हाथरस हादसा: पहले भी हो चुका है भोले बाबा के सतसंग में विवाद, जिला प्रशासन ने आयोजकों के खिलाफ दर्ज की थी रिपोर्ट

  • भोले बाबा का विवादों से रहा है पुराना नाता
  • इससे पहले भी समागम में उड़ा चुके हैं कानून की धज्जियां
  • कोरोना काल में अनुमित के बिना एकत्रित की 50 हजार लोगों की भीड़

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-02 16:51 GMT

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। यूपी के हाथरस में हुए हादसे से पूरा देश सदमे में है। भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ से 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और सैंकड़ों घायल हो गए। हादसा हाथरस जिला मुख्यालय से 47 किमी दूर फुलरई गांव में दोपहर करीब 1 बजे हुआ। भोले बाबा का सत्संग सुनने के लिए हजारों लोग आए हुए थे। फिलहाल बाबा फरार बताया जा रहा है।

ये पहला मौका नहीं है जब भोले बाबा के सत्संग को लेकर विवाद हुआ हो। इससे पहले भी भीड़ को लेकर भोले बाबा के समागम के दौरान नियम कानून की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगा है।

बात कोरोना काल की है जब पूरे देश में जानलेवा बीमारी कोरोना की लहर चल रही थी। साल 2022 के मई महीने में फर्रुखाबाद में भोले बाबा के समागम का आयोजन हुआ था। कोरोना को देखते हुए जिला प्रशासन ने इस समागम में केवल 50 लोगों के शामिल होने की परमिशन दी थी। लेकिन, सारे नियम-कानून को दरकिनार करते हुए करीब 50 हजार लोग समागम में शामिल हुए थे। भीड़ इतनी थी कि उससे शहर की यातायात व्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हुई थी। इसके बाद जिला प्रशासन ने कानून की ऐसा अनदेखी करने के लिए आयोजकों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी।

जानकारी के मुताबिक हाथरस के समागम में भी जितने लोगों के शामिल होने की जानकारी प्रशासन को दी गई थी। उससे ज्यादा लोग इसमें शामिल हुए थे और यही इस भयावह हादसे की वजह भी बनी। इसके अलावा भी भोले बाबा कई विवादों में घिरे रहे हैं। उन पर जमीन कब्जाने के भी कई आरोप लगे हैं। कानपुर के करसुई गांव में बाबा के साकार विश्वहरि ग्रुप पर करीब 7 बीघा जमीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप भी है।

कौन हैं भोले बाबा?

भोले बाबा मूल रूप से यूपी के एटा जिले के बहादुर गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा एटा जिले में ही ग्रहण की। उनके पिता किसान थे। भोले बाबा शिक्षा ग्रहण करने के बाद पुलिस में नौकरी करने लगे। करीब 18 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने 90 के दशक में वीआरएस ले लिया। मौजूदा समय में वो अपने ही गांव में झोपड़ी बनाकर रहते हैं।

कुछ समय बाद उनका झुकाव अध्यात्म की ओर हो गया और उन्होंने अपना नाम बदलकर साकार विश्वहरि रख लिया। वह अन्य साधू-संतों की तरह भगवा या साधारण पोशाक नहीं पहनते बल्कि सफेद सूट, टाई और जूतों में दिखाई देते हैं। सत्संग के दौरान उनके साथ उनकी पत्नी भी रहती हैं। कई दफा उन्हें कुर्ता पजामा और सफेद टोपी लगाए भी सत्संग करते हुए देखा गया है।

इस वजह से शुरू किया सत्संग

यूपी के साथ ही भोले बाबा के पड़ोसी राज्यों में भी सत्संग होते हैं। जिनमें हजारों की संख्या में लोग एकत्रित होते हैं। बाबा ने कई बार अपने सत्संग में बताया है कि वो कैसे सरकारी नौकरी छोड़ अध्यात्म में आ गए। बाबा के मुताबिक वीआरएस लेने के बाद उनका स्वयं भगवान से साक्षात्कार हुआ है। भगवान की प्रेरणा से ही उन्हें ये पता चला कि यह शरीर परमात्मा का ही एक छोटा सा अंग है। इसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन मनुष्य की भलाई में लगाने का निर्णय लिया।

बाबा के मुताबिक, वो खुद कहीं नहीं जाता, बल्कि भक्त उन्हें बुलाते हैं। भक्तों की आग्रह पर ही वो अलग-अलग स्थानों पर जाकर समागम करते हैं। मौजूदा समय में उनके यूपी समेत अन्य राज्यों में बड़े-बड़े अधिकारी चेले हैं। उनके समागम में आला अधिकारियों के साथ-साथ राजनेता भी शामिल होते हैं। बीते साल सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी उनके समागम का हिस्सा बने थे।

यूपी, राजस्थान और एमपी में हैं लाखों अनुयायी

भोले बाबा के अनुयायी यूपी के साथ राजस्थान और एमपी में बड़ी संख्या में हैं। जाटव समाज से आने वाले भोले बाबा की एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग में गहरी पकड़ है। इसके साथ ही मुस्लिम समुदाय के लोग भी उन्हें मानते हैं। वह अन्य कथावाचकों और सत्संग करने वाले बाबाओं की तरह सोशल मीडिया पर पॉपुलर न हों पर जमीनी तौर पर उनके लाखों अनुयायी हैं। उनके सत्संग में लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।

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