राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा: अब एक साथ नहीं होगी सीता-राम की स्तुति, प्राण प्रतिष्ठा के बाद होगा बड़ा बदलाव, जानें वजह

  • पूजा पद्धति में हुआ बदलाव
  • मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताई वजह
  • 22 जनवरी को होगी प्राण प्रतिष्ठा

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-11 20:33 GMT

डिजिटल डेस्क, आयोध्या।  22 जनवरी को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन होने जा रहा है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश कई साधु-संतों को भी आमंत्रित किया गया है। इस बीच एक बड़ी बात सामने आई है। जिसके अनुसार प्राण-प्रतिष्ठा के बाद राम मंदिर की पूजा पद्धति में होने वाले बड़े बदलाव होंगे। मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का कहना है कि रामलला के मंदिर में माता सीता और प्रभु श्रीराम की स्तुति अब एक साथ नहीं होगी। उन्होंने तर्क देते हुए बताया कि मंदिर में जो रामलला की मूर्ति है वह उनके बालरूप की है ऐसे में सीता-राम की साथ में होने वाली स्तुति अब नहीं होगी।

उन्होंने बताया कि, ''राम मंदिर में प्रभु श्रीराम बालरूप में होंगे, इसलिए सीता-राम की साथ वाली स्तुति अब नहीं होगी।'' उन्होंने आगे कहा, ''राम उनके चार भाई, तीन माता, सरयू मैया और अयोध्या नाथ की स्तुति होगी।'' जानकारी के मुताबिक पूजा पद्धति बदलाव की पुस्तिका को प्रशिक्षण के लिए मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास समेत मंदिर के अन्य सभी पुजारियों को दी गई है। एबीपी न्यूज की खबर के मुताबिक, प्रशिक्षण के बाद पुजारियों को पुजारी पद नियुक्त किया जाएगा। पिछले महीने पुजारी पद पर 3,000 आवेदकों में से 200 उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए चुना गया था। जिसके बाद 200 उम्मीदवार अयोध्या के कारसेवकपुरम में साक्षात्कार प्रक्रिया से गुजरे।  बता दें कि इस प्रथा को रामानंदीय प्रथा कहा जाता है जिसमें रामलला  के बालरूप की पूजा की जाती है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद से मंदिर में रामानंदीय परंपरा के अनुसार पूजा पाठ होगा। इस परंपरा के अनुसार ही मुख्य पुजारी, सहायक पुजारी और सेवादारों के लिए रामलला की पूजा आराधना करने का विधान होगा।

स्तुति किताब को दिया जा रहा अंतिम रूप

 रामलला की स्तुति के लिए हनुमान चालीसा के जैसे ही किताब को बनाया जा रहा है, जो कि लगभग कंप्लीट होने वाली है। बता दें कि राम मंदिर में अभी तक देश के अन्य मंदिरों की तरह ही पूजा-पद्धति होती है।  जिसमें भगवान को भोग लगाने से लेकर नए वस्त्र धारण कराना, पूजन-आरती करना और भोग लगाना शामिल हैं।

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