श्रीलंका ने किया बड़े आर्थिक संकट का सामना, राष्ट्रपति भवन में घुसकर आम जनता ने जो किया सालों साल याद रखा जाएगा वो नजारा, घर छोड़कर ऐसे भागे थे राजपक्षे

ईयर एंडर-2022 श्रीलंका ने किया बड़े आर्थिक संकट का सामना, राष्ट्रपति भवन में घुसकर आम जनता ने जो किया सालों साल याद रखा जाएगा वो नजारा, घर छोड़कर ऐसे भागे थे राजपक्षे

Bhaskar Hindi
Update: 2022-12-14 13:05 GMT
श्रीलंका ने किया बड़े आर्थिक संकट का सामना, राष्ट्रपति भवन में घुसकर आम जनता ने जो किया सालों साल याद रखा जाएगा वो नजारा, घर छोड़कर ऐसे भागे थे राजपक्षे
हाईलाइट
  • दुनिया नहीं भूल पाई श्रीलंका संकट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। यह साल अपने अंतिम पड़ाव पर है। साल बीत रहा है लेकिन इस बीच कुछ ऐसी ही घटनाएं हुई, जिसे भूल पाना नामुमकिन है। इस साल दुनियाभर के कई देशों में काफी उथल-पुथल देखने को मिली, लेकिन श्रीलंका संकट उनमें से सबसे ज्यादा चर्चित रहा। श्रीलंका के हालात को देखकर हर कोई हक्काबक्का रह जाता है। सड़क से लेकर राष्ट्रपति आवास तक जमकर विरोध प्रदर्शन के कारण श्रीलंकाई सरकार की नींव खिसक गई।

राष्ट्रपति को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। वर्षों से एक परिवार के हाथ में सत्ता की चाबी श्रीलंका में उपजे हालात की मुख्य वजह मानी गई। सरकार के कुछ फैसलों ने जनता को भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। महंगाई, बेरोजगारी व खाद्य सामग्री की भारी किल्लत से श्रीलंका में चारों तरफ कोहराम सा मच गया। जिसकी वजह से जनता के पास एक ही ऑप्शन बचा केवल बगावत करने का। 

पीएम को प्रदर्शनकारियों ने किया आग के हवाले

श्रीलंका में आर्थिक संकट की वजह से हालात इतने बिगड़ चुके थे कि जनता सरकार के खिलाफ बगावत पर उतर आई। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन होने लगे। जनता ने मौजूदा सरकार से इस्तीफे की पेशकश कर दी। उग्र प्रदर्शनकारियों ने विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे के घर में आग लगा दी। जिसके बाद पूरा आवास जलकर राख हो गया और किसी तरह से विक्रमसिंघे वहां से छुपकर भागने में कामयाब रहे। हालांकि, बाद में पीएम रानिल विक्रमसिंघे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। 

राष्ट्रपति के सरकारी आवास पर कब्जा

प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के सरकारी आवास में घुसकर प्रदर्शन किया। जिसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ। कई प्रदर्शनकारियों को राष्ट्रपति आवास के अंदर बने स्वीमिंग पुल में मस्ती करते देखा गया। वित्तीय व आर्थिक समस्याओं के घिरी श्रीलंकाई सरकार उग्र भीड़ के सामने असहज दिखाई दी। दवा, खाना, पानी जैसे मूलभूत सुविधाओं से वंचित जनता का गुस्सा फूटना स्वाभाविक था क्योंकि सरकार के कुछ फैसलों की वजह से देश की आर्थिक स्थिति चरमरा गई और भुगतना जनता को पड़ा।

साल 1948 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से इस साल श्रीलंका सबसे खराब आर्थिक स्थिति से जूझता रहा। इस देश में महंगाई के कारण बुनियादी चीजों की कीमतें आसमान छूने लगीं। पेट्रोल पम्प पर गाड़ी में तेल डलवाने के लिए लंबी कतार लगानी पड़ती थी, साथ ही महंगे दाम देने पड़ते थे। इस वजह से जनआक्रोश बढ़ता ही चला गया फिर देश के राष्ट्रपति को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा और देश को छोड़कर भागना पड़ा। बाद में श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

