सतपुड़ा की पहाड़ियों में बसे आदिवासी बाहुल्य बैतूल की जनता विकास पर करती है वोटिंग
- बैतूल जिले में निर्णायक भूमिका में आदिवासी मतदाता
- बीजेपी और कांग्रेस में मुख्य मुकाबला
- 5 सीटों में से 4 पर कांग्रेस 1 पर बीजेपी का कब्जा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सतपुड़ा की पहाड़ियों में बसा बैतूल जिला मध्यप्रदेश के दक्षिणी जिलों में स्थित है।आदिवासी बाहुल्य बैतूल के उत्तर में नर्मदा और दक्षिण में मैदानी भाग है। बैतूल जिले में 5 विधानसभा सीट है, जिनमें आमला,बैतूल, घोड़ाडोंगरी,भैंसदेही और मुलताई सीट शामिल है। पांच सीटों में एक सीट आमला अनुसूचित जाति और घोंड़ाडोंगरी और भैंसदेही दो सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। बैतूल और मुलताई दो सीट सामान्य के लिए है। 2013 में जिले की पांचों विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा था, वहीं 2018 में बाजी पलटी और पांच में से चार सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी।
बैतूल विधानसभा सीट
बैतूल विधानसभा सीट पर किसी भी एक राजनैतिक दल का राज नहीं है, यहां के समीकरण बदलते रहते है। जातियों की बात की जाए को कुनबी, पवार और आदिवासी मतदाताओं की संख्या बड़ी तादाद में है, लेकिन यहां के मतदाता जातीय चेहरे पर कम विकास पर वोट करने में अधिक विश्वास रखती है। 2003,2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में बैतूल सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, जबकि 2018 में बीजेपी को मात देते हुए कांग्रेस ने बाजी मारी।
2018 में कांग्रेस से निलय कुमार डागा
2013 में बीजेपी के हेमंत विजय खंडेलवाल
2008 में बीजेपी के अल्केश आर्य
2003 में बीजेपी के शिव प्रसाद राठौर
1998 में कांग्रेस के विधान मिश्रा
1993 में कांग्रेस के अशोक सेबल
1990 में बीजेपी के भागवत पटेल
1985 में कांग्रेस के अशोक सेबल
1980 में बीजेपी के माधव गोपाल नसेरी
1977 में अश्विनी कुमार लखनलाल
आमला विधानसभा सीट
आगामी चुनावों में जिले की आमला विधानसभा सीट सबसे अधिक चर्चित होने वाली है। क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में मात्र इस सीट ने बीजेपी की लाज बचाई थी। और अब 1 प्रशासनिक अधिकारी के चलते ये सीट राजनीतिक गलियारों में सबसे अधिक चर्चा का विषय बना हुआ है। लंबे समय से बीजेपी के कब्जे में होने के कारण कांग्रेस हर हाल में इस सीट पर जीत का स्वाद चखना चाहेगी।
2018 में बीजेपी के डॉ योगेश पांडगर
2013 में बीजेपी के चैत्रम मानेकर
2008 में बीजेपी के चैत्रम मानेकर
2003 में कांग्रेस से बेले सुनीता
1998 में बीजेपी की गंगूराम बघेल
1993 में कांग्रेस के गुरुबैक्स अतुलकर
1990 में बीजेपी के कन्हैया लाल ढोलकेर
1985 में बीजेपी के कन्हैयालाल ढोलकेर
1980 में कांग्रेस से गुरुबक्स अतुलकर
1977 में जेएनपी के रतनदास हरदास
घोड़ाडोंगरी विधानसभा सीट
घोड़ाडोंगरी विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। सीट पर 60 फीसदी मतदाता एसटी समुदाय के है। इस सीट पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में होते है। घोड़ाडोंगरी विधानसभा के सियासी इतिहास की बात करें तो अब तक हुए कुल 13 चुनावों में कांग्रेस ने 4 बार तो बीजेपी ने 6 बार जीत हासिल की है। वहीं जन संघ ने 2 बार और जनता पार्टी ने 1 बार जीत दर्ज की। जमीनी हकीकत पर विकास नजर नहीं आता है, इलाका आधारभूत सुविधाएं शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल में पिछड़ा हुआ है।
2018 में कांग्रेस के ब्रह्मा भलावी
2013 में बीजेपी के सज्जन सिंह उइके
2008 में बीजेपी की गीता रामजीलाल उइके
2003 में एसपी से अर्जुन पलिया
1998 में बीजेपी के शिवरतन शर्मा
1993 में कांग्रेस के राधेश्याम शर्मा
1990 में कांग्रेस के श्यामचरण शुक्ला
1985 में कांग्रेस से कलावती शीओ लाल मेहता
1980 में कांग्रेस से जगदीश प्रसाद अग्रवाल
1977 में कांग्रेस से जगदीश प्रसाद अग्रवाल
भैंसदेही विधानसभा सीट
भैंसदेही विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। सीट पर मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता है। चुनाव में कोरकू और गोंड जनजाति के मतदाता अहम भूमिका अदा करते है। यहां गोगंपा पार्टी की सक्रियता और निष्क्रियता चुनाव के नतीजों को प्रभावित करती है। राजनैतिक पार्टियां जातियों को ध्यान में रखकर प्रत्याशियों को मैदान में उतारती है।
2018 में कांग्रेस से धरमू सिंह
2013 में बीजेपी के महेंद्र केशर सिंह
2008 में कांग्रेस के धरमू सिंह सिरशाम
2003 में बीजेपी के महेंद्र सिंह
1998 में कांग्रेस से गणेश शंकर
1993 में गंजन सिंह
1990 में बीजेपी के सत्यनारायण केशरवानी
1985 में कांग्रेस से सतीश कुमार चौहान
1980 में कांग्रेस से गणेश शंकर
1977 में जेएनपी से वंसराज महावीर प्रसाद
मुलताई विधानसभा सीट
मुलताई विधानसभा सीट कुनबी और पवार बाहुल्य है। जो जीत तय करते है। मुलताई विधानसभा सीट कुनबी और पवार बाहुल्य है। जो जीत तय करते है। कुनबी समाज के प्रतिनिधित्व और कुनबी समाज के मतदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण 2008 से कुनबी समाज का विधायक निर्वाचित होते आ रहे है
2018 में कांग्रेस के सुखदेव पांसे
2013 में बीजेपी के चंद्रशेखर देशमुख
2008 में कांग्रेस के सुखदेव पांसे
2003 में बीजेपी के रमेश दुबे
1998 में निर्दलीय सुनील
1993 में निर्दलीय पी आर बोधखे
1990 में बीजेपी के मणिराम बरेंज
1985 में कांग्रेस के सत्यनारायण शर्मा
1980 में निर्दलीय मणिराम बरेंज
1977 में जेएनपी के रामलाल जोधन