इंदौर में युवाओं ने मिलकर बनाया मानव कैप्सूल, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किए जाने का दावा

डिजिटल डेस्क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वस्थ भारत के अभियान को साकार करने और जेनेरिक दवाओं का महत्व बताने के लिए इंदौर में एक हजार युवाओं ने मिलकर मानव कैप्सूल बनाया। इतनी बड़ी संख्या में मिलकर युवाओं द्वारा मानव कैप्सूल की आकृति बनाने को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किए जाने का दावा किया जा रहा है।
मानव कैप्सूल बनाने वाले समूह के प्रमुख डॉ. पुनीत द्विवेदी ने बताया है कि वर्तमान दौर में लोग ब्रांडेड सामान के उपयोग करने को ज्यादा महत्व देते हैं। यही कुछ दवाओं के मामले में हो रहा है, जिसके चलते उन्हें कम कीमत पर मिलने वाली जेनेरिक दवाओं के मुकाबले ब्रांडेड कंपनी की दवा के नाम पर ज्यादा दाम चुकाना पड़ता है।
फार्मासिस्ट दिवस पर बुधवार को इंदौर के मॉडर्न इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज के परिसर में डॉ. द्विवेदी के नेतृत्व में एक हजार युवाओं ने नीले और सफेद कपड़े पहनकर यह मानव कैप्सूल बनाया। इस कैप्सूल को ठीक वैसा ही स्वरूप दिया गया, जैसा कि कैप्सूल होता है। एक तरफ सफेद तो दूसरी ओर नीले रंग के कपड़े पहने युवाओं को खड़ा किया गया। इसके चलते एक ही स्थान पर जमा हुए एक हजार युवा कैप्सूल के रूप में नजर आने लगे। इस मानव कैप्सूल को बनाने वाले 1000 युवा लगभग 15 मिनट तक एक ही स्थान पर खड़े रहे।
डॉ. द्विवेदी का दावा है कि यह अपनी तरह का नया कीर्तिमान है। इसके लिए आयोजन स्थल पर वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड की इंडिया टीम के डॉ. प्रदीप मिश्रा, तिथि भल्ला और वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड के यूएस प्रतिनिधि डॉ. दिवाकर सुकुल मौजूद रहे। इससे पहले वर्ष 2018 में 18 मार्च को केरल में कुन्नूर में डॉ. जयनारायण जी एवं कालीकट इंस्टीट्यूशन की अगुवाई में 438 लोगों ने शामिल होकर एक मानव कैप्सूल बनाया था।
डॉ. द्विवेदी का कहना है कि लोगों में यह जागृति आवश्यक है कि प्रमुख कंपनियों अथवा ब्रांडेड कंपनियों की जेनेरिक दवाओं की कीमत बहुत अधिक होती है, जबकि उसी फामूर्ले, यानी ठीक वैसी ही बनी दूसरी कंपनियों की दवा की कीमत काफी कम होती है, मगर चिकित्सक और दवा विक्रेता अपना लाभ कमाने के लिए ब्रांडेड कंपनी की दवा देते हैं। इसका गरीब परिवार के लोगों की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता है। लिहाजा, लोगों में यह जागृति लाना जरूरी हो गया है कि जेनेरिक दवा एक ही है, बस फर्क कंपनी का होता है। इस वास्तविकता को समझें।
संस्थान के वाइस चेयरमैन शांतनु खरिया ने कहा कि इस तरह का नवाचार विद्यार्थियों में कुछ नया करने की उम्मीद पैदा करते हैं व उन्हें विश्व स्तर पर सोचने के लिए प्रेरित करते हैं, साथ ही उनका संपूर्ण विकास करता है।
Created On :   28 Sept 2019 1:30 PM IST