गुजरात का पहला लव जिहाद मामला अदालत से बाहर समझौते पर समाप्त हुआ
- पांच अन्य के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट को रद्द कर दिया
डिजिटल डेस्क, अहमदाबाद। जून 2021 में वडोदरा शहर के गोत्री पुलिस स्टेशन में पहला लव जिहाद का मामला (गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट (संशोधन 2021) की धाराओं के तहत) दर्ज किया गया था। पिछले महीने गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति निराल मेहता की एकल पीठ ने अभियुक्त समीर कुरैशी और पांच अन्य के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट को रद्द कर दिया।
कुरैशी के खिलाफ प्राथमिकी को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, पक्षों के बीच एक सौहार्दपूर्ण समझौता हो गया है और वह (शिकायतकर्ता और आरोपी) एक साथ रह रहे हैं। मामले को देखते हुए, आपराधिक कार्यवाही के आगे जारी रहने से उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा और इस प्रकार, यह अदालत समझौते को स्वीकार करने के लिए इच्छुक है।
जब आरोपी समीर ने उच्च न्यायालय के समक्ष प्राथमिकी को रद्द करने के लिए याचिका दायर की, तो समीर की पत्नी और पीड़िता दिव्याबेन ने अदालत के सामने कहा था कि, लव जिहाद का एंगल खुद पुलिस ने उठाया था, ये आरोप गलत थे और उसने कभी ऐसे आरोप नहीं लगाए, उसने कभी यह आरोप नहीं लगाया कि उसे इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया गया।
वडोदरा जिला सरकारी वकील अनिल देसाई ने आईएएनएस को बताया कि अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के बाद दिव्याबेन ने अपना बयान और स्टैंड बदलना शुरू कर दिया और पुलिस और अभियोजन पक्ष ने भी इस पर ध्यान दिया। जब पुलिस रिमांड खत्म होने के तुरंत बाद उनके पति ने सुनवाई से पहले जमानत की अर्जी दी, सुनवाई निर्धारित होने से पहले ही दिव्या ने एक हलफनामा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि वह समीर की जमानत अर्जी का समर्थन करती हैं और इसका विरोध नहीं कर रही हैं। यह अलग बात है कि अदालत ने उनके हलफनामे को स्वीकार नहीं किया और जमानत अर्जी खारिज कर दी।
उसने अपनी शिकायत में अपने पति और उसके परिवार पर गंभीर आरोप लगाए थे। तत्कालीन पुलिस उपायुक्त जयराजसिंह वाला ने मीडिया को बताया था- उसने आरोप लगाया है कि समीर ने अपना धर्म छिपाया था, उसने खुद को एक ईसाई के रूप में पेश किया था और उससे दोस्ती की थी। उसकी अंतरंग तस्वीरों का दुरुपयोग करते हुए उसने ब्लैकमेल किया और कई बार उसके साथ बलात्कार किया, वह दो बार गर्भवती हुई और दोनों बार गर्भपात हो गया, उसने आरोप लगाया कि उसे उससे शादी करने के लिए मजबूर किया गया और बाद में उसने और उसके परिवार ने उसे इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए मजबूर किया। उसके परिवार के सदस्य उसे बुर्का पहनने के लिए मजबूर कर रहे थे, उसकी सास जातिवादी टिप्पणी करती है, क्योंकि वह आदिवासी समुदाय से थी।
इन तमाम आरोपों के बाद उन्होंने अपना स्टैंड बदल लिया। देसाई ने कहा, यह संभव है कि समीर के परिवार या किसी अन्य समूह द्वारा उस पर समझौता करने का दबाव डाला गया हो। देसाई ने कहा कि हालांकि उनका बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया गया था, लेकिन वह इससे मुकर गई। अभियोजन पक्ष ने मजबूत मामला बनाने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष आपराधिक प्रक्रिया संहिता 164 के तहत गवाहों और अन्य समर्थकों के बयान दर्ज करना शुरू कर दिया । लेकिन अगर दोनों पक्ष इस तरह की शिकायत दर्ज कराने के बाद समझौता कर लेते हैं तो अभियोजन पक्ष के पास कुछ ही विकल्प बचते हैं।
(आईएएनएस)
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Created On :   26 Nov 2022 6:01 PM IST