श्रीराम की वंशावली: श्री राम के बाद राम के वंश का क्या हुआ, क्यों 21 वें वंशज को याद करते हैं भक्त और बाबर ने कब की अयोध्या पर चढ़ाई, जानिए राम की पूरी वंशावली
- अयोध्या में बालक राम की हुई प्राण प्रतिष्ठा
- कितना आगे बड़ा श्रीराम का रामवंश
- सन् 1528 में बाबरी सेना का अयोध्या पर कब्जा
डिजिटल डेस्क, अयोध्या। अयोध्या में 500 सालों की लंबी प्रतिक्षा के बाद प्रभु श्रीराम अपनी जन्मभूमि में विराज चुके हैं। सोमवार को नवनिर्मित राम मंदिर में बालक राम की प्राण प्रतिष्ठा हुई। इस ऐतिहासिक पल के जश्न और भगवान राम की वापसी की खुशी के मौके पर पूरे देशभर में दीपोत्सव का पर्व भी मनाया गया। जिसमें देशवासियों ने अपने घरों से लेकर मंदिरों तक दीप प्रज्वलित किए। पर क्या आपने रामायण में भगवान राम के वैकुंठ जाने के बाद अयोध्या में आने वाले रामवंशजों की कहानी सुनी है? ऐसे में आइए जानते हैं प्रभु श्री राम के वंशजों की कहानी।
त्रेता युग में प्रभु श्री राम रावण का वध करने के बाद माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौट आए थे। अयोध्या नगरी में प्रजा ने उनका बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया। साथ ही, भगवान राम का अयोध्या में राज्यभिषेक भी किया गया। 14 साल के वनवास के बाद श्रीराम ने फिर से अयोध्या का कार्यभार संभाला। कुछ वर्षों के बाद भगवान राम के दो पुत्र हुए जिनका नाम लव और कुश था। माता सीता ने अपने दोनों पुत्रों को धरती में समाधि लेते समय भगवान राम को सौंप दिया था। त्रेता युग का अंत समय आते ही श्री राम के साथ उनके भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न धरती पर अपनी लीला समाप्त करने के बाद वैकुंठ धाम सिधार गए।
श्रीराम के बाद अयोध्या नगरी और वंशावली का क्या हुआ ?
अधिकांश लोगों को रामायण में प्रभु श्रीराम की इन्हीं कथाओं के बारे में पता है। इसके अलावा महार्षि वाल्मीकि की रामायण में भी इन्हीं घटनाक्रमों का वर्णन किया गया है। ऐसे में प्रभु श्री राम के जाने के बाद अयोध्या नगरी, सूर्यवंशियों और उनकी वंशावली के बारे में इसके बारे में विस्तार से जानते हैं। रघुवंश महाकाव्य में द्वापर और कलयुग में अयोध्या के रामवंशजों को लेकर कालिदास ने कई कथाओं का वर्णन किया है। साथ ही, उस दौरान अयोध्या में किन राजाओं ने कितना शासन किया था। इसके बारे में भी अपनी कहानियों के माध्यम से बताया गया है। वहीं, महाकाव्य में श्रीराम के बाद आने वाले रामवंश के 24 राजाओं के बारे में भी जिक्र किया गया है।
श्रीराम के बाद किसने संभाला अयोध्या का कार्यभार ?
