पंडित जवाहर नेहरू के जीवन से जुड़े पांच ऐसे प्रसंग, जो आपको आगे बढ़ने के लिए एक नई सीख देंगे
- 14 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू जी की याद में मनाया जाता है बाल दिवस
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 14 नवंबर को बच्चों के सबसे प्रिय और बच्चों को सबसे ज्यादा प्यार करने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिवस देशभर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस को हम सब बाल दिवस के रूप में मनाते हैं। जानते हैं बच्चों के परम स्नेही चाचा नेहरू के अनसुने प्रेरक प्रसंग...
बचपन से सीखी "आजादी"
पंडित जवाहरलाल नेहरू जब छोटे थे तो घर में उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने एक तोता पाल रखा था जिसकी देखभाल उनका माली करता था। एक दिन जब नेहरू जी स्कूल से आए तो तोता बहुत तेजी से चिल्लाने लगा। यह देखकर नेहरू जी हतप्रभ हो गए उन्हें लगा कि तोता पिंजरे से बाहर आना चाहता है। उन्होंने पिंजरे का गेट खोला और तोते को स्वतंत्र कर दिया। तोता बाहर निकलकर एक पेड़ पर बैठ गया और नेहरू की ओर कृतज्ञ भाव से देखने लगा। तभी वहां पर माली आ गया। उसने नेहरू जी को डांट लगाकर कहा मालिक गुस्सा होंगे, यह तुमने क्या कर दिया। इस पर नेहरू ने कहा— पूरा देश आजादी चाहता है, यह तोता भी आजादी ही चाहता था। आजादी सभी लोगों को मिलनी चाहिए।
अपने काम खुद करना था पसंद
पंडित नेहरू इंग्लैंड के हैरो स्कूल में अपनी पढ़ाई कर रहे थे। एक दिन सुबह वे अपने जूतों पर पॉलिश करने लगे तभी अचानक उनके पिता पं. मोतीलाल नेहरू आ गए। नेहरू को पॉलिश करते देख कहा, क्या तुम जूते पॉलिश का काम घर के नौकरों से नहीं करवा सकते थे। इस पर नेहरू ने कहा जिस काम को मैं स्वयं कर सकता हूं, उसे नौकरों से क्यों करवाऊं। नेहरू जी का मानना था कि छोटे—छोटे कामों से ही व्यक्ति आत्मनिर्भर बनता है।
शिष्टाचार की सीख
एक बार जब नेहरू लखनऊ की सेंट्रल जेल थे। जेल में खाने बनते ही मेज पर रख दिया जाता था। वहां सभी लोग मिलकर खाना खाते थे। एक बार डायनिंग टेबल पर एक साथ सात आदमी खाना खाने के लिए बैठे। चंद्रसिंह गढ़वाली की ओर चार आदमी थे तो नेहरूजी की ओर तीन आदमी।
इस बीच चंद्रसिंह गढ़वाली ने शक्कर के लिए अपना हाथ बढ़ाया तो नेहरू जी ने उनका हाथ रोककर कहा— बोलो, "जवाहरलाल शक्कर का बर्तन दो।"
नेहरू जी उस समय बहुत गुस्सा होकर जल्द शांत भी हो गए और कहने लगे— —प्रत्येक काम के साथ श्ष्टिाचार बहुत जरूरी है। डायनिंग टेबल का भी अपना सभ्य तरीका है, शिष्टाचार है। उन्होंने समझाया कि यदि कोई चीज दूर हो तो पास वाले को — "कृपया इसे देने का कष्ट करेंगे" कहना चाहिए। शिष्टाचार के मामले में नेहरू जी ने कई लोगों को नसीहतें दीं हैं।
विनोदीभाव थे नेहरू जी
एक दिन ऑटोग्राफ पुस्तिका नेहरूजी को देते हुए एक बच्चे ने कहा— इस पर साइन कर दीजिए। बच्चे ने देखा कि नेहरू जी ने तारीख नहीं लिखी है तो उन्होंने तारीख लिखने के लिए नेहरू जी से कहा। इस बात पर नेहरू जी ने उर्दू भाषा के अंकों में तारीख लिख दी। इस पर बच्चे ने कहा यह तो उर्दू में हैं। नेहरू जी ने बच्चे से कहा— तुमने साइन अंग्रेजी शब्द में कहा तो मैंने अंग्रेजी में साइन किए, फिर तुमने तारीख उर्दू शब्द में कहा, मैंने तारीख उर्दू में लिखी। ऐसा विनोदी स्वभाव था नेहरूजी का।
नेहरू जी की विनम्रता
एक बार पंडित नेहरू कुंभ मेले में गए। कुंभ मेले में बहुत भीड़ लगी हुई थी। नेहरू जी की एक झलक देखने के लिए जनता उतावली हो रही थी। इसी बीच एक बूढ़ी महिला नेहरू जी की कार के सामने आग गई और चिल्लाने लगी, "अरे ओ जवाहर, कहां है तू? तू कहता था कि आजादी मिल, किसे मिली आजादी? तुम जैसे मोटर—गाड़ी में घूमने वालो को, हम जैसे गरीब लोगों को कहां मिली आजादी। उस बूढ़ी औरत की बात सुनकर नेहरू जी तुरंत कार से उतरे और उस महिला के सामने नतमस्तक हो गए और हाथ जोड़कर विनम्र भाव से बोले— मांजी! आपने कहा कहां है आजादी? आज आप अपने देश के प्रधानमंत्री को "तू" कहकर संबोधन कर रही हैं, उसे डांट रही हैं, आप अपनी बात बेहिचक कह रही हैं यही तो असली आजादी है।
नेहरू जी का विनम्र स्वभाव देखकर उस बूढ़ी महिला का गुस्सा शांत हो गया। फिर नेहरू जी ने उसे आश्वस्त किया कि उसकी शिकायत का जरूर समाधान निकाला जाएगा।
Created On :   13 Nov 2021 3:07 PM GMT