gandhis voice
जब गांधीजी की आवाज रिकॉर्ड करने के लिए पीछे पड़ गई थीं ग्रामोफोम कंपनियां, इस कंपनी की खुल गई थी किस्मत, बिकीं थी रिकॉर्ड कापियां
गांंधी जयंती विशेष जब गांधीजी की आवाज रिकॉर्ड करने के लिए पीछे पड़ गई थीं ग्रामोफोम कंपनियां, इस कंपनी की खुल गई थी किस्मत, बिकीं थी रिकॉर्ड कापियां
हाईलाइट
  • भारत में ही इस रिकॉर्डिंग 4 लाख से ज्यादा प्रतियां बिकीं

डिजिटल डेस्क, भोपाल।  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को पसंद करने वाले भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में थे। लोग उनके विचारों के साथ उनकी जीवन शैली के भी प्रशंसक थे। अपनी इन्हीं विशेषताओं के काऱण वो पूरी दुनिया में एक ब्रैंड बन गए थे। ऐसा ब्रैंड जो उस समय में सबसे बड़ा था। उनके इस अद्भुत ब्रैंड का फायदा उस समय हर मीडियम उठाना चाह रहा था। ऐसे में अमेरिका की ग्रामोफोन कंपनी कोलंबिया भी गांधी की लोकप्रियता का फायदा उठाने से अछूती नहीं रहना चाहती थी इसलिए कंपनी ने बापू से आवाज रिकॉर्ड करने की अनुमति मांगी। आइए जानते हैं वो दिलचस्प किस्सा...

गांधीजी ने दी अमेरिकन ग्रामोफोन को रिकॉर्डिंग की अनुमति 

बात 1931 की है जब गांधी दूसरे गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने इंग्लैंड पहुंचे थे। जैसे ही यह खबर मिली कि गांधी इंग्लैंड आ रहे हैं, दुनिया भर के अखबार, रेडियो ब्राडकॉस्टर्स ने अपने फोटोग्राफरों और रिकॉर्डिंग की मशीनों को लंदन भेज दिया था। गांधीजी का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उन्हें हर कोई देखना और सुनना चाहता था। गांधी जी के लंदन दौरे की मेजबान रहीं मुरियल लेस्टर ने अपनी बॉयोग्राफी में लिखा है कि उस समय दुनिया की लगभग सभी ग्रामोफोन कंपनियां मुझसे गांधीजी की आवाज रिकॉर्ड करने की अनुमति दिलवाने का आग्रह कर रही थीं। तब गांधीजी ने अमेरिका की ग्रामोफोन कंपनी कोलंबिया के लिए रिकॉर्डिंग करने को राजी हो गए। 

गांधीजी ने रखी शर्त

मुरियल अपने संस्मरण में लिखती हैं कि गांधीजी की रजामंदी मिलने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह था कि रिकॉर्डिंग का कंटेंट क्या होगा। गांधी जी ने इस पर एक शर्त रखी और  कहा कि ग्रामोफोन के लिए यह उनके जीवन की पहली और आखिरी रिकॉर्डिंग होगी। इसके साथ ही उन्होंने  कंटेंट को लेकर कहा कि वह यह रिकॉर्डिंग किसी राजनीतिक विषय पर नहीं बल्कि ईश्वर की अवधारणा पर करेंगे। कोलंबिया कंपनी ने गांधीजी से लगभग 6-7 मिनट रिकॉर्डिंग करने के लिए कहा। इसके बाद कोलंबिया कंपनी के लोग 17 अक्टूबर 1931 को रिकॉर्डिंग की सारी मशीनें लेकर किंग्सले हॉल पहुंच गए, जहां के एक कमरे में रिकॉर्डिंग की व्यवस्था की गई।  

रिकॉर्डिंग के लिए की गई व्यवस्थाएं

रिकॉर्डिंग के लिए हॉल के कमरे में कुछ व्यवस्थाएं भी कीं, मसलन गांधीजी माइक्रोफोन की ऊंचाई तक पहुंच पाएं इसके लिए नीचे एक गोल सी चीज रखी गई, उसके ऊपर कुछ कपड़े रखकर ऊंचाई को एडजस्ट किया गया। इसके अलावा गांधीजी को रिकॉर्डिंग के लिए देखकर पढ़ना था इसके लिए लैंप की व्यवस्था की गई। रिकॉर्डिंग के समय एक तस्वीर भी ली गई थी यह ऐतिहासिक तस्वीर आज भी मौजूद है। 

गांधीजी की प्रफेशनलिज्म के सभी हुए दीवाने 

गांधीजी ने उस समय जिस प्रफेशलिज्म के साथ रिकॉर्डिंग की थी, उसे देखकर वहां मौजूद हर शख्स उनका कायल हो गया था। वहीं गांधीजी की रिकॉर्डिंग करवाकर तो जैसे कोलंबिया कंपनी की लॉटरी ही लग गई थी। इसकी वजह यह गांधीजी की आवाज में पहली ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग थी जो दुनियाभर में रिलीज होने वाली थी।
मुरियल लिखती हैं कि रिकॉर्ड का लेबल भारत के तिरंगे के तीन रंगों से बना था, जिस पर गांधीजी के हस्ताक्षर थे। रिकॉर्ड के विवरण को सुनहरे अक्षरों में लिखा गया था।  

बिकीं थी रिकॉर्ड प्रतियां

गांधीजी की यह पहली रिकॉर्डिंग थी जिसे दुनियाभर के लोग सुनना चाहते थे। इसको ध्यान में रखते हुए कोलंबिया कंपनी ने इस रिकॉर्डिंग की करीब 10 लाख प्रतियां बेचने का लक्ष्य रखा। जब यह रिकॉर्डिंग रिलीज हुई तो अकेले भारत में ही इसकी 4 लाख से ज्यादा प्रतियां बिक गईं। कंपनी द्वारा एक रिकॉर्ड का मूल्य चार रुपये रखा गया था। 

लोग रिकॉर्ड को अधिक से अधिक खरीदें इसके लिए कंपनी की तरफ से ऑफर चलाया गया। इसके मुताबिक हर बिके हुए ऑफर पर आठ आने कंपनी की तरफ से कांग्रेस या उस संस्था को दिया जाएगा जिस को देने के लिए गांधी जी सहमति देंगे। गांधीजी ने यह राशि अखिल भारतीय बुनकर संघ नाम की संस्था को देने की सलाह दी। इस हिसाब से यदि रिकॉर्ड की 10 लाख प्रतियां बिकतीं तो अखिल भारतीय बुनकर संघ को रॉयल्टी के रुप में आठ आने के हिसाब से पांच लाख रुपये प्राप्त होते। बता दें कि उस समय के हिसाब से 5 लाख रुपये बहुत बड़ी राशि थी। 

दुनियाभर में हुई तारीफ 

अपनी रिलीज के बाद गांधीजी के इस रिकॉर्ड ने धूम मचा दी थी। अमेरिका में तो इसकी रिकॉर्ड प्रतियां बिकीं थी। लोगों ने सुनकर गांधीजी की काफी तारीफ की थी। अमेरिका से निकलने वाली डिस्क नाम की पत्रिका ने रिकॉर्ड की तारीफ करते हुए कहा था कि यह यह रिकॉर्ड गांधीजी की उस काबिलियत की तस्दीक करता है कि क्यों सारी दुनिया उनकी आवाज़ से आंदोलित हो उठती है।


 

Created On :   1 Oct 2022 1:50 PM GMT

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