श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन: जब पहली बार सार्वजनिक मंच से उठा राम मंदिर का मुद्दा, कांग्रेस नेता दाऊदयाल खन्ना ने संभाली हिंदू समाज की ओर से कमान, इंदिरा गांधी को लिखा था पत्र

  • कांग्रेस नेता दाऊदयाल खन्ना ने राम जन्मभूमि आंदोलन में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
  • 22 जनवरी को रामलला के मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा
  • राम मंदिर को लेकर राममय हुआ देश का माहौल

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-09 17:56 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 22 जनवरी को भव्य राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। इस कार्यक्रम की तैयारी में मंदिर ट्रस्ट, प्रदेश प्रशासन सहित कई हिंदू संगठन पूरे समर्पण से लगे हुए हैं। पूरे हिंदू समाज के लोग इस खास दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। यह सुनहरा दिन कई साधु-संतों और हिंदू सामाजिक संगठनों के सालों के संघर्ष का फल है। कई लोगों का इस संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिसमें एक नाम दाऊदयाल खन्ना का भी है। कांग्रेस नेता होने के बावजूद संगठन की सीमाओं को ताख पर रखकर उन्होंने राम मंदिर के लिए आवाज उठाई। दाऊदयाल खन्ना स्वतंत्रता सेनानी भी रह चुके थे, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।

सार्वजनिक मंच से उठाया राम मंदिर का मुद्दा

6 मार्च 1983 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में दाऊदयाल खन्ना ने मंच से अयोध्या-काशी-मथुरा की मुक्ति का सवाल उठाया था। आजादी के बाद यह पहले मौका था जब किसी सार्वजनिक मंच से इस मुद्दा को उठाया गया था। उस दौरान मंच पर पूर्व गृह मंत्री गुलजारी सिंह नंदा और स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक रज्जू भैया भी मौजूद थे।

इंदिरा गांधी को लिखा पत्र

दाऊदयाल खन्ना ने कांग्रेस पार्टी में होते हुए राम मंदिर की मुक्ति के लिए इंदिरा गांधी को पत्र लिखा था। वरिष्ठ पत्रकार रामबहुदार राय के मुताबिक, मुजफ्फरनगर सम्मेलन में इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर अयोध्या-मथुरा-काशी तीनों धार्मिक स्थलों को हिंदुओं को सौंपने की मांग की गई थी। दाऊदयाल खन्ना का मानना था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अयोध्या के राम जन्मभूमि स्थल का मुद्दा पूरी मजबूती से उठाना चाहिए और वह इसके लिए हमेशा प्रयत्नशील भी रहें। उनके इस सतत सुझाव को माना भी गया और आखिरकार 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्मसंसद का आयोजन हुआ। जिसमें देश भर के संत समाज के करीब 500 महत्वपूर्ण लोग शामिल हुए। इस बड़े सम्मेलन के पीछे विश्व हिंदू परिषद की भूमिका थी।

इस वजह से कांग्रेस से हुआ मोह भंग

1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में करीब 400 हिंदू परिवारों ने एक साथ सामूहिक रूप से इस्लाम कबूल कर लिया था। जिसमें ज्यादातर पिछड़े वर्ग के लोग थे। हिंदू समाज के नेताओं ने इस घटना को इस्लामिक खतरा माना और इसके ठीक बाद दिल्ली में विराट हिन्दू समाज का गठन किया। इसी दौरान दाऊदयाल खन्ना के जीवन में एक बड़ा उलट फेर हुआ। दरअसल, इस वक्त तक खन्ना कांग्रेस नेता थे और मुसलमानों की देखभाल के लिए कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता नमाज स्थलों पर कैंप लगाया करते थे। मुरादाबाद के एक ऐसी ही कैंप की देखरेख वो कर रहे थे। जब एक अफवाह के चलते तनाव की हालात बन गई। मुस्लिम समाज के नाराज और उपद्रवी लोगों ने खन्ना सहित दूसरे कांग्रेस नेताओं पर हमला बोल दिया।

इस घटना की जानकारी देने के लिए दाऊदयाल खन्ना दिल्ली पहुंचे। कहा जाता है कि तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलकर उन्हें निराशा हाथ लगी। जिसके बाद कांग्रेस से उनका मोह भंग हो गया। इस घटना के बाद खन्ना ने कांग्रेस पार्टी से किनारा कर लिया और विहिप के नजदीक आ गए। वहीं, 1984 के धर्मसंसद में राम जन्मभूमि यज्ञ समिति के गठन का प्रस्ताव पारित हुआ था। प्रस्ताव पारित होने के कुछ समय बाद जब इस समिति का गठन हुआ तो दाऊदयाल खन्ना को इस समिति का महामंत्री बनाया गया। इसके बाद बिहार के सीतामढ़ी से अयोध्या तक निकाली गई। रथयात्रा का नेतृत्व भी उन्होंने ही किया।

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