संसद बजट सत्र: 'लोकसभा में आखिरी भाषण था कुछ तो नया बोलते', पीएम द्वारा नेहरू के जिक्र पर बोले कांग्रेस नेता शशि थरूर
- पीएम मोदी ने नेहरू-इंदिरा के पुराने बयानों का किया जिक्र
- शशि थरूर ने की आलोचना
- पीएम मोदी का लोकसभा में आखिरी भाषण होने का किया दावा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी ने आज लोकसभा में राष्ट्रपति की स्पीच पर धन्यवाद प्रस्ताव का जबाव दिया। इस दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और इंदिरा गांधी के पुराने बयानों का जिक्र कर कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। इसके जवाब में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने रिएक्शन दिया है। उन्होंने पीएम मोदी की स्पीच पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या पीएम थक गए हैं, जो एक ही भाषण बार-बार दे रहे हैं।
कांग्रेस सांसद ने कहा, "प्रधानमंत्री जी एक ही भाषण बार-बार दे रहे हैं। पता नहीं उन्हें क्या हो गया हैं? वे थक गए हैं क्या? हम तो मोदी जी के भाषण देने के गुण का बहुत सम्मान करते हैं।" उन्होंने पीएम द्वारा अपने अभिभाषण में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का जिक्र करने पर कहा, "नेहरू जी का देहांत हुए 60 साल हो गए हैं। कब तक वे (पीएम मोदी) उनको (जवाहर लाल नेहरू) लेकर भाषण देंगे।" यहां तक की शशि थरूर ने पीएम मोदी के संबोधन को उनका लोकसभा में आखिरी भाषण होने का दावा भी कर डाला। उन्होंने कहा, "यह उनका लोकसभा में आखिरी भाषण था कुछ तो नया बोलना चाहिए था।"
नेहरू को लेकर क्या बोले पीएम मोदी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा, 'अगर नेहरू जी का नाम लेते हैं तो कांग्रेस बुरा लगता है जम्मू-कश्मीर और देश के लोगों को नेहरू जी की गलतियों की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।' उन्होंने आगे पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू के पुराने बयानों का जिक्र करते हुए कहा, '15 अगस्त को लाल किले से प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था कि हिंदुस्तान में काफी मेहनत करने की आदत आमतौर से नहीं है। हम इतना काम नहीं करते जितना कि यूरोप वाले या जापान वाले या चीन वाले या रूस वाले या अमेरिका वाले करते हैं। यह नहीं समझिए कि वे कौमें किसी जादू से खुशहाल हो गईं। वे मेहनत से हुई हैं और अक्ल से हुई हैं।' पीएम ने कहा कि नेहरू जी की भारतीय जनता के प्रति सोच थी कि वो आलसी और कम अक्ल के हैं।
नेहरू के अलावा पीएम मोदी इंदिरा गांधी का जिक्र भी किया था। उन्होंने कहा कि नेहरू जी के जैसे ही पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भी सोच थी। एक बार उन्होंने भी लाल किले से कहा था, 'दुर्भाग्यवश हमारी आदत यह है कि जब कोई शुभ काम पूरा होने को होता है तो हम आत्मतुष्टि की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं और कठिनाई आने पर नाउम्मीद हो जाते हैं। कभी तो ऐसा लगने लगता है कि पूरे राष्ट्र ने पराजय भावना को अपना लिया है।'