सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी को क्यों नहीं रिहा किया जा सकता?

The Supreme Court asked the Centre, why cant the Rajiv Gandhi assassination convict be released?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी को क्यों नहीं रिहा किया जा सकता?
नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी को क्यों नहीं रिहा किया जा सकता?
हाईलाइट
  • पेरारिवलन 30 साल से अधिक समय तक जेल में रह चुका है

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के दोषी ए.जी. पेरारिवलन की रिहाई के संबंध में केंद्र को एक सप्ताह के भीतर अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र के वकील से कहा, आप उसे रिहा करने के लिए सहमत क्यों नहीं हैं? जिन लोगों ने 20 साल से अधिक समय जेल में गुजारे हैं, उन्हें रिहा कर दिया गया है .. हम आपको बचने का रास्ता भी दे रहे हैं।

पेरारिवलन 30 साल से अधिक समय तक जेल में रह चुका है और इस समय वह जमानत पर बाहर है। शीर्ष अदालत ने पेरारिवलन को रिहा करने की दया याचिका राष्ट्रपति को भेजने की राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश तीन साल से अधिक समय तक तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा दबाए रखे जाने पर कड़ी आपत्ति जताई। पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने कहा कि केंद्र का यह तर्क कि राज्यपाल के पास अनुच्छेद 161 (राज्यपाल की दया की शक्ति) के तहत दया याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, देश के संघीय ढांचे पर आघात करता है।

पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज से पूछा कि राज्यपाल किस प्रावधान के तहत राज्य मंत्रिमंडल के निर्णय को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं? पीठ ने कहा कि अगर राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल के फैसले से असहमत होते हैं, तो वह इसे वापस मंत्रिमंडल के पास भेजेंगे और इसे राष्ट्रपति को नहीं भेजेंगे, जो केंद्र की सहायता और सलाह से बंधे हैं। हालांकि, नटराज ने तर्क दिया कि तमिलनाडु के राज्यपाल पेरारिवलन की याचिका राष्ट्रपति को भेजने का अधिकार रखते हैं। उन्होंने कहा, कुछ स्थितियों में, खासकर जब मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने की बात आती है, तक राज्यपाल नहीं, राष्ट्रपति सक्षम प्राधिकारी होते हैं।

तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 161 के तहत दया याचिका पर फैसला करने के लिए राज्यपाल की शक्ति पर कानून तय किया गया था और केंद्र इसे अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को राज्य मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह का पालन करना होता है और राज्यपाल राज्य सरकार के फैसले से बंधे होते हैं।

यह जिक्र करते हुए कि पेरारिवलन ने 30 से अधिक वर्षो तक सजा काटी है, पीठ ने द्विवेदी से पूछा, तो आप उसे रिहा क्यों नहीं करते .. निर्णय लेने का अधिकार राष्ट्रपति को है या राज्यपाल को, इस पचड़े में उसे क्यों फंसाया जाना चाहिए? शीर्ष अदालत ने पेरारिवलन के वकील के इस सुझाव पर सहमति जताई कि अदालत को अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की शक्ति का प्रयोग समयबद्ध तरीके से करने पर भी विचार करना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने मामले में विस्तृत सुनवाई के बाद आगे की सुनवाई के लिए 4 मई की तारीख तय की। शीर्ष अदालत ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे पेरारिवलन को 9 अप्रैल को जमानत दे दी थी। इसने सभी दोषियों को रिहा करने की राज्य सरकार की सिफारिश पर फैसला नहीं लेने पर राज्यपाल से सवाल किया था। तमिलनाडु के राज्यपाल के पास सिफारिश सितंबर, 2018 में भेजी गई थी।

(आईएएनएस)

Created On :   27 April 2022 8:30 PM IST

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