चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा चंद्रयान-3, इसके हिस्से में ऐसा क्या है खास, जिसे खंगालने में 15 दिन लगाएगा ये यान?
- चंद्रयान-3 की सफलतापूर्वक हुई लॉन्चिंग
- करीब 40 दिनों के बाद चांद के दक्षिणी ध्रुव पर होगी लैंडिंग
डिजिटल डेस्क, श्री हरिकोटा। भारत ने चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग सफलापूर्वक कर दी है। इसे दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन सेंटर से लॉन्च किया गया। मून मिशन के तहत चंद्रयान-3 का निर्माण किया गया है। चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 का मकसद रहने वाला है। जिसका मकसद चांद की दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है। चन्द्रमा का दक्षिणी ध्रुव, वो जगह है जहां आज तक कोई नहीं पहुंच पाया है। अगर भारत का चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर सफलतापूर्वक चांद की दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कर लेता है तो हम दुनिया के पहले ऐसे देश होंगे जिसने ये उपलब्धि हासिल की होगी। साथ ही भारत चौथा ऐसा देश होगा जिसने चांद की सतह पर अपना लैंडर उतारा होगा। चांद पर अब तक अमेरिका, रूस और चीन ही सफल तरीकों से लैंडिंग करा पाए हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था (ISRO) ने साल 2019 में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग कराने के लिए लैंडर उतारा था लेकिन हार्ड लैंडिंग की वजह से हमें सफलता नहीं मिली थी। जिसको देखते हुए भारत ने एक बार फिर मिशन मून के तहत दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने के लिए चंद्रयान-3 में कई तरह के बदलाव किए हैं। चंद्रयान-3 को चांद पर पहुंचने में करीब 40 दिन लगेंगे। अंदाजा है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो अगले महीने की 23 या 24 तारीख को चंद्रयान-3 चांद की दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कर जाएगा। चांद की दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग को लेकर भारत ही नहीं अमेरिका और चीन समेत पूरी दुनिया की नजरें हैं। चीन ने कुछ साल पहले चांद की दक्षिणी सत्तह से कुछ दूरी पर अपना लैंडर उतारा था, जो काफी हद तक सफल भी रहा था। इसके अलावा अमेरिका अगले साल दक्षिणी ध्रुव पर अपने वैज्ञानिकों को भेजने की तैयारी भी कर रहा है।
चांद का दक्षिणी ध्रुव ही क्यों?
- चांद का दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव जैसा ही मिलता जुलता है। पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका में है, जो धरती का सबसे ठंडा इलाका है। चांद का दक्षिणी ध्रुव भी काफी ठंडा है।
- चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अगर कोई अंतरिक्ष यात्री खड़ा होता है तो उसे सूर्य क्षितिज की रेखा पर नजर आएगा, जो चांद की सतह से लगते हुए उसे और चमकता नजर आएगा।
- सूर्य की किरण तिरछी पड़ने की वजह से चांद के दक्षिणी ध्रुव के ज्यादातर हिस्सों पर पर काफी अंधेरा रहता है। जिस कारण वहां के तापमान काफी कम होता है।
- भारत पहले चंद्रयान-2 और अब चंद्रयान-3 के जरिए चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचना चाहता है। जिसके के तहत भारत ने अपना पहला कदम रख दिया है।
- ऐसा अंदाजा है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर ज्यादा ठंड होने की वजह से यहां पानी और खनिज भारी मात्रा में हो सकते हैं। जिसकी पुष्टि पहले ही मून मिशन में की जा चुकी है।
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर क्या है?
- अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है जहां दूसरे कई प्राकृतिक संसाधन हो सकते हैं लेकिन इस हिस्से को जानने के लिए बहुत सी जानकारियां जुटानी बाकी है।
- साल 1998 में नासा ने मून मिशन के तहत यह बताया था कि दक्षिणी ध्रुव पर हाइड्रोजन है। नासा का दावा है कि अधिक मात्रा में हाइड्रोजन होने की वजह से वहां बर्फ होने की संभावना है। इसके अलावा चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बड़े-बड़े पहाड़ और कई गड्ढे (क्रेटर्स) हैं। दक्षिणी ध्रुव पर सूरज की रोशनी बहुत ही कम पड़ती है।
- दक्षिणी ध्रुव के कुछ हिस्सों पर सूरज की रोशनी आती है। जहां करीब 54 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है। लेकिन इस ध्रुव के अधिक से अधिक क्षेत्रों में सूरज की रोशनी नहीं पड़ती है। जिसकी वजह से वहां माइनस 248 डिग्री सेल्सियस तक तापमान रहता है। नासा की मानें तो, चांद के दक्षिणी सतह पर कई सारे क्रेटर्स ऐसे भी हैं जहां अरबों साल से सूरज की रोशनी नहीं पड़ी है।
- रिपोर्ट्स के मुताबिक, चांद का दक्षिणी ध्रुव पूरी तरह से अंधेरे में डूबा नहीं है। दक्षिणी ध्रुव के कई इलाके ऐसे भी हैं जहां सूर्य का प्रकाश जाता है। नासा के अनुसार, शेकलटन क्रेटर के पास कई ऐसी जगहें हैं जहां साल के 200 दिन सूरज की रोशनी रहती है।
- रिपोर्ट्स के मुताबिक, चांद का दक्षिणी ध्रुव काफी रहस्यों से भरा हुआ है। दुनिया अब तक इस ध्रुव को लेकर अंजान है। नासा के एक वैज्ञानिक का कहना है कि हम जानते हैं कि इस पर बर्फ है और वहां कई प्रकार के प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं लेकिन दुनिया इस चीज से अनभिज्ञ है।
- नासा के मुताबिक, जिस स्थान पर सूर्य की किरण नहीं पड़ती है खास कर उन क्रेटर्स (गड्ढों) पर जहां अरबों साल से अंधेरा है वहां बर्फ होने की ज्यादा संभावना है।
- अंदाजा यह भी है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अरबों सालों से जमा पानी भी हो सकता है। जिससे सौरमंडल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य हासिल करने में मदद मिल सकती है।
- नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी और बर्फ की जानकारी मिल जाती है तो यह पता लगाना आसान हो जाएगा कि दूसरे पदार्थ सौरमंडल में कैसे घूम रहे हैं। नासा के अनुसार, पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों से बर्फ मिला है। जिससे पता चला है कि हमारे ग्रह की जलवायु और वातावरण हजारों साल में किस तरह से विकसित हुई हैं।
- चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ या पानी मिल जाती है तो उसका उपयोग पीने, रॉकेट फ्यूल बनाने, उपकरणों को ठंडा करने और शोधकार्यओं में किया जा सकता है।
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचना कितना मुश्किल?
- चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचना बड़ा ही कठिन है। जिसका मुख्य कारण घनघोर अंधेरा है। इस सतह पर लैंडर उतारना या अंतरिक्ष यात्री को, दोनों ही मामलों में बड़ा ही चुनौती है क्योंकि चांद पर पृथ्वी जैसा वायुमंडल नहीं है। साथ ही यहां बहुत ही अंधेरा है।
- नासा की मानें तो, दुनिया कितनी भी एडवांस्ड लैंडर और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर ले लेकिन ये बता पाना मुश्किल है कि दक्षिणी ध्रुव पर जमीन कैसी दिखती है। नासा का कहना है कि, चांद पर बढ़ते घटते तापमान की वजह से लैंडर के खराब होने की संभावना अधिक रहती है।
- भारत चांद के दक्षिणी हिस्से पर अपना लैंडर भेजने का अथक प्रयास किए हुए है लेकिन अमेरिका की स्पेस एजेंसी अगले साल अंतरिक्ष यात्री भेजने जा रही है।
भारत का चंद्रयान-3 का क्या है मिशन?
चंद्रयान-3 का मिशन वहीं है जो साल 2019 में चंद्रयान-2 का रहा था। चंद्रयान-3 का मिशन चांद के दक्षिणी सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करना ही पहली प्राथमिकता है। इसरो चंद्रयान-3 को महज 615 करोड़ रुपये में निर्मित किया है जो अपने आप में एक सफलता है क्योंकि मिशन स्पेस के लिए दुनिया लाखों करोड़ों रुपये खर्च करती है।
इसरो के अनुसार, चंद्रयान-3 के तीन महत्वपूर्ण मकसद हैं।
- पहला- विक्रम लैंडर की चांद के दक्षिणी सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग करना।
- दूसरा- प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर चलाकर दिखाना।
- तीसरा- वैज्ञानिक परीक्षण करना।
Created On :   14 July 2023 6:11 PM IST