कांग्रेस के जमाने से राज्यपाल के पद का बड़े पैमाने पर हो रहा दुरुपयोग
नई दिल्ली कांग्रेस के जमाने से राज्यपाल के पद का बड़े पैमाने पर हो रहा दुरुपयोग
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में राज्यपाल के पद का दुरुपयोग कोई नई बात नहीं है, क्योंकि इसका इस्तेमाल विभिन्न सरकारों ने अपनी राजनीतिक जरूरतों के अनुरूप किया है। पहला मामला उत्तर प्रदेश का है, जहां लोकतांत्रिक कांग्रेस और अन्य विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद जब बहुमत नहीं रहा, तो 1998 में अदालत ने हस्तक्षेप कर कल्याण सिंह सरकार को बहाल कर दिया। तब यूपी के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने तुरंत सरकार को बर्खास्त कर दिया और लोकतांत्रिक कांग्रेस के जगदंबिका पाल को नया मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन अदालत द्वारा कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में बहाल करने के तीन दिन बाद जगदंबिका पाल को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
दूसरा मामला बिहार का है, 2005 में बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह ने बिहार विधानसभा को भंग करने की सिफारिश की थी। तब 243 सदस्यीय सदन में जद (यू) और भाजपा को 115 विधायकों के समर्थन से बहुमत का दावा किया था। उसी साल, झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिभु सोरेन को नई सरकार बनाने की अनुमति दी थी, हालांकि एनडीए ने 80 सदस्यीय विधानसभा में 41 विधायकों के समर्थन का दावा किया था। यह मामला शीर्ष अदालत में पहुंचा, जिसने शक्ति परीक्षण का आदेश दिया। इसमें झामुमो बहुमत साबित नहीं कर सका और भाजपा के अर्जुन मुंडा ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
1959 से राज्यपाल की भूमिका सुर्खियों में आई। पहली बार केरल में ई.एम.एस. नंबूदरीपाद के नेतृत्व वाली सरकार को राज्यपाल बी.आर. राव ने हटा दिया। यह तब हुआ जब वाम सरकार द्वारा प्रस्तावित भू-स्वामित्व और शिक्षा पर विधेयकों के बाद राज्य में बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए। वहीं, 1967 में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल धर्म वीरा ने अजय मुखर्जी की सरकार को बर्खास्त कर दिया। जिसके बाद पी.सी. घोष नए मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनी।
एक दूसरा उदाहरण हरियाणा के राज्यपाल जी.डी. तापसे का भी है, जिन्होंने लोक दल और सीएम उम्मीदवार देवीलाल की अनदेखी की और 1982 में कांग्रेस के भजन लाल को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई। आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री एन.टी. रामा राव 1984 में दिल की सर्जरी के लिए अमेरिका गए थे, जब उनके वित्त मंत्री एन. भास्कर राव ने पार्टी छोड़ दी और सीएम के रूप में दावा पेश कर दिया। राज्यपाल रामलाल ने उन्हें शपथ दिलाई।
कर्नाटक के राज्यपाल पी. वेंकटसुब्बैया ने 1988 में मुख्यमंत्री एस.आर. बोम्मई को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद विधानसभा में बहुमत साबित करने की अनुमति नहीं दी थी। 1996 में, भाजपा के गुजरात के मुख्यमंत्री सुरेश मेहता को शंकर सिंह वाघेला और 40 अन्य विधायकों के नेतृत्व वाले एक समूह द्वारा विद्रोह का सामना करना पड़ा। भाजपा के बहुमत साबित करने के बाद भी राज्यपाल कृष्ण पाल सिंह ने राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की थी।
(आईएएनएस)
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