भास्कर हिंदी एक्सक्लूसिव: छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले की दोनों सीटों पर होता है जातिगत मुकाबला

छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले की दोनों सीटों पर होता है जातिगत मुकाबला
  • कबीरधाम जिले में पंडरिया और कवर्धा दो विधानसभा सीट
  • दोनों ही सीट आदिवासी बाहुल्य
  • जिले में जातियों का मिला जुला समीकरण

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दुर्ग संभाग में दुर्ग समेत राजनांदगांव, बालोद,बेमेतरा एवं कबीरधाम जिले आते है। दुर्ग जिले में दुर्ग शहर, भिलाई नगर, वैशाली नगर और अहिवारा विधानसभा सीट आती है। राजनांदगांव जिले में डोंगरगढ़, राजनांदगांव,डोंगरगांव, खुज्जी विधानसभा सीट आती है। बालोद जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र संजारी बालोद,डौण्डीलोहरा और गुण्डरदेही सीट आती है। बेमेतरा जिले की विधानसभा सीट साजा,बेमेतरा और नवागढ़ विधानसभा सीट आती है। कबीर धाम जिले के विधानसभा क्षेत्र पंडरिया और कवर्धा विधानसभा सीट आती है। दोनों ही सामान्य सीट है। आज हम कबीर धाम जिले की दोनों सीटों के चुनावी समीकरण के बारे में जानकारी देंगे। कबीरधाम जिला पहले कवर्धा जिले के नाम से जाना जाता था। कबीर के आगमन और उनके शिष्य धर्मदास के वंशज की गद्दी स्थापना के कारण इस जगह का नाम कबीरधाम पड़ा।

कबीरधाम पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का गृह जिला है। जिसकी वजह से यहां से रमन सिंह की साख जुड़ी रहती है। जिसकी वजह से यहां सब की नजर टिकी रहती है। कबीर धाम जिले के अंतर्गत पंडरिया और कवर्धा विधानसभा सीट आती है। बर्तमान समय में दोनों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। कबीरधाम जिला मैकल पर्वत और जंगलों से घिरा हुआ है। क्षेत्र में कृषि मुख्य व्यवसाय है। धान और गन्ना की फसल खूब होती है। इसके चलते जिले में दो शक्कर कारखाना भी है। कवर्धा जिले की दोनों ही सीटों पर चुनाव जाति मोड़ में होता है। 2008 परिसीमन के बाद पार्टियों की चुनाव जीतने की निर्भरता जातियों पर और अधिक बढ़ गई। पार्टियां प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार तक जाति समीकरण पर टिकी रहती है। मुख्य चुनावी मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता है, लेकिन बीएसपी और जीजीपी चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना देती है।

पंडरिया विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से ममता चंद्राकर

2013 में बीजेपी से मोतीराम चंद्रवंशी

2008 में कांग्रेस से मोहम्मद अकबर

पंडरिया विधानसभा सीट पर आदिवासी, कुर्मी और चंद्रवंशी समाज का प्रभाव है। दोनों ही समुदायों के मतदाता चुनाव में निर्णायक मोड़ में होते है। जो हार जीत का फैसला करते है। वनांचल क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय का प्रभुत्व है, वहीं जमीन स्तर पर चंद्रवंशी समाज का दबदबा है। प्रमुख पार्टियां जातिगत समीकरण के आधार पर ही उम्मीदवार उतारते है।

पंडरिया में एसटी वोटर्स की संख्या अन्य वर्गों के वोटर्सों से ज्यादा है। यहां आदिवासी मतदाताओं की संख्या 60 हजार के आसपास है।वहीं पिछड़े वर्ग में कुर्मी समाज की तादाद दूसरे नंबर पर है। उसके बाद साहू और पटेल मतदाताओं की है।

पहाड़ी और वनांचल क्षेत्रों में पानी और बिजली की समस्या है। सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की आईसीयू जैसी हालत है। पंडरिया के विसेसरा गांव में शक्कर मिल है। चीनी मिल ही रोजगार का एक मात्र जरिया है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से लोग परेशान है। कई गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

कवर्धा विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से मोहम्मद अकबर

2013 में बीजेपी से अशोक साहू

2008 में डॉ सियाराम साहू

कवर्धा में जाति और विकास का मुद्दा चुनाव में खूब शोर मचाता है। विधानसभा के राम्हेपुर गांव में शक्कर मिल है। विधानसभा क्षेत्र में सभी समुदाय के लोग रहते है, मिला जुला जातिगत समीकरण यहां देखने को मिलता है। लेकिन अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाता सर्वाधिक है। राजनैतिक दलों के आंकलन के मुताबिक यहां 50 हजार से ज्यादा एसटी वोटर्स है। दूसरे नंबर पर साहू समाज , जिनकी तादाद 40 हजार से अधिक है। वहीं 38 हजार से अधिक कुर्मी और 32 हजार के आस पास अनुसूचित जाति वोटर्स है। जो चुनाव में अहम भूमिका निभाते है।

छत्तीसगढ़ का सियासी सफर

1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ ने सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।

प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गद्दी संभाली थी। पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। 2018 में कांग्रेस की बंपर जीत से बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।

Created On :   5 Oct 2023 7:18 PM IST

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