सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या संविधान को अपनाने की तारीख को बरकरार रखते हुए 1976 में प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता था?

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 1976 में दो शब्द जोड़े
  • समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को शामिल
  • 42वें संशोधन के माध्यम से शब्दों को सम्मिलित करने की वैधता पर सवाल

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-09 14:21 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आश्चर्य जताया कि क्या भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 1976 में "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों को शामिल करने के लिए संशोधन किया जा सकता था, जबकि संविधान को अपनाने की तारीख 26 नवंबर, 1949 को बरकरार रखा गया था, जो कि मूल के समय थी। जिस दस्तावेज़ में दो शब्द नहीं थे उसे अपनाया गया। यह प्रश्न न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की ओर से आया, जो दो-न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने 1976 में संविधान के 42वें संशोधन के माध्यम से शब्दों को सम्मिलित करने की वैधता पर सवाल उठाते हुए भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई की थी। 

जैसे ही यह मामला न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया, न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि उनका आशय यह नहीं था कि प्रस्तावना में संशोधन नहीं किया जा सकता। ऐसा नहीं है कि प्रस्तावना में संशोधन नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति दत्ता ने बताया कि भारतीय संविधान शायद एकमात्र ऐसा संविधान है जिसकी प्रस्तावना में गोद लेने की तारीख बताई गई है। उनका संदर्भ प्रस्तावना के अंतिम भाग की ओर था जिसमें कहा गया है, हमारी संविधान सभा में, छब्बीस नवंबर 1949 के दिन, हम इस संविधान को अपनाते हैं, अधिनियमित करते हैं और हमें सौंपते हैं।

एक अंग्रेजी समाचार पत्र के मुताबिक जस्टिस ने सुनवाई के दौरान स्वामी और मामले में उपस्थित अन्य वकील से कहा कि अकादमिक स्तर पर इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या जिस संविधान में तारीख का उल्लेख किया गया है, उसे तारीख में बदलाव किए बिना बदला जा सकता है। वकील ने कहा कि पीठ द्वारा उठाया गया संदेह बिल्कुल वही सवाल था जो उनके मन में था। स्वामी ने बताया कि ये शब्द तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे। इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 29 अप्रैल, 2024 से शुरू होने वाले सप्ताह में तय की।

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