खेल और युवा: मद्रास हाईकोर्ट ने उदयनिधि स्टालिन को ईपीएस के खिलाफ अपमानजनक बयान देने से रोका
- मद्रास हाईकोर्ट ने लगाई फटकार
- तमिलनाडु के खेल और युवा मामलों के मंत्री उदयनिधि स्टालिन
- ईपीएस के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने से रोक
डिजिटल डेस्क, चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के खेल और युवा मामलों के मंत्री उदयनिधि स्टालिन को पूर्व सीएम एडप्पादी के. पलानीस्वामी (ईपीएस) के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने से रोक दिया।
मद्रास हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति आर. मंजुला ने 1.1 करोड़ रुपये के हर्जाने के लिए एडप्पादी के. पलानीस्वामी द्वारा दायर एक नागरिक मुकदमे के अनुसार दो सप्ताह की अवधि के लिए अंतरिम निषेधाज्ञा दी।
अन्नाद्रमुक नेता ने याचिका दायर की है कि द्रमुक युवा विंग के नेता उदयनिधि स्टालिन सार्वजनिक मंचों पर कोडनाड हत्या-डकैती मामले और भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित मामले में उनका नाम जोड़कर अपमानजनक बयान दे रहे हैं।
न्यायाधीश ने मंत्री को दो हफ्ते के भीतर नोटिस लौटाने का आदेश दिया। ईपीएस का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता विजय नारायणन ने अदालत को बताया कि उदयनिधि स्टालिन ने 7 सितंबर को आरोप लगाते हुए एक लिखित बयान जारी किया था और अपने सोशल मीडिया अकाउंट 'एक्स' पर साझा किया था। इसके कारण वर्तमान मामला दर्ज किया गया है।
वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि 'सनातन धर्म' पर उनके विवादास्पद भाषण के बाद जो पत्र जारी किया गया था, उसमें मंत्री ने आरोप लगाया था कि ईपीएस कोडनाड हत्या और डकैती मामले में शामिल थे और भ्रष्टाचार के आरोप का भी सामना कर रहे थे।
विजय नारायणन ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल, वादी का कोडनाड डकैती और हत्या मामले से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें मामले के संबंध में किसी भी एजेंसी द्वारा एक बार भी तलब नहीं किया गया है। मंत्री उदयनिधि स्पष्ट रूप से अपमानजनक आरोप लगा रहे हैं जो वादी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
वकील ने बताया कि अन्नाद्रमुक नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई आरोप लंबित नहीं है। डीएमके नेता आरएस. भारती ने हाईवे टेंडर में भ्रष्टाचार के संबंध में ईपीएस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन उनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी।
विजय नारायणन ने अदालत में तर्क दिया कि ईपीएस के खिलाफ मंत्री द्वारा उठाए गए अपमानजनक बयानों को सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर व्यापक रूप से साझा किया गया था, जिससे पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति हुई। वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि अंतरिम निषेधाज्ञा देने की जरूरत थी।
वकील ने यह भी कहा कि चुनावी वर्ष में मंत्री को इस तरह के आरोप जारी रखने की अनुमति देने से बहुत नुकसान होगा। अदालत प्रस्तुतियां से आश्वस्त थी और न्यायाधीश ने माना कि सुविधा का संतुलन ईपीएस, वादी के पक्ष में था और इसलिए अंतरिम निषेधाज्ञा दी जानी चाहिए।
आईएएनएस
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