MP का MLA: सिहोरा में इस बार कांग्रेस की होगी अग्निपरीक्षा, बीजेपी ने कर रखी है मजबूत किलेबंदी
- 2023 विधानसभा चुनाव के लिए सत्ता का अखाड़ा बना संस्कारधानी
- 2003 के विधानसभा चुनाव से हार रही कांग्रेस
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाला जबलपुर 2023 विधानसभा चुनाव के लिए सत्ता का अखाड़ा बन गया है। कांग्रेस की दिग्गज नेता और महासचिव प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के चुनाव प्रचार का बिगुल यहां से फूंक दिया है। तो वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना " मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना" की शुरुआत भी जबलपुर के गैरिसन ग्राउंड से की, जिसमें शिवराज सिंह चौहान ने 1 करोड़ 25 लाख लाड़ली बहनों के खाते में 1000 रुपये ट्रांसफर किए।
जबलपुर संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें पाटन, बारगी, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर छावनी, जबलपुर पश्चिम, पनागर, सिहोरा शामिल हैं। लेकिन अगर बात की जाए सिहोरा विधानसभा सीट की तो यह कांग्रेस के दिग्गजों के लिए नाक का सवाल बन गया है। सिहोरा विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है और इस सीट पर पिछले कुछ चुनावों से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अजेय रही है। पिछले तीन बार से नंदनी मरावी यहां से विधायक हैं । इस बार भी मरावी भाजपा से टिकट की प्रबल दावेदार हैं। उनकी कोशिश रहेगी कि भाजपा की अजेयता बरकरार रहे। लेकिन कांग्रेस भी इस बार पूरे दमखम के साथ 2023 की विधानसभा चुनाव में उतर रही है।
सिहोरा को जिला बनाने की मांग
अगर बात की जाए सिहोरा की तो यह मप्र के सबसे पुराने विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। बावजूद इसके क्षेत्र में आज भी उच्च शिक्षण के लिए मानक अनुरूप संस्थान, बुनियादी सुविधाएं और विकास की कमी नजर आती हैं। हालांकि वोटरों के एक वर्ग का यह भी मानना हैं की क्षेत्र में विकास के बहुत से कार्य हुए हैं और जनप्रतिनिधियों ने सरकारों के सामने क्षेत्र की समस्याओं को लेकर आवाजें भी उठाई हैं।
हालांकि सिहोरा को जिला बनाने की मांग भी वर्षों से लंबित है। इसलिए इस विधानसभा चुनाव यह प्रमुख चुनावी मुद्दा हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के रणनीतिकारों की कोशिश है कि भाजपा को जीत का पंजा लगाने से रोका जाए। हालांकि टिकट के लिए एक से ज्यादा दावेदार कांग्रेस की रणनीति को कमजोर भी कर रहे हैं।
विकास के बड़े-बड़े दावे और हकीकत
विकास के मानकों की कसौटी पर अगर सिहोरा को कसा जाए तो यह कहीं से भी उस पर खरा नहीं उतरती है। विकास के सभी दावों के बीच सिहोरा आज भी बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं में अभी बहुत पिछड़ा नजर आता है। कांग्रेस की महिला नेता और जिला पंचायत सदस्य एकता ठाकुर का कहना है कि क्षेत्र में आज युवाओं, महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हमारी पार्टी इन्हीं मुद्दों को लेकर मैदान में उतरेगी। फिलहाल सिहोरा को जिला बनाने का मुद्दा प्रमुख है, जिसको लेकर हमारे वरिष्ठ नेता ने घोषणा भी की है कि हमारी सरकार बनती है तो सिहोरा को जिला बनाया जाएगा।
वहीं भाजपा विधायक नंदनी मरावी का कहना है कि, 'सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में लगातार विकास कार्य किए जा रहे हैं। हाल ही में कुंडम ब्लॉक में तीन जलाशयों का निर्माण कराया गया है। जिससे उस क्षेत्र में पानी की समस्या दूर हो। दो सीएम राइज स्कूल,ओवर ब्रिज के निर्माण का काम भी प्रगति पर है। हम आम लोगों को योजनाओं का लाभ भी दिला रहे हैं।'
सिहोरा में जातियों का समीकरण
भारत एक ऐसा देश है जहां चुनाव से पहले कितने भी विकास के दावे कर लिए जाए। लेकिन, चुनाव के समय जातिगत समीकरण को देखकर ही टिकटों का बंटवारा किया जाता है। क्योंकि नेताओं को इस बात पूरी जानकारी होती है कि अंतिम में चुनाव जातियों के समीकरण के आधार पर ही जीता जाएगा।
जनजाति समाज को कांग्रेस पहले अपने वोट बैंक माना करती थी, लेकिन बदली हुई परिस्थियों में यह वोट बैंक कांग्रेस से छिटक गया। सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में सिहोरा, मझगवां और गोसलपुर ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र है। वहीं कुंडम क्षेत्र में गोंड और कोल जातियों का समीकरण चुनाव में जीत हार का फैसला तय करता है।
अगर कांग्रेस के हार के कारणों का नजदीक से विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि कांग्रेस पिछले बीस वर्षों में सिहोरा से ठीक-ठाक चेहरे वाला प्रत्याशी ही उतारने में विफल रही है। यही कारण है कि पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशियों को बड़े अंतर से हार झेलनी पड़ी। भाजपा के लिए इस बार जीत कुछ कठिन जरूर लग रही है क्योंकि लोगों का कहना है कि पुरानी पेंशन की बहाली का मुद्दा इस बार के चुनाव में बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। जिसका असर हर विधानसभा सीट पर देखने को मिलेगी।। यहां के लोगों का कहना है कि इस बार सिहोरा में कुछ अलग देखने को मिल सकता है। क्योंकि इस बार वोट सिहोरा के सम्मान के नाम पर होगा । खितौला रेलवे फाटक का लंबित ओवरब्रिज संपूर्ण सिहोरा को परेशान कर रहा है। यह मामला इस चुनाव प्रमुख मुद्दा बनेगा।
भाजपा का गढ़ बनी सिहोरा
2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के दिलीप दुबे ने कांग्रेस को यहां से पहली बार पराजित किया। उससे पहले सिहोरा विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था। इस जीत के बाद से भाजपा ने इस सीट पर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। क्या 2008, 2013 और 2018 सभी चुनावों में भाजपा ने इस सीट पर अपना दबदबा बरकरार रखा। इस बार कांग्रेस पूरे दमखम के साथ भाजपा के इस गढ़ को तोड़ने की कोशिश करेगी।