केंद्रीय विश्वविद्यालय में 2800 वर्ष पुरानी काशी, मथुरा, पांचाल, अयोध्या की मुद्राओं का अध्ययन

Study of 2800 years old currency of Kashi, Mathura, Panchal, Ayodhya in Central University
केंद्रीय विश्वविद्यालय में 2800 वर्ष पुरानी काशी, मथुरा, पांचाल, अयोध्या की मुद्राओं का अध्ययन
नई दिल्ली केंद्रीय विश्वविद्यालय में 2800 वर्ष पुरानी काशी, मथुरा, पांचाल, अयोध्या की मुद्राओं का अध्ययन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय मुद्राशास्त्र के इतिहास में आहत (पंचमार्क) मुद्राओं का स्थान अग्रणी है। ये मुद्राएं भारत की सर्वप्रथम जारी होने वाली मुदाएं हैं। आहत मुद्राओं, जो कि आज से 2800 वर्ष पुरानी है, बीएचयू के मुद्राशास्त्री इसके जारीकर्ता के सम्बन्ध में अध्ययन करेंगे। प्रारम्भ में इस प्रोजेक्ट का दायरा उत्तर प्रदेश से प्राप्त सिक्के ही हैं। काशी, मथुरा, पांचाल, अयोध्या से प्राप्त सिक्कों का तुलनात्मक अध्ययन भी किया जाएगा।

चांदी की इन पुरानी मुद्राओं के अध्ययन हेतु इनका विश्लेषण किया जाएगा, जिसमें अन्य विभागों से भी सहयोग लिया जाएगा। चांदी की इन पुरानी मुद्राओं को बड़े पैमाने पर जारी किया गया, साथ ही पूर देश में इनकी प्राप्ति होती है। निश्चित रूप से ये कहा जा सकता है कि ये मुद्राएं पूरे देश में सर्वस्वीकार्य थीं। हालांकि इन मुद्राओं की आपूर्ति, प्राचीनता और जारीकर्ता के सम्बन्ध जैसे कई ऐसे प्रश्न हैं, जिन पर अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है।

यह भी कहा जाता है कि भारत से बाहर से आने वाले लोगों के प्रभाव में ये मुद्राएं जारी हुई। इन्हीं प्रश्नों के आलोक में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला संकाय स्थित प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार उपाध्याय को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, जो कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त संस्था है, ने एक परियोजना स्वीकृत की है।

इस परियोजना में डॉ. उपाध्याय आहत मुद्राओं, जो कि आज से 2800 वर्ष पुरानी है, के जारीकर्ता के सम्बन्ध में अध्ययन करेंगे। इन चांदी की मुद्राओं के अध्ययन हेतु इनका धातु विश्लेषण (मेटल एनेलिसिस) किया जाएगा। इसमें भौतिकी, धातुकीय और भौमिकी विभागों से भी सहयोग लिया जाएगा।

यह भी एक तथ्य है कि वर्तमान समय में इन पुरानी मुद्राओं की नकल करते हुए जाली मुद्राएं बनाई जाती हैं, जिनकों बाजार में उनके प्राच्य मूल्य के आधार पर बेचा जाता है। जिस पर रोक लगाने की आवश्यकता है। एक सामान्य शोधार्थी के लिए नकली और सही मुद्राओं में अन्तर कर पाना कठिन होता जा रहा है। इससे अध्ययन में वर्तमान समय में बढ़ी जाली मुद्राओं के आधार पर भी ऐतिहासिक अध्ययन हो रहे हैं। जिससे इस अध्ययन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

इस प्रोजेक्ट में यह भी देखा जाएगा कि इन सिक्कों के निर्माण में प्रयुक्त चांदी कहां से लाई जाती थी और इन सिक्कों के निर्माण में कौन सी तकनीक शामिल थी। प्रारम्भ में इस प्रोजेक्ट का दायरा उत्तर प्रदेश से प्राप्त सिक्के ही हैं, जिसे भविष्य में और विस्तृत किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश में अलग-अलग जगहों जैसे काशी, मथुरा, पांचाल, अयोध्या से प्राप्त सिक्कों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उन पर प्राप्त प्रतीक चिह्नें की ऐतिहासिक व्याख्या भी की जाएगी। डॉ. उपाध्यया ने बताया कि अध्ययन के दौरान हम यह जान पाएगे कि इन्हें किस टकसाल से जारी किया गया है और इनकी प्राचीनता क्या है। साहित्यिक साक्ष्यों मुख्य रूप से वैदिक ग्रन्थों में प्राप्त संदर्भों से इनकी पुष्टि भी होगी।

(आईएएनएस)

Created On :   21 Jan 2022 10:30 PM IST

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