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अब केवल मराठी में लगेगा पातूर नप का फलक
डिजिटल डेस्क, पातूर। नगर परिषद के नाम फलक के मामले को लेकर पार्षद वर्षा बगाड़े की ओर से जारी न्यायिक संघर्ष में सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला आया है। न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हए नाम फलक के लिए मराठी के साथ उर्दू भाषा के इस्तेमाल का आदेश खारिज कर दिया है। इस फैसले के अनुसार पातूर नगर परिषद का उर्दू भाषा में लिखा हुआ नाम फलक अब हटाकर केवल मराठी में लिखे जाने का आदेश मिला है। पातूर नगर परिषद की पूर्व उपाध्यक्ष वर्षा संजय बगाड़े ने पातूर नगर परिषद के फलक के लिए उर्दू भाषा के इस्तेमाल पर आपत्ति जताते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। जहां से उन्हें न्याय मिला है। देश के सर्वोच्च न्यायालय के अहम फैसले के दस्तावेज को वर्षा संजय बगाड़े ने पातूर नगर परिषद की मुख्याधिकारी सोनाली यादव को सौंपकर इस मामलें में फैसले के अनुसार अमल करने की मांग की है। पातूर नगर परिषद की नयी इमारत का फलक, पुराने कार्यालय का फलक, नगर परिषद अंतर्गत आने वाली सभी शालाएं, सांस्कृतिक सभागृह, अग्निशमन केंद्र, घनकचरा व्यवस्थापन केंद्र, जलापूर्ति योजना इन सभी स्थनों के नामों के फलक जहां जहां उर्दू भाषा में लिखे होंगे वह सब हटाकर वहां पर मराठी भाषा का इस्तेमाल किया जाए। जिस से सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान होगा और मराठी भाषा को राजभाषा का दर्जा भी मिलेगा ऐसी मांग वर्षा बगाड़े ने ज्ञापन के माध्यम से की है।
क्या है मामला ?
पातूर नगरपरिषद की नई इमारत पर नगर परिषद कार्यालय का नाम मराठी के साथ साथ उर्दू भाषा में भी लिखा जाए यह प्रस्ताव पातूर नगर परिषद के तत्कालीन कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के पदाधिकारियों ने 14 फरवरी 2020 की सर्वसाधारण सभा में मंजूर किया था। इस प्रस्ताव पर पूर्व नगर परिषद उपाध्यक्ष वर्षा संजय बगाड़े ने आपत्ति जताते हुए महाराष्ट्र सरकार के मराठी राज भाषा कानून के तहत केवल मराठी भाषा का इस्तेमाल हो इस तरह की दलील दी थी। उन्होंने ने इस प्रस्ताव के खिलाफ अकोला जिलाधिकारी के न्यायालय में चुनौती भी दी थी। जिस पर अकोला जिलाधिकारी ने वर्षा बगाड़े के पक्ष में फैसला सुनाते हुए केवल मराठी भाषा का ही इस्तेमाल हो इस तरह के निर्देश दिए थे। किंतु पातुर नगरपरिषद के सत्ता दल के पदाधिकारियों ने जिलाधिकारी के इस फैसले को अमरावती विभागीय आयुक्त के सामने चुनौती के रूप में रखा गया। अमरावती आयुक्त ने इस मामले में चलती आ रही परंपरा को मान्यता देते हुए केवल मराठी ही नहीं बल्कि उर्दू भाषा का इस्तेमाल कर दोनों भाषा में नाम फलक लिखा जाए इस तरह का फैसला सुनाया था। इस फैसलें के बाद वर्षा बगाड़े ने नागपुर उच्च न्यायालय में आयुक्त के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। इस मामले में उच्च न्यायालय नागपुर ने अमरावती आयुक्त के फैसले को सही करार देते हुए मराठी भाषा के साथ साथ उर्दू भाषा में फलक लिखने के निर्देश कायम किए थे। लेकिन वर्षा बगाडे ने मामले को दिल्ली सर्वोच्च न्यायालय में इस संदर्भ में याचिका दायर की। न्यायालय ने इस मामले में अहम और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायालय नागपुर के मराठी के साथ उर्दू भाषा के इस्तेमाल को लेकर दिए गए आदेश को खारिज कर दिया। यह फैसला 29 अप्रैल 2022 को आया है। इस मामले में वर्षा संजय बगाड़े की ओर से एड. सत्यजित रघुवंशी, एड. कुणाल चीमा ने पैरवी की।
Created On :   5 May 2022 4:33 PM IST