भगवान राम के वैकुंठ धाम सिधारने के साथ ही त्रेतायुग का भी अंत हो गया। इसके बाद धरती पर द्वापर युग की शुरूआत हुई। अयोध्या के इतिहास में यह समय काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि प्रभु श्री राम के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने राज्य का कार्यभार और शासन किया था।
भगवान राम के दो पुत्रों के अलावा लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के भी दो पुत्र हुए थे। जिसके चलते उनकी इस पीढ़ी में कुल आठ भाई थे। इन सभी भाइयों के नाम थे लव, कुश, पुष्कल, तक्ष, सुबाहु, अंगद, बहुश्रुत और चंद्रकेतु। बताया जाता है कि भगवान राम ने अयोध्या में रहते ही अपने पुत्र लव को राज्य का उत्तर भाग शेरावती का राजा बनाया। तो वहीं, बेटे कुश को दक्षिण भाग कुशावती राज्य की राजा नियुक्त किया कहा जाता है कि श्रीराम की जल समाधि के बाद उनके दोनों बेटे अपने-अपने राज्य में कार्यभार संभाल रहे थे। ऐसे में वे दोनों ही अयोध्या में घटित हो रही घटनओं से वंचित थे।
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कुश ने अयोध्या का राजपाट संभाला
रघुवंश महाकाव्य में कुश से जुड़ी एक कहानी का भी वर्णन किया गया है। कहानी के अनुसार, एक समय की बात है जब रात में कुश सो रहे थे। तभी उनके सपने में एक देवी प्रकट हुई। जिन्होंने उनसे पुराने राज्य अयोध्या लौटने की बात कहीं। इसके बाद अगले दिन की सुबह कुश ने पिछले रात के स्वप्न के बारे में अपने गुरुजनों और मंत्रियों से चर्चा की। जिसमें सभी लोगों ने राजा कुश से अयोध्या में ही राज करने का सुझाव दिया।
इसी बात को स्वीकार करते हुए कुश ने अपने कुशावती राज्य की सारी जिम्मेदारी वैदिक ब्राह्मणों को दे दी। इसके बाद वह अपनी सेना के साथ अयोध्या के लिए रवाना हो गए। अयोध्या पहुंचकर उन्होंने सिंहासन ग्रहण किया और राज्य का कार्यभार संभालना शुरू कर दिया। अपने सभी भाईयों में बड़े होने की वजह से अयोध्या की प्रजा ने उनका विरोध नहीं किया और उन्हें राजा के रूप में स्वीकार लिया।
अयोध्या में लव-कुश का शासन
अयोध्या की प्रजा श्रीराम के जुड़वा पुत्रों लव और कुश की वीरता और न्याय से काफी प्रसन्न थे। इन दोनों राजाओं के शासन को जनता न्यायप्रिय शासन, सांस्कृतिक उत्थान और राज्य के विस्तार के रूप में देखती थी। प्रजा के हित के लिए दोनों भाई शासन करते थे। लव-कुश ने राज्य की प्रजा को सामान रूप से न्याय दिलाने के लिए शासन प्रणाली की स्थापनी की थी। जिससे वहां की जनता अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करती थी।
रघुवंश महाकाव्य में बताया गया है कि कुश के शासन के समय वहां की प्रजा धन -धान्य और खुशी से समृद्ध थी। उस काल में अयोध्या नगरी में कला , साहित्य और शिक्षा को फिर से स्थापित किया गया था। कुश के नेतृत्व में अयोध्या का समराज्य तेजी से विकसित होने लगा था। इतना ही नहीं, बल्कि उन्होंने आसपास के कई राज्यों को अपने बढ़ते प्रभुत्व से अधीन कर लिया था। इससे अयोध्या की शक्ति और समृद्धि भी बढ़ना शुरू हो गई।
द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने लिया अवतार
इसके बाद द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के अवतार में जन्म लिया। उन्होंने धरती में बढ़ रहे अधर्म के विनाश और धर्म की पुन: स्थापना के लिए महाभारत युद्ध की लीला रची। महाकाव्य के अनुसार,अयोध्या और श्री कृष्ण के बीच काफी अच्छे संबंध थे। बताया जाता है कि लव-कुश के वंशजों से पांडवों के मैत्रीपूर्ण संबंध थे। जिसक वहज से महाभारत युद्ध में रामवंशजों ने पांडवों को सैन्य मदद भी पहुंचाई थी।
कहा जाता है कि द्वापर युग के अंत के समय श्री कृष्ण ने अयोध्या नगरी भी गए थे। वहां श्री कृष्ण ने अयोध्या के राजा को आशिर्वाद दिया था। इसके साथ ही उन्होंने भविष्य में आने वाली चुनौतियों से लड़ने का मार्गदर्शन भी दिया था।
कुश के बाद बनने वाले राजा
रघुवंश महाकाव्य में अयोध्या के राजा कुश की शादी और उनकी मृत्यू को लेकर एक कहानी का वर्णन किया गया है। जिसमें कुश का विवाह कुमुदवती नाम की कन्या के साथ हुआ था। जिनसे उन्हें एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम अथिथि रखा गया था। एक दिन राजा कुश का युद्ध दुर्जन नाम के व्यक्ति के साथ हुआ था। जिसमें वह वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
