सेना के रिटायर्ड सूबेदार को मिली जमानत, फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने घोषित किया था विदेशी
- विदेशी घोषित किए जाने के बाद सनाउल्लाह को असम के एक डिटेंशन कैंप में रखा गया था
- रिटायर होने के बाद के बाद
- वह असम पुलिस की बॉर्डर विंग में शामिल हो गए थे
- विदेशी नागरिक घोषित किए गए सेना के रिटायर्ड सूबेदार मोहम्मद सनाउल्लाह को जमानत मिल गई है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। विदेशी नागरिक घोषित किए गए सेना के रिटायर्ड सूबेदार मोहम्मद सनाउल्लाह को जमानत मिल गई है। उन्हें विदेशी घोषित किए जाने के बाद से असम के एक डिटेंशन कैंप में रखा गया था। हालांकि सनाउल्लाह की ओर से गुवाहाटी हाईकोर्ट में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के खिलाफ दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई जारी रहेगी।
एडवोकेट इंदिरा जयसिंह सनाउल्लाह की ओर से कोर्ट में पेश हुईं। असम पुलिस की बॉर्डर ब्रांच के एक पूर्व उपनिरीक्षक के खिलाफ FIR दर्ज होने के तीन दिन बाद सनाउल्लाह को जमानत मिली है। पूर्व उपनिरीक्षक पर आरोप लगा है कि उसने 2008-09 में सनाउल्लाह के खिलाफ कथित रूप से मनगढ़ंत रिपोर्ट तैयार की थी जिसके कारण उन्हें (सनाउल्लाह को) "अवैध विदेशी" घोषित किया गया और बाद में गिरफ्तार कर लिया गया।
अधिकारियों ने कहा कि एसआई चंद्रमल दास की 2009 की रिपोर्ट में सनाउल्लाह को "विदेशी" के रूप में फ्रेम करने के लिए तीन लोगों को गवाह के रूप में नामित किया गया था। इन तीनों गवाहों ने दास पर उनके स्टेटमेंट से छेड़छाड़ करने और फर्जी हस्ताक्षर करने के आरोप लगाता हुए FIR दर्ज की है।
बता दें कि 23 मई को, सनाउल्लाह को विदेशियों के ट्रिब्यूनल नंबर 2 कामरूप (ग्रामीण) ने विदेशी घोषित किया था। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में सेवा करने के बाद, 52 वर्षीय अगस्त 2017 में भारतीय सेना के इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स कॉर्प्स से सूबेदार के रूप में रिटायर हुए थे। वह 21 मई, 1987 को सेना में शामिल हुए थे और उन्हें 2014 में राष्ट्रपति के प्रमाणपत्र से सम्मानित भी किया गया था।
रिटायर होने के बाद के बाद, वह कामरूप (ग्रामीण) जिले में एक सब-इंस्पेक्टर के रूप में असम पुलिस की बॉर्डर विंग में शामिल हो गए। यह एक विशेष विंग है जो राज्य में अवैध प्रवासियों का पता लगाने के लिए काम करती है। सनाउल्लाह के परिवार के सदस्य और वकील कहते हैं कि उनकी भारतीय नागरिकता उनके पूर्वजों के दस्तावेजों और भारतीय सेना के साथ उनके रोज़गार से आसानी से साबित की जा सकती है।
बता दें कि देश में असम अकेला ऐसा राज्य है, जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था है। ये कानून देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है। असम समझौता साल 1985 से ही लागू है और इस समझौते के तहत 24 मार्च 1971 की आधी रात तक असम में दाखिल होने वाले लोगों को ही भारतीय माना जाएगा।
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुताबिक, जिस व्यक्ति की सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होती है, उसे अवैध नागरिक माना जाता है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है।
Created On :   7 Jun 2019 9:40 PM IST