अंगिका की उपेक्षा को लेकर फिर आंदोलन की सुगबुगाहट

Again the flurry of agitation over Angikas neglect
अंगिका की उपेक्षा को लेकर फिर आंदोलन की सुगबुगाहट
बिहार अंगिका की उपेक्षा को लेकर फिर आंदोलन की सुगबुगाहट
हाईलाइट
  • अंगिका भाषा-भाषी का मौलिक अधिकार है

डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार के कई क्षेत्रों में बोली जाने वाली अंगिका भाषा को मातृ भाषाओं की सूची में शामिल करने तथा बिहार राज्य में दूसरी भाषा का दर्जा देने की मांग काफी पुरानी है। इसे लेकर एक बार फिर आंदोलन की सुगबुगाहट तेज होने लगी है। अंगिका भाषा को लेकर आंदोलन कर रहे लोगों का मानना है कि अंगिका भाषा का उपयोग और इसकी रक्षा करना अंग प्रदेश तथा देश और दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे हर अंगिका भाषा-भाषी का मौलिक अधिकार है।

अंगिका भाषा को लेकर मुखर रहे प्रसून लतांत कहते हैं कि भारत की जनगणना की निर्धारित की गई 277 मातृभाषाओं की कोड सूची में करोड़ों लोगों की अंगिका भाषा को शामिल नहीं करना निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा अंगिका भाषा और अंग संस्कृति के अस्तित्व को खत्म करने की योजनाबद्ध तरीके से की जा रही गहरी साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है। जिसमें अंगिका भाषा-भाषी की करोडों की जनसंख्या को मैथिली की जनसंख्या बताकर पहले तो मैथिली को संविधान की अष्टम अनुसूची में जगह दी जाती है फिर उसी आधार पर अंग प्रदेश को मिथिलांचल का हिस्सा बताकर अलग मिथिला राज्य का सपना बुना जा रहा है। करोड़ों लोगों की मातृभाषा अंगिका को मातृभाषा कोड देना भारत सरकार की संवैधानिक जिम्मेवारी है। अंगिका को लेकर आवाज उठाने वालों की मांग करने वाले कहते हैं कि लोकल फॉर वोकल की बात करने वाले प्रधानमंत्री को संज्ञान लेकर जनगणना के लिए अंगिका को मातृभाषा कोड प्रदान करना चाहिए।

बताया जाता है कि झारखंड की द्वितीय राजभाषा के रुप में दर्ज अंगिका, भारत की उन चुनिंदा 38 भाषाओं में से एक है जो संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल होने के लिए वर्ष 2003 से ही कतारबद्ध है, लेकिन जनगणना के लिए 277 भारतीय भाषाओं की सूची में इसे शामिल नहीं किया जाता है। अंगिका को लेकर आंदोलन करने वाले कुमार कृष्णन कहते हैं, वर्ष 2003 में भारत सरकार द्वारा गठित सीताकांत महापात्रा कमिटी द्वारा जिन 38 मातृभाषाओं को संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल करने के लिए अनुशंसित किया है, उनमें अंगिका प्रथम स्थान पर चिन्हित है।

उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा अंगिका भाषा को मातृभाषा कोड प्रदान न करने की स्थिति में हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट का शरण लिया जाएगा। हिंदी के लेखक और भागलपुर विश्वविद्यालय में अंगिका विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र बताते हैं कि 18 जिलों में पांच छह करोड़ लोग जिस भाषा को बोलते हैं, उसको कोड नहीं मिलना साजिश है। अंगिका के बारे में राज्य या केन्द्र सरकार को क्या मालूम नहीं है? बज्जिका और अंगिका को छोड़ देना साजिश है। आठवीं अनुसूची में भी साजिश की गई। यह काफी खेदजनक है। जनगणना रजिस्ट्रार को इस बारे में मैंने पत्र भी भेजा है कि यह दोयम दर्जे का काम किया जा रहा है।

 

 (आईएएनएस)

Created On :   17 April 2022 12:31 PM IST

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