राजा कुश की मृत्यु के बाद अयोध्या की गद्दी पर उनके पुत्र अथिथि को राजा बनाया गया। राजा अथिथि के बड़ा होने पर उन्होंने अपने पिता की तरह ही राज्य का न्यायप्रिय शासन किया। निषेध देश के राजा की बेटी के साथ राजा अथिथि का विवाह हुआ। कुछ समय बाद उन्हें एक वीर पुत्र हुआ जिसका नाम निषध रखा गया। राजा अथिथि की मृत्यु के बाद निषध अयोध्या के राजा बने। राजा निषध के शासन के बाद अयोध्या में कई राजाओं ने राजपाट संभाला जिनमें नल, नभस, पुण्डरीक, क्षेमन्धवा, देवअनिका, अहिनागु के नाम शामिल हैं।
अयोध्या नगरी की गद्दी पर बैठे ये राजा
जैसे जैसे सदियां बीती गई वैसे वैसे अयोध्या को नए राजा मिलते गए। राजा अहिनागु के बाद पारियात्र, शिला, उन्नाभ और वज्रनाभ ने अयोध्य नगरी का कार्यभार संभाला। राजा वज्रनाभ के शासन के बाद शंखना को अयोध्या के सिंहासन पर बैठक राज्य की जिम्मेदारी संभाली। अपने शासनकाल के दौरान, उन्होंने अयोध्या की सीमा का भी विस्तार किया। इनके बाद राजा व्युशिताश्व, विश्व-सह, हिरण्य-नाभा, कौशल्य, ब्रह्मिष्ठ ने लंबे समय तक अयोध्या नगरी पर शासन किया।
अयोध्या में इस राजा ने कम समय के लिए किए राज
राजा ब्रह्मिष्ठ को एक बेटा हुआ था जिसका नाम ही पुत्र था। जिन्होंने रामवंश को आगे बढ़ाया। राजा पुत्र के बाद पुष्य, ध्रुव-संधि, सुदर्शन, अग्निवर्ण ने अयोध्या का शासन किया था। रघुवंश में बताया गया है कि अयोध्या में रामवंश में अग्निवर्ण वहां के अंतिम राजा थे। बताया जाता है कि अग्निवर्ण ने अयोध्या में कुछ ही समय तक शासन किया। उन्होंने राज्य का दायित्व अपने मंत्रियों को दे दिया। जिसके बाद राजा अग्निवर्ण ने अपने जीवन को विलासिता के शौक में रंग दिया।
विलासिता की जिंदगी व्यतीत करने वाले राजा अग्निवर्ण को अपने जीवन के आखिरी दिनों में उन्हें रामवंश को बढ़ाने की चिंता सताने लगी। इसके लिए उन्होंने पुत्र प्राप्ति के यज्ञ का आयोजन किया। हालांकि, कुछ समय के बाद उनकी पत्नि गर्भवती तो हो गई, लेकिन संतान का सुख लिए बिना अग्निवर्ण की मृत्यु हो गई।अग्निवर्ण के परलोक सिधारने के बाद राज्य के मंत्रियों ने उनकी गर्भवती पत्नि को अयोध्या का उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। महाकवि कालिदास की पुस्तक रघुवंश महाकाव्य में अयोध्या की इन्हीं घटनाक्रमों का वर्णन किया है।
रामवंशज राजाओं का आचरण
रामवंशज राजाओं में श्रीराम की पहले की 21 और बाद की 21 पीढ़ी तक राजाओं के जीवन में आचरण काफी सम्मानजनक रहा है। इन राजाओं या उनके शासनकाल में किसी भी गलत आचरण के बारे में वर्णन नहीं किया गया है। यहां तक कि किसी राजा की अकाल मृत्यु के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है। भगवान राम के 21वें उत्तराधाकारी राजा को अच्छे कर्म और आचरण के लिए पहचाना जाता है। इसके अलावा इन्हीं के शासनकाल के साथ द्वापर युग का भी अंत हुआ था।
वहीं, रामवंश के 22वें राजा जिनका नाम ध्रुव-संधि था उनकी मृत्यु उस समय हो गई थी। जब वह शिकार करने जंगल में गए थे, जिसमें एक शेर ने उन्हें मार दिया था। उस दौरान, उनका बेटे की उम्र केवल एक साल की थी। रामवंशजों के इतिहास पर नजर डाले तो राजा ध्रुव संधि के बाद के सभी राजा अयोध्या पर शासन करने में कामयाब नहीं रहे। इंटरनेट या किसी ग्रंथो में इन राजाओं और उनसे जुड़ी किसी चीज की जानकारी नहीं मिलती है।
जानकारों का कहना है कि केवल अयोध्या में सीताराम की तीन हजार से भी ज्यादा मंदिर मौजूद थे। लेकिन, 5वीं सदी में इनमें कई मंदिरों की स्थित खराब होने शुरू हो गई थी। बताया जाता है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या जाकर सभी खंडित मंदिरों को सही कराया। जिसके बाद आने वाले कई सालों तक तो यह मंदिर ठीक हालात में रहे। ऐसे में साल 1526 में मुगल बादशाह बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच युद्ध छिड़ा। दो सालों के भीतर साल 1528 में बाबर की सेना ने अयोध्या पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद से ही दावा किया जाने लगा कि अयोध्या में स्थित कई मंदिरों को बाबर ने तुड़वाकर मस्जिद बनाने का काम किया था।