डॉ. भीमराव अम्बेडकर पुण्यतिथि: सिर्फ दलित ही नहीं संपूर्ण समाज के लिए किए थे ये काम
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय संविधान के शिल्पकार, समाज सुधारक भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की आज 63वीं पुण्यतिथि है। उन्होंने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण समाज सुधार कार्य किए थे जिस वजह से हो वो हमेशा याद किए जाएंगे। वह एक अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और सामाज सुधारक थे, उन्हें ‘भारतीय संविधान का पिता’ भी कहा जाता है। आज उनकी पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...
चलाए थे ये अभियान
डॉक्टर अंबेडकर ने दलित, महिला और श्रम के खिलाफ सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के लिए अभियान चलाए थे। उन्होंने समाज सुधार कार्य के साथ ही पुरुष प्रधान समाज के खिलाफ महिलाओं के अधिकार से जुड़े कार्य भी किए थे। जो महिला को सश्कत बनाने में काफी मददगार रही।
आंनदोलनों में दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊंच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (वर्ष 1928), नासिक सत्याग्रह (वर्ष 1930), येवला की गर्जना (वर्ष 1935) जैसे आंदोलन शामिल है।
प्यार से कहते थे बाबा साहेब
अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ में हुआ वो अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। अम्बेडकर को प्यार से सभी बाबा साहेब कह कर पुकारते है।
महज 15 साल की उम्र में सन 1906 में अंबेडकर की शादी नौ साल की रमाबाई से हुई थी। 1908 में वे एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला लेने वाले पहले दलित बच्चे बने। अंबेडकर के पास कुल 32 डिग्री थीं। वो विदेश जाकर अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले पहले भारतीय
बने।
सामाजिक भेदभाव का किया सामना
बाबा साहेब का परिवार महार जाति से संबंध रखता था, जिसे अछूत माना जाता था। बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखने वाले अम्बेडकर ने विषम परिस्थितियों में पढ़ाई शुरू की। स्कूल से लेकर कार्यस्थल तक उन्हें अपमानित किया गया। शिक्षित होने के बाद भी उन्हें जातिवाद का दंश झेलना पड़ा था।
डॉक्टर अंबेडकर को 1947 में देश का पहला लॉ एंड जस्टिस मिनिस्टर बनाया गया था। वूमन राइट्स बिल रिजेक्ट होने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। मध्य प्रदेश और बिहार को विभाजित करने का विचार पहले अंबेडकर द्वारा प्रस्तावित किया गया था। 1912 में दोनों राज्य बने।
दुनिया को अलविदा कहने से पहले किए ये काम
अंबेडकर ने 1942 में नई दिल्ली में भारतीय श्रम सम्मेलन के 7 वें सत्र में भारत में काम करने के घंटों को 14 घंटे से घटाकर 8 घंटे कर दिया था। इससे पहले 1935-36 में अंबेडकर ने ‘वेटिंग फॉर ए वीजा’ नाम से 20 पेज की ऑटोबायोग्राफी लिखी। इसका इस्तेमाल कोलंबिया यूनिवर्सिटी एक टेक्स्ट बुक के तौर पर करती है।
उन्होंने अपनी मृत्यु से तीन दिन पहले उन्होंने अपनी पांडुलिपि – बुद्ध और उनका धम्म को पूरा किया। 6 दिसंबर 1956 को अम्बेडकर इस दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन बाबा साहेब अपने विचारों के जरिये आज भी लोगों के दिलों में जिन्दा है।
Created On :   6 Dec 2019 6:31 AM GMT