किसान आंदोलन का 47वां दिनः 'केंद्र सरकार कृषि कानूनों पर रोक नहीं लगाना चाहती तो हम इन पर रोक लगाएंगे': सुप्रीम कोर्ट 

 किसान आंदोलन का 47वां दिनः 'केंद्र सरकार कृषि कानूनों पर रोक नहीं लगाना चाहती तो हम इन पर रोक लगाएंगे': सुप्रीम कोर्ट 

डिजिटल डेस्क ( भोपाल)।   देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चले रहे किसान आंदोलन का सोमवार को 47वां दिन है। किसान केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों के विरोध में सड़कों पर उतरे हुए हैं। देश की शीर्ष अदालत ने आज (सोमवार) किसानों के आंदोलन और नये कृषि कानूनों से संबंधित विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि "भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अगर केंद्र सरकार कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक नहीं लगाना चाहती तो हम इन पर रोक लगाएंगे"। उधर, संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान संगठनों ने आंदोलन को और तेज करने की रणनीति बनाई है, जिसमें 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली समेत देशभर में किसान परेड निकालने का एलान किया गया है। हालांकि, किसान नेता हनन मुल्ला कहते हैं कि किसान परेड से देश के गणतंत्र दिवस के उत्सव में कोई बाधा नहीं पहुंचाई जाएगी। हनन मुल्ला अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हैं। उन्होंने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा कि गणतंत्र दिवस पर जब देश की राजधानी में मुख्य समारोह समाप्त हो जाएगा तब किसान भी अपने ट्रैक्टर के साथ देशभर में परेड निकालेंगे।

सुप्रीम कोर्ट में आंदोलन के कारण रास्ता रोके जाने से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, हमने रास्ता रोका नहीं है। बैरिकेड लगाकर रास्ता सरकार ने रोका है। उन्होंने बताया कि रास्ता रोके जाने से संबंधित याचिका में जिन आठ लोगों के नाम नोटिस आया है उनके वकील अदालत में जाएंगे। 

तीन कृषि कानूनों के मसले को लेकर सरकार के साथ पिछली वार्ता के दौरान सुप्रीम कोर्ट जाने की बात से इनकार करने पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि किसान संगठनों ने पहले ही बता दिया है उनकी फरियाद उस सरकार से है जिसे देश की जनता ने चुना है। इसलिए जनता की फरियाद सुनना सरकार का काम है और इस बीच में कोर्ट को नहीं आना चाहिए। उन्होंने एक और वजह का जिक्र करते हुए कहा कि अदालत कानूनी मसलों में तो दखल देती है मगर यह सरकार की नीति से संबंधित मसला है जिसमें अदालत दखल नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट में रास्ता रोके जाने के अलावा कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी नये कृषि कानूनों को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की हैं। इसके अलावा, किसानों का एक संगठन ने अपनी याचिका में कृषि सुधार को किसानों के हित में बताया है। 

सरकार के साथ आठ दौर की वार्ता बेनतीजा रहने के बाद अब किसान संगठनों के साथ अगली वार्ता 15 जनवरी को होने जा रही है। किसान संगठनों ने इससे पहले 13 जनवरी को लोहड़ी और 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए आंदोलन तेज करने की रणनीति बनाई है। अगर अगली वार्ता भी विफल रहती है तो आगे की उनकी क्या रणनीति होगी। इस पर पूछे गए सवाल पर हनन मुल्ला ने कहा, हमारा आंदोलन काफी शांतिपूर्ण है और आगे भी शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहेगा। देश के 719 जिलों में 20 जनवरी तक किसान जिला मुख्यालय में धरना-प्रदर्शन करेंगे और 23 जनवरी से लेकर 25 जनवरी तक गर्वनर हाउस के सामने धरना-प्रदर्शन किया जाएगा। फिर 26 जनवरी को किसान परेड निकाला जाएगा।

उन्होंने कहा, नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी से लेकर 25 जनवरी तक तीन दिन देश के किसान राज्यों में गवर्नर हाउस के सामने धरना-प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि किसान परेड भी शांतिपूर्ण होगा और शांतिपूर्ण तरीके से ही दिल्ली में भी प्रवेश करने की कोशिश की जाएगी। 

किसान यूनियनों के नेता केंद्र सरकार द्वारा लागू कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी देने की मांग कर रहे हैं। उनकी अन्य दो मांगों को सरकार ने पहले ही स्वीकार कर लिया है जो पराली दहन से संबंधित अध्यादेश में भारी जुमार्ना और जेल की सजा के प्रावधान और सिंचाई के लिए बिजली अनुदान से संबंधित हैं।

Created On :   11 Jan 2021 1:43 PM IST

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