चीन भी रहा आर्थिक संकट की वजह

विदेशी मामलों के जानकार भी इस बात को मानने से इंकार नहीं कर रहे हैं कि श्रीलंका में आए आर्थिक संकट की वजह चीन है। बताया जा रहा है कि चीन से श्रीलंका की नजदीकी महंगी पड़ गई। चीन की रणनीति ऐसी है कि जिस देश में अपने निवेश बढ़ाएं हैं, वहां पर राजनीतिक व आर्थिक अस्थिरता तेजी से बढ़ी है। पाकिस्तान व श्रीलंका से बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की हालात भी खराब होती जा रही है, आने वाले समय में श्रीलंका जैसे हालात के आसार हैं। जानकारों की माने तो श्रीलंका ने चीन के साथ जो रणनीतिक गलतियां की, उसका खामियाजा भुगतना पड़ा। 

सरकार का गलत प्रबंधन 

इस साल श्रीलंका में उपजे हालात की मुख्य वजह सरकार का कुप्रबंधन बताया जा रहा है। पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंकाई सरकार ने सार्वजनिक सेवाओं के लिए विदेशों से बड़ी रकम कर्ज के रूप में ली। कर्ज बढ़ते गए और देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। इसमें प्राकृतिक आपदा व मानव निर्मित तबाही भी शामिल है। जिसके बाद वर्ष 2018 में राजनीतिक संकट से स्थितियां और भी बदतर हो गईं। श्रीलंका में उपजे संवैधानिक संकट की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को उबरने का मौका नहीं मिला। 

पर्यटकों की संख्या में सतत गिरावट

पर्यटन उद्योग श्रीलंका आर्थिक संकट की एक वजह मानी जा रही है। दरअसल, 2019 में कोलंबो के विभिन्न गिरिजाघरों में ईस्टर बम विस्फोटों की घटना में 253 लोग हताहत हुए थे। जिसके बाद से देश के पर्यटकों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। विदेशी पर्यटक इस वजह से साल 2019 के बाद से ही श्रीलंका में घूमने से कतराने लगे हैं। जिसका असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका की सकल घरेलू आय में 10 फीसदी हिस्सा पर्यटन उद्योग का है। ऐसे में श्रीलंका का पर्यटन उद्योग पूरी तरह से चौपट हो गया। यहां से मिलने वाला राजस्व भी अर्थव्यवस्था को काफी चौपट किया। महंगाई में निरंतर होती वृद्धि को सरकार काबू नहीं कर सकी, फिर जनआंदोलन शुरू हो गया।

सरकार के गलत फैसले

श्रीलंका में साल 2019 में सत्ता परिवर्तन हुआ। जनता को बड़ी उम्मीद थी कि गोटाबाया राजपक्षे सरकार देश को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। राजपक्षे सरकार ने अपने चुनावी अभियानों में निम्न कर दरों और किसानों के लिए व्यापक रियायतों का वादा किया था। ये ऐसा वादा रहा, जिसकी वजह से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। साल 2020 में वैश्विक कोरोना महामारी ने इस समस्‍या को और बदतर कर दिया। महामारी ने देश की अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ को तोड़ दिया। चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के निर्यात को भारी नुकसान पहुंचा।

सरकार ने वर्ष 2021 में सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था और यह घोषित किया गया था कि श्रीलंका रातोंरात 100 फीसदी जैविक खेती वाला देश बन जाएगा। सरकार के इस फैसले श्रीलंका को आर्थिक तबाही के दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया। जैविक खादों के प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया। जिसके बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मूल्यह्रास, मुद्रा और तेजी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार को रोकने के लिए आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी। जिसके बाद जनता के बीच आक्रोश फैल गया और आग की चिंगारी राष्ट्रपति भवन तक जा पहुंची।

 

 

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