पन्ना: आधुनिकता के युग से पिछड़ा टिकरिया गांव के आदिवासी, बदहाल स्थिति में जीवन यापन

  • 20 साल से अंधेरे में डूबा गांव
  • विकास के नाम पर महज प्राईमरी स्कूल
  • सडक, बिजली व पानी के लिए तरस रहे ग्रामीण लोग

Bhaskar Hindi
Update: 2024-06-20 13:03 GMT

डिजिटल डेस्क, पन्ना। समय के साथ सबका विकास हो रहा है लेकिन यह बात शायद जिले के टिकरिया गांव के आदिवासियों के लिए सच नहीं है। जिले के पवई विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम पंचायत पडवार का गांव टिकरिया आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। करीब 300 की आबादी वाले इस गांव में न तो सडक है, न पानी और न ही बिजली है। बात करें तो 20 साल पहले कुछ समय के लिए यह बल्व जले थे जो वर्ष 2003 से बंद है। इसके बाद यहां बिजली की आपूर्ति नहीं हुई। गांव में सभी आदिवासी परिवार रहते हैं विकास के नाम पर शासन से इन्हें प्राईमरी स्कूल जरूर मिला है। इसके अलावा पंचायत ने कुछ हैण्डपम्प एवं एक अधूरी सीसी सडक गांव में बनाई है। इसके अलावा यहां के लोगों को विकास के मायने ही नहीं पता हैं। शासन की योजनाओं के बारे में कुछ ग्रामीणों ने सुना जरूर है लेकिन उसका लाभ कैसे मिलता है यह नहीं जाते। गांव के ज्यादातर लोग पास की पत्थर खदानों में काम करते हैं और जंगल से लकडी लाकर गुजर बसर करते हैं।

इनका जीवन आज भी उसी तरह चल रहा है जैसा कई सदियों पहले इनके पूर्वजों का हुआ करता था। फर्क सिर्फ इतना है कि गांव के कुछ युवाओं के हांथ में मोबाइल फोन था वह भी इसलिए कि अधिकांश युवा काम की तलाश में महानगरों में जाते हैं वहीं से वह मोबाइल से जुड गए। विकास के दावों के बीच टिकरिया गांव की हकीकत इन सभी दावाओं को खोखला बताती है। ग्रामीणों ने बताया कि यहां कभी कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं पहुंचे। चुनाव के समय में कुछ नेता जरूर आते हैं। ग्रामीणों ने एक बार अपनी समस्याओं को लेकर चुनाव का बहिष्कार किया था जिसके बाद यहां कुछ अधिकारी पहुंचे थे। अधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाईश दी और पूरा भरोसा दिया था कि चुनाव के बाद उनकी समस्या का निदान होगा। इस आश्वासन के बाद ग्रामीणों ने वोट डाले लेकिन चुनाव गुजरने के महीनों बाद भी उनकी कोई सुध लेने नहीं आया। भीषण गर्मी के दौर में इन आदिवासी परिवारों के बच्चों की हालत देखते ही बनती है। कोई पेड के नीचे तो कोई बंद कमरों में किसी तरह जीवन यापन करने को मजबूर है इनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है।

न सड़क, न बिजली कैसे होगा विकास

विकास के नाम पर लगातार दावे हो रहे हैं लेकिन टिकरिया गांव इन दावों से इतर दिखाई पडता है। मोहन्द्रा-रैपुरा मार्ग पर कच्चे रास्ते से होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। यह कच्चा रास्ता भी टिकरिया में स्थित पत्थर खदानों के वाहनों की निकासी के लिए बनाया गया है। पहले यहां यह रास्ता भी नहीं था। स्थानीय निवासी द्रोपती बाई ने बताया कि गांव में कोई बीमार होता था तो सडक तक कंधे पर लेकर जाना पडता है। बारिश के दिनों अब भी यही करना पडता है। गांव के लिए सडक की मांग वर्षों से कर रहे हैं। विजय आदिवासी बताते हैं कि पानी के लिए भी गांव में कोई स्थाई व्यवस्था नहीं है। 4 हैण्डपम्प है जिसमें दो हमेशा खराब रहते है जो शेष है उनकी हालत यह कि 15 मिनट चलाने पर 1 बल्टी पानी आता है। ग्रामीणों को काफी दूर से सिर पर पानी लाना पडता है। दयाराम आदिवासी ने बताया कि गांव में सबसे बडी समस्या बिजली है। हमारे बच्चे अंधेरे में रहने को मजबूर हैं। सोलर प्लेट से मोबाईल व एक बल्ब जलता है वह भी कुछ समय के लिए ही रहता है। पूरा गांव अंधेरे में डूबा रहता है गांव में खम्बे, ट्रांसफारमर सब है बस 20 साल से लाइट नहीं हैं।

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