सिख विरोधी दंगा: इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद पनपे सिख विरोधी दंगे में क्या थी कमलनाथ की भूमिका?

  • इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में दंगा
  • सिख विरोधी दंगे में कमलनाथ भी थे शामिल!
  • रकाब गंज गुरूद्वारे पर हमले में घटनास्थल पर थे मौजूद

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-17 10:46 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के लिए उनके दो सिख अंगरक्षक सतवंत सिंह और बेअंत सिंह थे। दोनों सिख अंगरक्षकों ने करीब 33 बार गोली दागकर इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या कर दी। इसके बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। यह दंगा भारत में सिखों के खिलाफ सबसे अमानवीय घटनाओं में से एक माना जाता है। इस दौरान दंगाइयों ने सिखों का नरसंहार और उनपर अमानवीय अत्याचार किए। सरकारी आंकड़े के मुताबिक, इस दौरान दिल्ली में 2800 वहीं पूरे देश में 3350 सिख मारे गए। लेकिन, स्वतंत्र एजेंसिंयों के मुताबिक दंगे में मरने वाले सिखों की संख्य 8000 से 17000 के बीच थी।

इस दंगे में दिग्गज कांग्रेस नेता कमलनाथ भी आरोपी रहे हैं। कमलनाथ पर कांग्रेस पार्टी के इशारे पर दंगाइयों को उकसाने और सिख विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने में लोगों की मदद करने का आरोप है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पनपे सिख विरोधी दंगे के दौरान भीड़ ने दिल्ली में स्थित रकाबगंज साहिब पर हमला बोल दिया था। इस दौरान दंगाइयों ने गुरूद्वारे में मौजूद दो सिखों को जिंदा जला दिया था। गुरूद्वारे पर हमले के दौरान कमलनाथ पर वहां मौजूद रहने और दंगाइयों को भड़काने के आरोप है।

कमलनाथ पर आरोप

'वेन ए ट्री शुक डेल्ही' के लेखक मनोज मित्ता ने अपनी किताब में रकाबगंज साहिब पर हुए हमले और घटना में कमलनाथ की भूमिका पर चर्चा करते हुए लिखा, "संसद भवन की सड़क के दूसरी तरफ होने के बावजूद भी रकाब गंज गुरुद्वारे को भीड़ लंबे समय तक घेरे रही और उसकी चारदीवारी को नुकसान पहुंचा और वहां दो सिखों को जिंदा जला दिया गया। रकाब गंज पर हुआ हमला इस मायने में भी असाधारण है क्योंकि ये शायद पहली बार था और बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के इतिहास में शायद इकलौता ऐसा वाक्या था, जिसमें एक राजनेता ने घटनास्थल पर मौजूद होने की बात कबूल की थी और विडंबना ये है कि इस तरह की घटना भारतीय संसद के पास के इलाके में हुई।" दरअसल, गुरूद्वारे पर हुए हमले के दौरान कमलनाथ ने वहां अपनी मौजूदगी खुद कबूल कर चुके हैं। हालांकि, इसके पीछे वह पार्टी के निर्देश पर दंगाइयों को रोकने की मंशा का हवाला देते आए हैं।

सिख दंगे में विवादित भूमिका के कारण कमलनाथ को राजनीतिक खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। साल 2016 में कांग्रेस ने पंजाब में कमलनाथ को पार्टी इंचार्ज बनाया था जिसपर सिख दंगे के परिप्रेक्ष्य में विवाद शुरू हो गया था। 'वेन ए ट्री शुक डेल्ही' किताब के मुताबिक, गुरूद्वारे पर हमला और घेराबंदी का सिलसिला 5 घंटे तक चला जिसमें कमलनाथ करीब दो घंटे तक मौके पर मौजूद रहे।

मामले की जांच के लिए सबसे अंत में बनाए गए कमीशनों में से एक नानवती कमीशन कमलनाथ पर लगे आरोपों को सिद्ध नहीं कर पाई। अपने रिपोर्ट में रकाबगंज पर हमले और कमलनाथ की भूमिका पर नानवती कमीशन ने कहा, "सबूतों के अभाव में जांच आयोग के लिए ये मुमकिन नहीं कि वो कह पाए कि उन्होंने (कमलनाथ) किसी भी तरह भीड़ को भड़काया था या वो गुरुद्वारा पर हुए हमले में शामिल थे।"

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