MP का MLA: सिवनी विधानसभा में कांग्रेस का वनवास जारी,क्या 2023 में देगी बीजेपी को मात!

  • 1990 के बाद से नहीं जीती कांग्रेस
  • 2013 से विधायक हैं दिनेश रॉय मुनमुन

Bhaskar Hindi
Update: 2023-06-12 13:38 GMT

डिजिटल डेस्क, सिवनी। सिवनी जिले की सिवनी विधानसभा सीट से कांग्रेस का वनवास खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है और यह राजनीतिक वनवास लगभग 33 सालों का हो चुका है। क्योंकि वर्ष 1990 के बाद से कांग्रेस सिवनी विधानसभा से जीत नहीं पाई है। अगर कांग्रेस की जीत की बात करें तो यहां से 1985 में अंतिम कांग्रेसी विधायक रमेश चंद्र जैन जीते थे। उसके बाद से कांग्रेस के लिए यहां से जीत के दरवाजे बंद ही हो गए। लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस जीताऊ चेहरे की तलाश तेज कर दी है। अगर सिवनी विधानसभा सीट की डेमोग्राफी की बात की जाए तो यहां पर दो जातियों का दबदबा है। पहली है कुर्मी और दूसरी बागरी जाति । भाजपा की जीत में दोनों जातियां  महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही हैं।

सिवनी बनी भाजपा का गढ़

किसी भी पार्टी को चुनाव जीतने के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं की जरूरत होती है। इस मामले में भाजपा सिवनी में बहुत ही लकी साबित होती है। भाजपा यहां से किसी को भी टिकट दे, कार्यकर्ता उसे जिताने के लिए पूरी लगन और निष्ठा से जुट जाते हैं। सिवनी विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ है। वर्तमान विधायक दिनेश राय मुनमुन हैं जो सिवनी जिले के लखनादौन के रहने वाले हैं। उन्होंने वर्ष 2008 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप से पहली बार सिवनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था और भाजपा प्रत्याशी नरेश दिवाकर से हार गए थे। लेकिन कहा जाता है कि राजनीति में पहली हार ही आपकी बड़ी जीत का राह खोलती है। 2013 में उन्होंने फिर से निर्दलीय चुनाव लड़ा और 25 हजार मतों से जीत हासिल की। उसके बाद 2018 में  उन्होंने बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और अपनी जीत को बरकरार रखा। 2023 में सिवनी विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया। वह इसे किसी भी प्रकार के साम, दाम, दंड से जीतना चाहेगी। अगर बात करें भाजपा की जीत की तो यहां से नरेश दिवाकर दो बार और नीता पटेरिया एक बार विधायक रह चुकी हैं।

युवाओं को वादा नहीं रोजगार की जरूरत

रोजगार को लेकर यहां के नेताओं से मिलने वाले आश्वासन से यहां के लोग ऊब चुके हैं। अब उन्हें कुछ ठोस कामों की जरूरत है। जिससे यहां के नौजवानों को रोजगार मिल सके। बेरोजगारी यहां की भी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। लोगों की शिकायतें भी अपने विधायक से ही हैं । लोगों का कहना है कि यहां के विधायक के विकास का काम सिर्फ सोशल मीडिया पर ही देखने को मिलता है। जमीन पर कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता है। वहीं विधायक दिनेश राय मुनमुन आश्वसानों का पिटारा खोलते हुए कहते हैं कि सिवनी विधानसभा में इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि महाविद्यालय की जरूरत हैं। सिंचाई से छूटे हुए क्षेत्रों को सिंचाई की सुविधा मुहैया कराना है। बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए उद्योगों को स्थापित कराने के प्रयास आगे किए जाएंगे। जनता की जितनी जरूरतें हैं उनको जल्द से जल्द पूरा करना है।

वहीं कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राजकुमार खुराना का कहना है कि विधानसभा चुनाव को लेकर बूथ लेवल पर कार्यकर्ता तैयार हैं। भाजपा सरकार की नाकामियां जनता के सामने है। लोगों ने कांग्रेस का 15 माह का कार्यकाल देखा है। 2023 के विधानसभा चुनाव को लेकर कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है। हम 33 साल का सूखा सिवनी विधानसभा से समाप्त करेंगे और अबकी बार सिवनी में कांग्रेस का विधायक होगा।

सिवनी में भाजपा-कांग्रेस का माहौल क्या है ?

अगर सिवनी से कांग्रेस के पतन की कहानी देखी जाए तो 1990 में दिग्गज कांग्रेसी ठाकुर हरवंश सिंह की हार से शुरु हुई। उसके बाद यहां से कांग्रेस की जीत का खाता बंद ही हो गया। 1993 में भाजपा के महेश शुक्ला से आशुतोष वर्मा हारे, वर्ष 1998 में पुन: आशुतोष वर्मा को भाजपा के नरेश दिवाकर से मुंह की खानी पड़ी। तो वर्ष 2003 में वर्तमान कांग्रेस जिला अध्यक्ष राजकुमार खुराना का मुकाबला भाजपा के विधायक नरेश दिवाकर से हुआ , लेकिन उस मुकाबले में भी कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार खुराना को हार का सामना करना पड़ा।

वर्ष 2008 में यहां से भाजपा की उम्मीदवार नीता पटेरिया ने कांग्रेस के प्रत्याशी प्रसन्न चंद मालू को हराया। वर्ष 2013 में कांग्रेस ने एक बार फिर वर्तमान जिलाध्यक्ष राजकुमार खुराना पर फिर से भरोसा जताया लेकिन इस बार उनकी हालत और खराब हो गई। खुराना को निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश राय के सामने शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस तीसरे स्थान पहुंच गई। लेकिन कांग्रेस के लिए संतोष की बात यह थी कि यहां से इस बार भाजपा भी चुनाव हार गई।

वर्ष 2018 में दिनेश राय ने भाजपा से हाथ मिलाया और वह भाजपा के प्रत्याशी बने, उनका मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी मोहन चंदेल से हुआ। इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस की हार हुई। लेकिन राहत की बात यह रही कि इस बार कांग्रेस के हारने का मार्जिन बहुत ही कम रहा। इतनी हारों को देखने के बाद सिवनी को लेकर कांग्रेस के बारे में एक बात कही जा सकती है कि कांग्रेस साल दर साल यहां से प्रत्याशी तो बदलती रही लेकिन उनका परिणाम एक जैसा रहा।

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