मोदी 3.0: मंत्रिमंडल गठित लेकिन लोकसभा स्पीकर के लिए खींचतान जारी, TDP और JDU में तनातनी शुरू, अजीत भी कर रहे मांग!
- एनसीपी भी मांग पर अड़ा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एनडीए के संसदीय दल के नेता नरेंद्र मोदी ने रविवार को राष्ट्रपति भवन में तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस दौरान उनके साथ 71 मंत्रियों ने भी पद और गोपनियता की शपथ ली। इस बार मोदी 3.0 सरकार के मंत्रिमंडल में भाजपा समेत एनडीए के कई घटक दलों के कद्दावर नेताओं को जगह दी गई। हालांकि, भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार के तीसरे टर्म में मंत्री पदों का वितरण सुर्खियों में हैं। लेकिन, इस बीच लोकसभा में एक पद ऐसा है जिस पर भाजपा और एनडीए के सहयोगी दलों के बीच तनातनी चल रही है। दरअसल, यह पद है लोकसभा स्पीकर जिस पर तनातनी जारी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एनडीए गठबंधन में बतौर किंगमेकर साबित होने वाली टीडीपी और जेडीयू की निगाहें लोकसभा स्पीकर पद पर टिकी हुई हैं। मगर, भाजपा के सूत्रों का कहना है कि वह इस पद को किसी भी हालत में सौंपने की इच्छा में नहीं है। इतना ही नहीं, एनसीपी के सुप्रीमो अजीत पवार भी इस पद की मांग कर रही है।
लोकसभा स्पीकर पद को तवज्जों क्यों
भारत के संविधान में लोकसभा स्पीकर के पद को काफी तवज्जो दी गई है। सदन में नई लोकसभा की बैठक शुरू होने से ठीक पहले अध्यक्ष का पद खाली हो जाता है। राष्ट्रपति की ओर से गठित प्रोटेम स्पीकर नए सांसदों को पद की शपथ दिलाने का कार्य करता है। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव साधारण बहुमत के जरिए कराया जाता है। यदि देखा जाए तो लोकसभा अध्यक्ष के चयन को लेकर कोई विशेष पैमाना नहीं होता है। हालांकि, इस पद के लिए संविधान और संसदीय नियमों की समझ होना अनिवार्य है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ था। ऐसे में पार्टी ने लोकसभा स्पीकर के लिए सुमित्रा महाजन और ओम बिरला को नियुक्त किया था।
जेडीयू-टीडीपी कर रही मांग
संसदीय परंपराओं के मुताबिक, संसद में लोकसभा अध्यक्ष एक संवैधानिक पद है। संसद में इस पद की भूमिका निर्णयक होती है। इस पद को टीडीपी के सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू के मुखिया नीतीश कुमार 'बीमा' के तौर पर चाहता है। बीते कई सालों में कई राज्यों की सत्ताधारी पार्टियों में अंदरूनी मतभेद के कई वाकया देखने को मिले है। जिस वजह से पार्टियों में टूट पड़ने से सरकारों को सत्ता तक गवानी पड़ गई थी। ऐसे स्थिति में यहां पर दल बदल विरोधी कानून लागू किया जाता है। इस काननू से अध्यक्ष को संवैधानिक शक्तियां मिलती है। इस कानून के मुताबिक, "सदन के अध्यक्ष के पास दल-बदल के आधार पर सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मामलों को तय करने का पूर्ण अधिकार है।" बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले भी कई बार भाजपा पर जेडीयू को दरार डालने का आरोप लगाते रहे हैं। इस वजह से वह किसी भी तरह की बगावत और षड़यंत्र से बचना चाहते हैं।